सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के मौजूदा हाई कोर्ट जज पर लोकपाल की जांच से जुड़े आदेश के मामले में जुलाई में सुनवाई तय की है। हाई कोर्ट के जज पर एक अतिरिक्त जिला जज और उसी हाईकोर्ट के एक अन्य जज को प्रभावित करने का आरोप लगाया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को भ्रष्टाचार विरोधी संस्था लोकपाल के उस आदेश पर जुलाई में सुनवाई करने का फैसला किया है, जिसमें हाई कोर्ट के मौजूदा जजों के खिलाफ शिकायतों की जांच करने का निर्देश दिया गया है। चीफ जस्टिस (सीजेआई) संजीव खन्ना की अध्यक्षता में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस अभय एस. ओका की विशेष पीठ ने कहा कि मामले को किसी और पीठ के समक्ष भेजा जाएगा।
जस्टिस ओका ने कहा, ‘इस मामले पर सीजेआई को फैसला लेना है’। यह एक प्रतिष्ठा का विषय है। वहीं, ‘जस्टिस गवई ने कहा, हम इसकी सुनवाई जुलाई में करेंगे।’ लोकपाल ने दो शिकायतों के आधार पर 27 जनवरी को हाईकोर्ट के एक मौजूदा अतिरिक्त जज के खिलाफ जांच का आदेश जारी किया था। सुप्रीम कोर्ट इस मामले का स्वत: संज्ञान लेकर शिकायतों का निपटारा कर रहा था।
शिकायतों में क्या आरोप लगाया गया
शिकायतों में आरोप लगाया गया है कि न्यायाधीश ने राज्य के एक अतिरिक्त जिला न्यायाधीश और उसी उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश को निजी कंपनी द्वारा शिकायतकर्ता के खिलाफ दायर मुकदमे से निपटने के लिए फर्म को लाभ पहुंचाने के लिए प्रभावित किया।इन शिकायतों में आरोप लगाया गया था कि जज राज्य में एक अतिरिक्त जिला जज और उसी हाईकोर्ट के एक अन्य जज (जो एक निजी कंपनी की ओर से शिकायतकर्ता के खिलाफ दायर मुकदमे की सुनवाई कर रहे थे) को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे थे।
‘न्यायपालिका की आजादी से जुड़ा मामला’
- आरोप है कि हाईकोर्ट के जज निजी कंपनी के ग्राहक थे, जब वह बार में वकील के रूप में काम करते थे।
- शीर्ष कोर्ट ने 20 फरवरी को लोकपाल के आदेश पर रोक लगाते हुए कहा था कि यह बहुत ही परेशान करने वाला है और न्यायपालिका की आजादी से जुड़ा मामला है।
- उस दिन कोर्ट ने केंद्र सरकार, लोकपाल रजिस्ट्रार और शिकायतकर्ता को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।
- इसके बाद 18 मार्च सुप्रीम कोर्ट ने कह कि वह यह जांच करेगा कि लोकपाल के पास मौजूदा हाईकोर्ट के जजों के खिलाफ शिकायतें सुनने का अधिकार है या नहीं।
शीर्ष कोर्ट ने न्याय मित्र से मांगी सहायता
- कोर्ट ने वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार से न्याय मित्र के रूप में मदद मांगी थी।
- केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हाईकोर्ट जज लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 1013 के दायरे में नहीं आते।
लोकपाल ने अपने आदेश में क्या कहा था
लोकपाल ने अपने आदेश में कहा कि इन दोनों शिकायतों और संबंधित दस्तावेजों को सीजेआई के कार्यालय को भेजा जाए, ताकि वे इस पर विचार कर सकें। लोकपाल की पीठ ने 27 जनवरी को कहा था, सीजेआई के मार्गदर्शन का इंतजार करते हुए इन शिकायतों पर विचार फिलहाल चार हफ्तों के लिए टाला जाता है, ताकि अधिनियम की धारा 20 (4) में दी गई समयसीमा का पालन हो सके। लोकपाल ने यह भी कहा था, हमने केवल एक मामले पर अंतिम फैसला दिया है कि हाई कोर्ट के जज संसद द्वारा बनाए गए कानून की धारा 14 के तहत आते हैं। इससे अधिक या कम कुछ नहीं। हमने आरोपों की सच्चाई या मेरिट की जांच नहीं की है।
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