श्रीमती सुरेखा यादव (Surekha Yadav), जिन्हें एशिया (Asia) की पहली महिला ट्रेन चालक के रूप में जाना जाता है, 36 वर्षों की शानदार और प्रेरणादायक सेवा के बाद भारतीय रेलवे से सेवानिवृत्त होने जा रही हैं। उनकी यह यात्रा न केवल भारतीय रेलवे के इतिहास में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर है, बल्कि यह लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण का एक जीवंत प्रतीक भी है। सुरेखा यादव ने अपने साहस, समर्पण और दृढ़ संकल्प से न केवल रूढ़ियों को तोड़ा, बल्कि लाखों महिलाओं को अपने सपनों को साकार करने के लिए प्रेरित भी किया।
प्रारंभिक जीवन और करियर की शुरुआत
सुरेखा यादव का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले में हुआ था। 1980 के दशक में, जब रेलवे जैसे तकनीकी और पुरुष-प्रधान क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी लगभग न के बराबर थी, सुरेखा ने इस क्षेत्र में कदम रखने का साहसिक निर्णय लिया। 1988 में, वह भारतीय रेलवे में सहायक लोको पायलट के रूप में शामिल हुईं। 1989 में, उन्होंने पहली बार ट्रेन चलाकर इतिहास रच दिया, जिससे वह न केवल भारत बल्कि पूरे एशिया की पहली महिला ट्रेन चालक बनीं। यह उपलब्धि उस समय की सामाजिक और व्यावसायिक बाधाओं को देखते हुए अभूतपूर्व थी।
चुनौतियों का सामना
सुरेखा की यात्रा बाधाओं से भरी थी। शुरुआती दिनों में उन्हें तकनीकी जटिलताओं, सामाजिक पूर्वाग्रहों और लैंगिक भेदभाव का सामना करना पड़ा। कई लोगों ने उनके इस पेशे को चुनने पर संदेह जताया, लेकिन सुरेखा ने हर चुनौती को अवसर में बदला। उन्होंने मालगाड़ी से लेकर पैसेंजर ट्रेन और फिर सुपरफास्ट ट्रेनों तक का संचालन किया। उनकी मेहनत और लगन ने उन्हें मध्य रेलवे में एक सम्मानित नाम बना दिया।
उपलब्धियां और सम्मान
सुरेखा यादव की उपलब्धियां केवल ट्रेन चलाने तक सीमित नहीं थीं। उन्होंने अपने करियर में कई महत्वपूर्ण ट्रेनों का संचालन किया, जिनमें पुणे-मुंबई प्रगति एक्सप्रेस और दक्कन क्वीन जैसी प्रतिष्ठित ट्रेनें शामिल हैं। 2011 में, उन्हें “लोकमत सखी पुरस्कार” से सम्मानित किया गया, जो महिलाओं के लिए प्रेरणादायक योगदान के लिए दिया जाता है। 2018 में, भारत सरकार ने उन्हें “प्रथम महिला पुरस्कार” से नवाजा, जो उनकी असाधारण उपलब्धियों का प्रमाण है।
महिला सशक्तिकरण की प्रतीक
सुरेखा यादव की कहानी केवल एक व्यक्तिगत सफलता की कहानी नहीं है; यह भारतीय समाज में बदलाव का प्रतीक है। उन्होंने न केवल रेलवे में महिलाओं के लिए रास्ता खोला, बल्कि अन्य क्षेत्रों में भी महिलाओं को प्रेरित किया। आज, भारतीय रेलवे में सैकड़ों महिला लोको पायलट कार्यरत हैं, और इसका श्रेय काफी हद तक सुरेखा की प्रेरणा और उनके द्वारा बनाए गए रास्ते को जाता है। उनकी कहानी ने यह साबित किया कि दृढ़ इच्छाशक्ति और मेहनत से कोई भी लक्ष्य हासिल किया जा सकता है, चाहे सामाजिक बाधाएं कितनी भी बड़ी हों।
विरासत और प्रेरणा
सेवानिवृत्ति के बाद भी, सुरेखा यादव की विरासत भारतीय रेलवे और समाज में जीवित रहेगी। वह एक ऐसी मशाल हैं, जो आने वाली पीढ़ियों को रोशनी दिखाती रहेंगी। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि साहस, समर्पण और आत्मविश्वास के साथ कोई भी बाधा पार की जा सकती है। सुरेखा यादव न केवल भारतीय रेलवे की गर्व हैं, बल्कि हर उस महिला की प्रेरणा हैं जो अपने सपनों को हकीकत में बदलना चाहती है।
सुरेखा यादव की 36 वर्षों की सेवा न केवल उनके व्यक्तिगत साहस और समर्पण की कहानी है, बल्कि यह भारतीय रेलवे और समाज में महिलाओं की बढ़ती भूमिका का भी प्रतीक है। उनकी सेवानिवृत्ति एक युग के अंत का प्रतीक हो सकती है, लेकिन उनकी प्रेरणा और योगदान हमेशा जीवित रहेंगे। सुरेखा यादव की कहानी हर उस व्यक्ति के लिए एक सबक है जो यह मानता है कि सपने देखने और उन्हें पूरा करने में कोई सीमा नहीं होती।
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