लखनऊ, 19 सितंबर 2025: भारतीय वायुसेना (IAF) के MiG-21 बाइसन, जो अपनी दुर्घटनाओं के कारण ‘फ्लाइंग कॉफिन’ कहलाते हैं, 26 सितंबर 2025 को आखिरी स्क्वाड्रन के रिटायरमेंट के साथ इतिहास बनने जा रहे हैं। चीन द्वारा अपने पुराने J-6 जेट्स (MiG-19 का चाइनीज वर्जन) को सुपरसोनिक ड्रोन में बदलने की सफलता ने भारत में सवाल उठाया है: क्या MiG-21 को ड्रोन में कन्वर्ट किया जा सकता है? यह लेख तकनीकी पहलुओं, संभावनाओं और चुनौतियों पर प्रकाश डालता है।
MiG-21 को ड्रोन में बदलने की तकनीक
MiG-21 को ड्रोन में बदलने के लिए कई तकनीकी संशोधन जरूरी हैं, जैसा कि चीन ने J-6 के साथ किया। मुख्य प्रक्रियाएं:
- ऑटोपायलट सिस्टम इंस्टॉलेशन:
- MiG-21 में मैनुअल कंट्रोल सिस्टम है। इसे अनमैन्ड बनाने के लिए ऑटोपायलट सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर लगाना होगा। यह सिस्टम स्वायत्त उड़ान, नेविगेशन और मिशन प्लानिंग को संभालेगा।
- उदाहरण: GPS-आधारित नेविगेशन, टेरेन-फॉलोइंग रडार, और ऑटोमैटिक टेकऑफ/लैंडिंग मॉड्यूल।
- लागत: प्रति यूनिट ₹1-2 करोड़ (अनुमानित)।
- पायलट-केंद्रित सिस्टम हटाना:
- कॉकपिट से इजेक्टर सीट, ऑक्सीजन सिस्टम, और ह्यूमन इंटरफेस (जैसे डिस्प्ले, कंट्रोल स्टिक) हटाए जाएंगे।
- फ्यूल टैंक को छोटा कर पेलोड क्षमता बढ़ाई जा सकती है। उदाहरण: हथियार या सेंसर के लिए 500-1000 किग्रा अतिरिक्त जगह।
- कम्युनिकेशन और कंट्रोल सिस्टम:
- ड्रोन को ग्राउंड स्टेशन से रियल-टाइम कंट्रोल के लिए सैटेलाइट लिंक (SATCOM) या रेडियो फ्रीक्वेंसी मॉड्यूल चाहिए।
- सायबर सिक्योरिटी जरूरी है ताकि दुश्मन सिग्नल जैम न कर सके।
- भारत में DRDO का ‘SDI’ (सॉफ्टवेयर डिफाइन्ड इंटरफेस) इसका आधार बन सकता है।
- पेलोड इंटीग्रेशन:
- टारगेट ड्रोन: सेंसर, रडार रिफ्लेक्टर, या इलेक्ट्रॉनिक जैमर।
- स्ट्राइक ड्रोन: लेजर-गाइडेड बम, छोटी मिसाइलें (जैसे DRDO की SAAW)।
- रेकॉनिसेंस: इन्फ्रारेड कैमरा, ELINT (इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस) सेंसर।
- एवियोनिक्स अपग्रेड:
- पुराने एनालॉग सिस्टम को डिजिटल फ्लाई-बाय-वायर से बदलना। यह मिशन प्रोफाइल को प्रोग्राम करने में मदद करेगा।
- HAL और DRDO के मौजूदा तेजस प्रोग्राम से तकनीक ली जा सकती है।
भारत के लिए संभावनाएं
- लागत प्रभावी: नया UCAV (जैसे घाटक) बनाने की लागत ₹50-100 करोड़ है, जबकि MiG-21 कन्वर्शन ₹5-10 करोड़ में संभव है। 40-50 बचे MiG-21 से 100+ ड्रोन बन सकते हैं।
- उपयोग:
- टारगेट ड्रोन: अकाश-NG, QRSAM, और प्रोजेक्ट कुशा के SAM टेस्टिंग के लिए। पहले से प्रोजेक्ट कुशा में सीमित उपयोग।
- स्ट्राइक ड्रोन: पाकिस्तानी ड्रोन्स के खिलाफ ऑपरेशन सिंदू जैसे मिशन में डिकॉय या लाइट स्ट्राइक।
- स्वार्म टेक्नोलॉजी: DRDO के ALFA-S प्रोग्राम के साथ इंटीग्रेशन।
- रणनीतिक लाभ: सैचुरेशन स्ट्राइक्स, दुश्मन एयर डिफेंस को टेस्ट करना, और LAC पर चीन के खिलाफ सस्ता विकल्प।
चुनौतियां
- पुरानी तकनीक: MiG-21 की 1960 की डिजाइन में फ्लाई-बाय-वायर नहीं है। अपग्रेड महंगा और समय लेने वाला।
- मेंटेनेंस: ज्यादातर MiG-21 स्क्रैप हालत में हैं। इंजन और एयरफ्रेम की उम्र रिलायबिलिटी घटाती है।
- बजट और प्राथमिकता: IAF तेजस Mk2 और घाटक UCAV पर फोकस कर रहा है। MiG-21 कन्वर्शन को प्राथमिकता नहीं मिली।
- सुरक्षा जोखिम: कम्युनिकेशन फेलियर या जैमिंग से ड्रोन दुश्मन के हाथ लग सकता है।
विशेषज्ञ राय और भविष्य
वायुसेना विशेषज्ञों का मानना है कि भारत टारगेट ड्रोन के लिए MiG-21 का उपयोग कर सकता है, जैसा कि प्रोजेक्ट कुशा में हो रहा है। स्ट्राइक ड्रोन के लिए HAL का CATS और ALFA-S बेहतर विकल्प हैं। चीन का J-6 मॉडल प्रेरणा देता है, लेकिन भारत को स्वदेशी डिजिटल सिस्टम और सायबर सिक्योरिटी पर जोर देना होगा। 1,000+ रिटायर्ड MiG-21 का स्टॉक लागत बचत का अवसर है, पर DRDO और HAL को तेजी से काम करना होगा।
MiG-21 को ड्रोन में बदलना तकनीकी रूप से संभव है और लागत प्रभावी हो सकता है। टारगेट ड्रोन बनाना आसान और तुरंत संभव है, लेकिन स्ट्राइक ड्रोन के लिए भारत को स्वदेशी UCAV पर फोकस करना चाहिए। यह कदम IAF की क्षमता बढ़ा सकता है, बशर्ते तकनीकी और बजट चुनौतियां दूर हों।
ये भी पढें