Special : अक्षय तृतीया पर पुण्यकारी माना गया है गर्मी की लाभकारी वस्तुओं का दान

By digital@vaartha.com | Updated: April 30, 2025 • 3:30 PM

अक्षय तृतीया पर मिलता है अक्षय फल

अक्षय तृतीया वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनार्इ जाती है। इसे आखा तीज भी कहा जाता है। इस वर्ष ये त्यौहार 28 अप्रैल को मनाया जाएगा। अक्षय तृतीया या आखा तीज वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहा जाता है। पौराणिक ग्रंथों में बताया गया है कि इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है। वैसे तो सभी बारह महीनों की शुक्ल पक्षीय तृतीया शुभ होती है, किंतु वैशाख माह की तिथि स्वयंसिद्ध मुहूर्तों में मानी गई है।

कहा जाता है कि इस दिन बिना कोई पंचांग देखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह-प्रवेश, वस्त्र-आभूषणों की खरीददारी या घर, भूखंड, वाहन आदि की खरीददारी आदि कार्य किए जा सकते हैं।

अक्षय तृतीया पर पितरों को तर्पण देता है अक्षय फल

इस दिन पितरों को किया गया तर्पण या किसी भी प्रकार का दान, अक्षय फल प्रदान करने वाला है। इस दिन गंगा स्नान करने से तथा भगवत पूजन से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। मान्यता है कि यदि इस दिन मनुष्य अपने या स्वजनों द्वारा किए गए जाने-अनजाने अपराधों के लिए सच्चे मन से ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करे तो भगवान अपराधों को क्षमा कर देते हैं और उसे सद्गुण प्रदान करते हैं।

अक्षय तृतीया के दिन करें भगवान विष्णु की पूजा

ब्रह्म मुहूर्त में उठकर गंगा स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की शांत चित्त होकर विधि विधान से पूजा करने का प्रावधान है। नैवेद्य में जौ या गेहूँ का सत्तू, ककड़ी और चने की दाल अर्पित की जाती है। इसके बाद फल, फूल, बरतन तथा वस्त्र आदि ब्राह्मणों को दान के रूप में दिये जाते हैं। इस दिन ब्राह्मण को भोजन करवाना कल्याणकारी समझा जाता है। इस दिन लक्ष्मी नारायण की पूजा सफेद कमल अथवा सफेद गुलाब या पीले गुलाब से करना चाहिये।

अक्षय तृतीया के दिन पुण्यकारी माना जाता है दान

वसंत ऋतु के अंत और ग्रीष्म ऋतु का प्रारंभ का दिन भी है इसलिए अक्षय तृतीया के दिन जल से भरे घड़े, कुल्हड़, पंखे, खडाऊं, छाता, चावल, नमक, घी, खरबूजा, ककड़ी, चीनी, साग, इमली, सत्तू आदि गरमी में लाभकारी वस्तुओं का दान पुण्यकारी माना गया है। इस तिथि का कितना महत्व है यह इस बात से भी पता चलता है कि सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ इसी तिथि से हुआ है। परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था। तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के कपाट भी इसी तिथि से ही खुलते हैं। वृंदावन स्थित श्री बांके बिहारी जी मन्दिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं। इसी दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था और द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ था।

सौभाग्य और सफलता का सूचक

इस दिन ख़रीदा गया सोना कभी समाप्त नहीं होता, क्योंकि भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी स्वयं उसकी रक्षा करते हैं। हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार यह दिन सौभाग्य और सफलता का सूचक है।

जानिए क्या है कथा

अक्षय तृतीया का महत्व युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा था। तब श्रीकृष्ण बोले, ‘राजन! यह तिथि परम पुण्यमयी है। इस दिन दोपहर से पूर्व स्नान, जप, तप, होम तथा दान आदि करने वाला महाभाग अक्षय पुण्यफल का भागी होता है। इसी दिन से सतयुग का प्रारम्भ होता है। इस पर्व से जुड़ी एक प्रचलित कथा इस प्रकार है− प्राचीन काल में सदाचारी तथा देव ब्राम्हणों में श्रद्धा रखने वाला धर्मदास नामक एक वैश्य था। उसका परिवार बहुत बड़ा था। इसलिए वह सदैव व्याकुल रहता था। उसने किसी से व्रत के माहात्म्य को सुना।

कालान्तर में जब यह पर्व आया तो उसने गंगा स्नान किया। विधिपूर्वक देवी देवताओं की पूजा की। गोले के लड्डू, पंखा, जल से भरे घड़े, जौ, गेहूं, नमक, सत्तू, दही, चावल, गुड़, सोना तथा वस्त्र आदि दिव्य वस्तुएं ब्राम्हणों को दान कीं। स्त्री के बार−बार मना करने, कुटुम्बजनों से चिंतित रहने तथा बुढ़ापे के कारण अनेक रोगों से पीड़ित होने पर भी वह अपने धर्म कर्म और दान पुण्य से विमुख न हुआ। यही वैश्य दूसरे जन्म में कुशावती का राजा बना। अक्षय तृतीया के दान के प्रभाव से ही वह बहुत धनी तथा प्रतापी बना। वैभव संपन्न होने पर भी उसकी बुद्धि कभी धर्म से विचलित नहीं हुई। जैसा कि भगवान श्री विष्णु ने कहा था, मथुरा जाकर राजा ने बड़ी ही श्रद्धा के साथ वैसा ही किया और इस व्रत के प्रभाव से वह शीघ्र ही अपने पैरों को प्राप्त कर सका।

# Paper Hindi News #Breaking News in Hindi #Google News in Hindi #Hindi News Paper akashay tritiya akshay tritiya 2025 breakingnews latestnews special trendingnews