आरोप लगाने वालों से जिरह करने का नया और अंतिम अवसर
हैदराबाद : न्यायमूर्ति पीसी घोष आयोग (PC Ghose Commission) ने स्वयं एक गंभीर प्रक्रियागत उल्लंघन किया है। इससे न केवल आयोग के निष्कर्षों की विश्वसनीयता और कानूनी स्थिति कमज़ोर होगी, बल्कि कांग्रेस सरकार के लिए राजनीतिक रूप से भी प्रतिकूल साबित होगी। चंद्रशेखर राव, पूर्व मंत्री टी हरीश राव और ईटेला राजेंद्र के साथ-साथ कई अधिकारियों के खिलाफ गंभीर आरोप लगाने के बाद, आयोग जांच आयोग अधिनियम, 1952 की धारा 8 (बी) के तहत अनिवार्य नोटिस जारी करने में विफल रहा। हालांकि वे आयोग के समक्ष उपस्थित हुए और सवालों के जवाब दिए, लेकिन आयोग (Commission) द्वारा उन्हें दोषी ठहराए जाने के बाद, उन्हें खुद का बचाव करने या उनके खिलाफ आरोप लगाने वालों से जिरह करने का नया और अंतिम अवसर नहीं दिया गया।
आयोग के निष्कर्षों पर जताई कड़ी आपत्ति
कानूनी विशेषज्ञों का तर्क है कि यह विफलता महज प्रक्रियागत तकनीकी नहीं है, बल्कि प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन है, जो यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी व्यक्ति की बात अनसुनी न की जाए। वरिष्ठ बीआरएस नेता और पूर्व सांसद बी. विनोद कुमार , जो एक अधिवक्ता भी हैं, ने जाँच आयोग अधिनियम, 1952 की धारा 8(सी) का उल्लंघन करते हुए आयोग के निष्कर्षों पर कड़ी आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि इस तरह के मौलिक अधिकार से वंचित करने से रिपोर्ट संदिग्ध हो जाती है।
उन्होंने ज़ोर देकर कहा, ‘जब कोई आयोग किसी को दोषी पाता है, तो उसे न केवल पेश होने का, बल्कि वकील, तर्क और जिरह के ज़रिए अपना बचाव करने का भी मौका देना चाहिए। यहाँ ऐसा नहीं हुआ।’ इस सिद्धांत की सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 2003 के एल.के. आडवाणी बनाम बिहार राज्य मामले में स्पष्ट रूप से पुष्टि की गई थी, और बाद में 2014 में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा भी इसे दोहराया गया, जिसने इसी कारण से टी.एच.बी. चलपथी आयोग के निष्कर्षों के कुछ हिस्सों को रद्द कर दिया था।
खुद प्रक्रियागत लग रहा खामी का आरोप
तेलंगाना सरकार अब रिपोर्ट विधानसभा में पेश करने की योजना बना रही है, और बीआरएस अपनी कानूनी और राजनीतिक जवाबी कार्रवाई की तैयारी कर रहा है, ऐसे में आयोग की अपनी ही प्रक्रियागत चूक उसके लिए भारी पड़ सकती है। दरअसल, कथित प्रक्रियागत खामियों की जाँच के लिए गठित आयोग पर अब खुद प्रक्रियागत खामी का आरोप लग रहा है। पीसी घोष आयोग पर अब जल्दबाज़ी, पक्षपात और असंवैधानिक होने का ठप्पा लगने का खतरा मंडरा रहा है। इसके अलावा, धारा 8(बी) का उल्लंघन करके, घोष आयोग ने अदालत में अपनी विश्वसनीयता को प्रभावी रूप से कम कर दिया है। इस प्रकार, चंद्रशेखर राव या अन्य के विरुद्ध कोई भी प्रतिकूल टिप्पणी प्रक्रियागत खामियों के कारण अमान्य मानी जा सकती है। रिपोर्ट में सुधार किए बिना न्यायिक जाँच संभव नहीं है, और अब तो बहुत देर हो चुकी है।
केसीआर कौन हैं?
तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) के संस्थापक और अध्यक्ष के. चंद्रशेखर राव, जिन्हें आमतौर पर केसीआर कहा जाता है, तेलंगाना राज्य के पहले मुख्यमंत्री रहे हैं। वे लंबे समय तक अलग तेलंगाना राज्य की मांग को लेकर आंदोलन करते रहे और वर्ष 2014 में तेलंगाना राज्य बनने के बाद मुख्यमंत्री बने।
तेलंगाना के पिछले सीएम कौन थे?
2023 के विधानसभा चुनावों के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता ए. रेवंत रेड्डी ने केसीआर को हराकर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इससे पहले तेलंगाना राज्य बनने के बाद केसीआर लगातार दो बार मुख्यमंत्री रहे। तेलंगाना गठन से पहले यह क्षेत्र आंध्र प्रदेश का हिस्सा था, जहां एन. किरण कुमार रेड्डी आखिरी मुख्यमंत्री थे।
केसीआर हाउस का नाम क्या है?
हैदराबाद स्थित केसीआर का आधिकारिक मुख्यमंत्री निवास “प्रगति भवन” के नाम से जाना जाता है। यह एक भव्य और सुरक्षित परिसर है जहाँ मुख्यमंत्री के कार्यालय के साथ-साथ उनका निवास स्थान भी स्थित है। इसके अलावा उनका निजी आवास “गजवेल फार्महाउस” भी चर्चित रहा है।
Read Also : Rainfall Impact : 2025 में खरीफ की बुआई में तेजी