सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर सुनवाई के दौरान महत्वपूर्ण टिप्पणी की कि “धरती पर किसी भी दस्तावेज को जाली बनाया जा सकता है।” यह टिप्पणी तब आई जब याचिकाकर्ताओं ने चुनाव आयोग के उस फैसले को चुनौती दी, जिसमें आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड को मतदाता पहचान के लिए वैध दस्तावेजों की सूची से हटा दिया गया था। कोर्ट ने चुनाव आयोग से सवाल किया कि जब कोई भी दस्तावेज जाली हो सकता है, तो इन विशिष्ट दस्तावेजों को सूची से बाहर करने का आधार क्या है।
जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की बेंच ने सुझाव दिया कि आधार कार्ड और वोटर आईडी को 11 वैध दस्तावेजों की सूची में शामिल किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि फर्जी दस्तावेजों की स्थिति में केस-टू-केस आधार पर जांच और कार्रवाई की जा सकती है। बेंच ने यह भी स्पष्ट किया कि SIR प्रक्रिया पर रोक लगाने का कोई इरादा नहीं है, क्योंकि यह मतदाता सूची को शुद्ध करने का एक महत्वपूर्ण कदम है। हालांकि, कोर्ट ने प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर जोर दिया।
याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि इन दस्तावेजों को हटाने से वास्तविक मतदाताओं को परेशानी हो सकती है। जवाब में, चुनाव आयोग ने कहा कि इन दस्तावेजों के दुरुपयोग की आशंका के कारण यह निर्णय लिया गया। कोर्ट ने आयोग से इस मुद्दे पर और स्पष्टीकरण मांगा और अगली सुनवाई के लिए 29 जुलाई 2025 की तारीख पर विचार करने की बात कही। इस मामले में अंतिम फैसला प्रक्रिया की वैधता और मतदाता अधिकारों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है।
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