सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में स्थित विशालगढ़ किले में बकरीद और उर्स के दौरान पशु बलि की अनुमति देने वाले बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया है। यह याचिका विशालगढ़ किले में पशु बलि पर रोक की मांग करती थी, क्योंकि किला एक संरक्षित स्मारक है।
क्या है पूरा मामला
बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला: 3 जून 2025 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने हजरत पीर मलिक रेहान दरगाह न्यास की अर्जी पर फैसला सुनाते हुए बकरीद (7 जून 2025) और उर्स (8-12 जून 2025) के दौरान विशालगढ़ किले में स्थित दरगाह पर पशु बलि की अनुमति दी थी। कोर्ट ने शर्त रखी कि बलि केवल निजी और बंद जगह (गेट नंबर 19, श्री मुबारक उस्मान मुजावर की जमीन) पर होगी, जो किले से 1.4 किमी दूर है। यह अनुमति न्यास और अन्य श्रद्धालुओं पर लागू है। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि यह प्रथा पुरानी है और मांस तीर्थयात्रियों व आसपास के ग्रामीणों में बांटा जाता है।
पुरातत्व विभाग का रुख:
पुरातत्व विभाग ने महाराष्ट्र प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल अधिनियम का हवाला देते हुए किले में पशु बलि पर रोक लगाई थी, क्योंकि विशालगढ़ किला एक संरक्षित स्मारक है।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई:
याचिकाकर्ता ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और तत्काल सुनवाई की मांग की।
जस्टिस संजय करोल की बेंच ने कहा कि विशालगढ़ किले में पहले भी धार्मिक गतिविधियों की अनुमति थी और यह कोई नई प्रथा नहीं है। उन्होंने उल्लेख किया कि त्रिपुरा हाईकोर्ट में उन्होंने पशु वध पर प्रतिबंध लगाया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कुछ शर्तों के साथ इसे अनुमति दी थी ताकि यह विनियमित क्षेत्र में हो और भीड़ इकट्ठा न हो।
कोर्ट ने तत्काल सुनवाई की आवश्यकता न होने का हवाला देते हुए याचिका पर जल्द सुनवाई से इनकार किया।
वर्तमान स्थिति:
सुप्रीम कोर्ट ने अभी इस मामले में अंतिम फैसला नहीं सुनाया है, और बॉम्बे हाईकोर्ट का आदेश लागू रहेगा, जिसके तहत बकरीद और उर्स के दौरान शर्तों के साथ पशु बलि की अनुमति है।
याचिकाकर्ता का तर्क है कि किला एक संरक्षित स्मारक होने के कारण वहां ऐसी गतिविधियों पर रोक होनी चाहिए।
भारत में पशु बलि को लेकर कानून राज्य-विशिष्ट हैं। गुजरात, केरल, पुडुचेरी, और राजस्थान जैसे राज्यों में मंदिरों या सार्वजनिक स्थानों पर पशु बलि पर प्रतिबंध है। सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में आदेश दिया था कि पशु वध केवल कानूनी रूप से निर्धारित क्षेत्रों में ही हो सकता है।
नेपाल के गढ़ीमाई उत्सव में पशु बलि पर प्रतिबंध का उदाहरण भी सामने है, जहां नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने इसे रोकने का आदेश दिया था।