Supreme Court जमानत याचिका में बार-बार सहमति संबंध लिखना एक वकील को भारी पड़ गया। सुप्रीम कोर्ट ने वकील को फटकार लगाई और कहा कि आपको कानून की एबीसीडी नहीं पता है। नाबालिग लड़की से दुष्कर्म के आरोपी की जमानत याचिका में वकील ने बार-बार सहमति से संबंध का जिक्र कर रखा था। इससे सुप्रीम कोर्ट की पीठ नाराज हो गई।
नई दिल्ली। जमानत याचिका में बार-बार सहमति संबंध लिखना एक वकील को भारी पड़ गया। सुप्रीम कोर्ट ने वकील को फटकार लगाई और कहा कि आपको कानून की एबीसीडी नहीं पता है। नाबालिग लड़की से दुष्कर्म के आरोपी की जमानत याचिका में वकील ने बार-बार सहमति से संबंध का जिक्र कर रखा था।
इससे सुप्रीम कोर्ट की पीठ नाराज हो गई। पीठ वकील को यह बताना चाहती थी कि यदि पीड़िता नाबालिग है तो सहमति मायने नहीं रखती है। हालांकि बाद में वकील ने पीठ से माफी भी मांगी। इसके बाद शीर्ष अदालत ने पुलिस और अन्य को जमानत याचिका पर नोटिस जारी किया।
पीठ ने पूछा- लड़की की उम्र क्या है?
जस्टिस एन कोटिश्वर और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने गुरुवार को जमानत याचिका पर सुनवाई की। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि याचिका पढ़ने के बाद हम मानसिक तौर से बीमार हो गए। आपने एसएलपी (विशेष अनुमति याचिका) में कम से कम 20 बार ‘सहमति से संबंध’ लिख रखा है। जस्टिस सूर्यकांत ने पूछा कि लड़की की उम्र क्या है? याचिका में आपने खुद ही नाबालिग बता रखा है।
कानून की एबीसीडी नहीं पता
जस्टिस सूर्यकांत ने वकील से कहा कि आपने हर पैराग्राफ में ‘सहमति से संबंध’ लिखा है। सहमति से संबंध से आपका क्या मतलब है? आपको कानून की एबीसीडी नहीं पता है। आप एसएलपी दाखिल क्यों कर रहे हैं।
ये लोग कैसे एओआर के लिए योग्य हैं
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने पूछा कि क्या आप एओआर (एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड) हैं? पीठ ने आगे कहा कि ये लोग (एओआर के लिए) कैसे योग्य हैं? आप को बुनियादी कानून की जानकारी नहीं है। 20 बार आपने ‘सहमति से संबंध’ लिख रखा है। कल को आप कहेंगे कि 8 महीने के बच्चे के साथ भी सहमति से संबंध थे।
क्या होते हैं एओआर?
एओआर यानी एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड वे वकील होते हैं, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट में मामले और याचिका दाखिल करने का अधिकार होता है। सुप्रीम कोर्ट ही वकीलों के लिए एओआर परीक्षा का आयोजन करता है।