Maharashtra : बालासाहेब की विरासत के वास्ते एक होंगे ‘ठाकरे’

By Surekha Bhosle | Updated: July 3, 2025 • 8:12 PM

ठाकरे परिवार और मातोश्री

क्यों राज ने ‘मराठी मानुस’ पार्टी बनाई थी. कैसे ये सत्ता की लड़ाई, मातोश्री के भीतर के रिश्तों और टकरावों की लड़ाई में भी बदल गई थी. अब एक बार फिर दोनों ठाकरे के एक होने की चर्चा है, लेकिन देखना ये होगा कि क्या यह मातोश्री की महाभारत को खत्म कर पाएंगे?

सफेद कुर्ता… कंधे पर ब्राउन अचकन… माथे पर लाल टीका… और काले फ्रेम वाला चश्मा… बाल पूरी तरह से पीछे की ओर कढ़े हुए और एक उंगली सामने की ओर आक्रामक अंदाज बयां करती हुई।

जब हाथ में ब्रश पकड़ते तो कार्टून के जरिए बड़ी से बड़ी बातों पर बखूबी तंज कसते. भले ही ये सारी बातें शिवसेना के संस्थापक और हिंदुत्व आइकन बालासाहेब केशव ठाकरे से मिलती हों लेकिन ऐसा ही हूबहू अंदाज एक और शख्स का है जिसका नाम है ‘स्वराज’ यानी ‘राज ठाकरे’।

बालासाहेब ठाकरे (Balasaheb Thackeray) जैसे तेवर और उनके व्यक्तित्व की तरह ही राज ठाकरे के गरम मिजाज को देखते हुए हर कोई यही मान बैठा था कि बालासाहेब के सियासी वारिस राज ठाकरे ही होंगे, लेकिन इसी बीच एक ऐसी घटना घटी जिसने राज ठाकरे (Raj Thackeray) के सियासी सफर में ऐसा ब्रेक लगाया जो उनकी जिंदगी का एक बड़ा टर्निंग पॉइंट साबित हुआ।

हालात ऐसे बने की राज ठाकरे ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया और पार्टी की तरफ मुड़कर भी नहीं देखा. आज भले ही एक बार फिर उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के एक होने की चर्चा उठ रही हो लेकिन एक वक्त था जब बालासाहेब ठाकरे के बाद दूसरे नंबर पर कहे जाने वाले राज ठाकरे को पार्टी से बेआबरू होकर निकलना पड़ा था।

उम्र के साथ ‘स्वराज’ को मिली नई पहचान ‘राज’

श्रीकांत ठाकरे को संगीत से विशेष लगाव था. उन्होंने अपने संगीत प्रेम की वजह से ही अपने बेटे का नाम ‘स्वराज’ रखा था. स्वराज यानी ‘सुरों का बादशाह’. राज ठाकरे के पिता ने बचपन में अपने बेटे को तबला, गिटार और वायलिन की शिक्षा दी थी. राज ठाकरे बचपन से ही अपने चाचा बालासाहेब से काफी नजदीक थे।

चाचा जब भी घर पर होते तब राज ठाकरे उनकी गोद में ही दिखाई पड़ते. इसी दौरान साल 1969 में कर्नाटक बॉर्डर पर हुए विवाद की आंच मुंबई तक आ पहुंची और देखते ही देखते मुंबई में भी दंगे भड़क गए. इन दंगों में बालासाहेब का नाम आया और उन्हें, उनके सहयोगी मनोहर जोशी और दत्ताजी साल्वी के साथ तीन महीने के लिए जेल जाना पड़ा।

बालासाहेब Balasaheb के जेल जाने के बाद उनके भाई श्रीकांत उनसे मिलने जेल गए. उस वक्त राज ठाकरे भी उनके साथ थे. चाचा बालासाहेब को लगा था कि राज उन्हें देखकर उनके पास आ जाएंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इस पर बालासाहेब Balasaheb ने कहा, मुझे उसका (राज) दूर जाना अच्छा नहीं लगा लेकिन मुझे यकीन है वह मेरा प्यार फिर से हासिल करेगा।

