भारत की प्रमुख नदियों में से एक सिंधु नदी का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है. जानते हैं कैसे हमारा धर्म और हमारी संस्कृति सिंधु नदी से जुड़ी है और क्या है इसका महत्व।
भारत में सिंधु नदी का बहुत महत्व है. इस नदी को केवल पानी का एकमात्र स्त्रोत ही नहीं बल्कि हिंदू धर्म के लिहाज से भी बहुत महत्वपूर्ण माना गया है. हिंदू शब्द की उत्पत्ति भी सिंधू से हुई है, जो इस नदी के पार रह रहे लोगों का प्रतिनिधित्व करता है. सिंधु नदी को भी पवित्र नदियों की क्षेत्री में रखा जाता है और इसे नदियों की रानी कहा जाता है।
सिंधु नदी, एशिया की एक प्रमुख नदी है जो तिब्बत में मानसरोवर झील के पास से निकलती है और पाकिस्तान के रास्ते अरब सागर में मिलती है।
धार्मिक महत्व (Sindhu River Importance)
वेदों में सिंधु नदी का कई बार वर्णन हुआ है और इसका महत्व भी बताया गया है. सिंधु इस नदी के तट पर कई ऋषि- मुनियों ने तपस्या की, धार्मिक मान्यता के अनुसार इसी नदी के तट पर बैठ कर कई वेद- पुराणों की रचना भी हुई है. इसीलिए हिंदू धर्म में इस महत्व है. ऋग्वेद में सिंधु नदी का अनेक बार वर्णन हुआ है. “इमं मे गंगे यमुने सरस्वति…सिंधु स्तोमं आर्जुनयं” पवित्र नदी सिंधु जो ‘नदियों की रानी’ और ज्ञान की नदी भी कहा जाता है।
हर पूर्णिमा पर सिंधु नदी के तट पर सिंधु दर्शन महोत्सव आयोजित किया जाता है, जो इस नदी के प्रति लोगों की धार्मिक श्रद्धा को दर्शाता है. सिंधु दर्शन महोत्सव हर साल लद्दाख के लेह में आयोजित किया जाता है.यह सिंधु नदी के प्रति श्रद्धा और सम्मान प्रकट करने का एक माध्यम है. जून के माह में गुरु पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. इस महोत्सव में भारी संख्या में लोग भाग लेते हैं।
सिंधु नदी के मुहाने यानि नदी के मुख पर कराची के पास हिंगलाज स्थान पर हिंगलाज माता का मंदिर है, जो 52 शक्तिपीठों में से एक है. हिंगोल नदी, सिंधु नदी की एक सहायक नदी है जो पाकिस्तान के बलूचिस्तान में बहने वाली एक नदी, जो हिंगलाज माता मंदिर के पास से गुजरती है।