सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार, 8 सितंबर 2025 को तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी के खिलाफ दायर मानहानि मामले में भारतीय जनता पार्टी (BJP) की तेलंगाना इकाई की याचिका को खारिज कर दिया। यह मामला 2024 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान रेड्डी के उस बयान से संबंधित था, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि यदि बीजेपी 400 से अधिक सीटें जीतती है, तो वह संविधान में बदलाव कर एससी/एसटी/ओबीसी आरक्षण को खत्म कर देगी। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए साफ किया कि अदालतों को राजनीतिक युद्ध का मैदान नहीं बनाया जाना चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस अतुल एस. चंदुरकर की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा, “हम बार-बार कह रहे हैं कि अदालतों का उपयोग राजनीतिक लड़ाई के लिए नहीं करना चाहिए। अगर आप राजनेता हैं, तो आपको आलोचना सहने के लिए मोटी चमड़ी रखनी चाहिए।” कोर्ट ने याचिकाकर्ता को आगे तर्क करने पर 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाने की चेतावनी भी दी।
यह मामला तब शुरू हुआ जब बीजेपी की तेलंगाना इकाई के महासचिव कासम वेंकटेश्वरलु ने मई 2024 में रेड्डी के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया। उनका आरोप था कि रेड्डी का बयान झूठा और भ्रामक था, जिसने बीजेपी और उसके कार्यकर्ताओं की छवि को नुकसान पहुंचाया। एक निचली अदालत ने इस मामले में रेड्डी को समन जारी किया था, लेकिन तेलंगाना हाई कोर्ट ने 1 अगस्त 2025 को इस शिकायत को खारिज कर दिया। हाई कोर्ट ने कहा कि रेड्डी का बयान राष्ट्रीय बीजेपी के खिलाफ था, न कि तेलंगाना इकाई के खिलाफ, और शिकायतकर्ता व्यक्तिगत रूप से “अग्रीव्ड पर्सन” नहीं थे।
हाई कोर्ट ने यह भी माना कि राजनीतिक भाषणों में मानहानि का दावा करने का स्तर ऊंचा होना चाहिए, क्योंकि ऐसे बयान अक्सर अतिशयोक्तिपूर्ण होते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के इस फैसले को बरकरार रखा और बीजेपी की याचिका को खारिज कर दिया। रेड्डी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने तर्क दिया कि राजनीतिक बयानबाजी को मानहानि का आधार नहीं बनाया जा सकता। इस फैसले ने न केवल रेड्डी को राहत दी, बल्कि यह भी स्पष्ट किया कि अदालतें राजनीतिक विवादों को सुलझाने का मंच नहीं हैं.
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