नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) से जुड़े एक सड़क दुर्घटना मामले में बड़ा और ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। अदालत ने कहा कि यदि किसी बच्चे की मौत हो जाती है या वह स्थायी रूप से दिव्यांग हो जाता है, तो क्षतिपूर्ति की गणना उसे कुशल श्रमिक मानते हुए की जाएगी।
अब तक ऐसी स्थिति में काल्पनिक आय (Notion Income) यानी 30 हजार रुपये वार्षिक के आधार पर मुआवजा तय किया जाता था। लेकिन कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अब राज्य में कुशल श्रमिक का न्यूनतम वेतन ही बच्चे की आय माना जाएगा।
बीमा कंपनी पर भी जिम्मेदारी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दावेदार न्यूनतम वेतन से जुड़े दस्तावेज न्यायाधिकरण के समक्ष प्रस्तुत करेगा। यदि वह ऐसा नहीं कर पाता तो दस्तावेज उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी बीमा कंपनी की होगी। कोर्ट ने निर्देश दिया कि इस फैसले की प्रति सभी मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरणों को भेजी जाए।
मध्य प्रदेश का मामला
यह मामला 2012 का है, जब इंदौर में आठ वर्षीय हितेश पटेल सड़क पर खड़ा था और एक वाहन की टक्कर से गंभीर रूप से घायल हो गया। उसे 30% स्थायी दिव्यांगता आई। मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण ने बीमा कंपनी को 3.90 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया। बाद में हाई कोर्ट ने इसे बढ़ाकर 8.65 लाख रुपये कर दिया।
अब सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने साफ कर दिया है कि भविष्य में बच्चों के मामलों में मुआवजा कुशल श्रमिक के न्यूनतम वेतन के आधार पर तय होगा। वर्तमान में मध्य प्रदेश में कुशल श्रमिक का न्यूनतम वेतन 14,844 रुपये मासिक है।
भारत में कितने Supreme Court हैं?
संविधान के अनुच्छेद 124 में कहा गया है कि “भारत का एक सर्वोच्च न्यायालय होगा।” संविधान के लागू होने के साथ ही 26 जनवरी 1950 को सर्वोच्च न्यायालय अस्तित्व में आया। सर्वोच्च न्यायालय ने शुरू में पुराने संसद भवन से काम किया, लेकिन 1958 में इसे तिलक मार्ग, नई दिल्ली स्थित वर्तमान भवन में स्थानांतरित कर दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट में कितने ब्राह्मण जज हैं?
ऐसा लगता है कि न्यायमूर्ति कौल की सेवानिवृत्ति तक, न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ सहित कम से कम आठ ब्राह्मण न्यायाधीश थे । 2023 की नियुक्तियों के साथ, ऐसा प्रतीत होता है कि वर्तमान 33 न्यायाधीशों (न्यायालय का 36.4 प्रतिशत) में से कम से कम 12 ब्राह्मण समुदायों से आते हैं।
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