बिहार में विधानसभा [wk] चुनाव से पहले वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर सियासी घमासान मचा है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने इसे ‘वोटबंदी’ करार देते हुए चेतावनी दी कि 1% वोटरों की गड़बड़ी 36 सीटों के नतीजों को प्रभावित कर सकती है। बिहार की वोटर लिस्ट में 7.9 करोड़ मतदाता हैं, और 1% (लगभग 7.9 लाख वोट) कटने से करीबी मुकाबले वाली सीटें पलट सकती हैं।
क्या है आंकड़ों का खेल ?
पिछले विधानसभा चुनाव में 12 सीटों पर जीत-हार का अंतर 1,000 वोट से कम था, और 60 सीटों पर यह 5,000 वोट के आसपास रहा। तेजस्वी का डर खासकर सीमांचल और मिथिलांचल की 36 सीटों को लेकर है, जहां यादव-मुस्लिम समीकरण आरजेडी की ताकत है। किशनगंज (105.16%), अररिया (102.23%), कटिहार (101.92%), और पूर्णिया (100.97%) में आधार कार्ड धारकों की संख्या आबादी से अधिक है, जिससे फर्जी वोटरों की आशंका बढ़ी है।
तेजस्वी का आरोप:
तेजस्वी ने इसे दलित, पिछड़ा, और अल्पसंख्यक वोटरों को हटाने की साजिश बताया। उन्होंने 9 जुलाई को चक्का जाम का ऐलान किया और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। उनका कहना है कि 73% बिहार बाढ़ प्रभावित होने के बावजूद 25 दिनों में वेरिफिकेशन अव्यवहारिक है।
विपक्ष बनाम सत्ता:
बीजेपी का कहना है कि यह रूटीन प्रक्रिया है, जो फर्जी वोटरों को हटाएगी। तेजस्वी ने इसे लोकतंत्र पर हमला बताया, खासकर जब आधार और राशन कार्ड जैसे दस्तावेज स्वीकार नहीं हो रहे। यह विवाद बिहार की सियासत को गरमा रहा है।
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