उद्धव थे शांत स्वभाव तो राज थे गर्म मिजाज

उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे साथ ही बड़े हुए. दोनों एक साथ दादर के बाल मोहन विद्या मंदिर में पढ़ाई करते थे. पढ़ाई में हमेशा से ही उद्धव से पीछे रहने वाले राज ने कम उम्र में ही चाचा बालासाहेब के तौर तरीकों को सीखना शुरू कर दिया था।

जबकि उद्धव को अपने ताऊ श्रीकांत के साथ वक्त बिताना अच्छा लगता था. वक्त का पहिया इसी तरह से आगे बढ़ता गया और ठाकरे परिवार के दोनों बच्चे अब सियासी गलियारे में कदम रखने को तैयार थे. साल 1988 में बालासाहेब के भतीजे राज ठाकरे ने सक्रिय राजनीति में प्रवेश कर लिया था।

उस वक्त बालासाहेब Balasaheb के बेटे उद्धव भले ही पार्टी की सभी जनसभाओं में जाते थे लेकिन वहां मौजूद भीड़ और अपने पिता और भाई की तस्वीर खींचने में मशगूल रहते थे. चार साल के अंदर ही उद्धव, शिवसेना में सक्रिय भूमिका में आ गए थे. उद्धव और राज ठाकरे के कामकाज के तरीकों में फर्क साफ दिखाई पड़ता था. उद्धव जहां काफी शांत स्वभाव के थे वहीं राज अपने चाचा की तरह ही गर्म मिजाज थे।

राज को उस वक्त शिवसेना की छात्र इकाई भारतीय विद्यार्थी सेना और शिव उद्योग सेना का प्रमुख बनाया गया था. इनका काम मराठी युवाओं को रोजगार दिलाना था. ये वही वक्त था जब दुनिया में पॉप स्टार माइकल जैक्सन की दीवानगी बढ़ती जा रही थी. मराठी युवाओं में माइकल जैक्सन का क्रेज देखते हुए राज ठाकरे ने उन्हें भारत आने का निमंत्रण दिया और साल 1996 में पॉप स्टार माइल जैक्सन ने मुंबई में अपना शो किया था।

भीड़ देख ‘किंग ऑफ पॉप’ ने दिया 4 करोड़ का फंड

1 नवंबर 1996 को मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर भारी भीड़ हाथों में गुलदस्ता लिए खड़ी थी. हर कोई एक नजर किंग ऑफ पॉप यानी माइकल जैक्सन का दीदार करना चाहता था. ऐसा पहली बार था जब माइकल भारत में कोई शो करने के लिए आए थे।

उन्हें रिसीव करने खुद वहां पहुंचे थे. राज ठाकरे के साथ एयरपोर्ट पहुंची सोनाली बेंद्रे ने माइकल का गुलदस्ता देकर स्वागत किया और उनका काफिला सीधे बालासाहेब के घर ‘मातोश्री’ में जाकर रुका. माइकल से मुलाकात के दौरान बालासाहेब ने उन्हें चांदी का तबला और तानपूरा भेंट किया था. बताया जाता है कि माइकल का शो अंधेरी स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में था।

वहां पर 16 हजार लोगों की कैपेसिटी थी लेकिन शो देखने के लिए 70 हजार लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई थी. इस कॉन्सर्ट का उद्देश्य 27 हजार युवाओं को रोजगार दिलाना था. इस शो के बाद माइकल जैक्सन ने राज को 4 करोड़ रुपए का फंड दिया था. इस कॉन्सर्ट के बाद हर किसी को लग रहा था कि बालासाहेब ठाकरे अपनी विरासत आगे राज ठाकरे को ही सौंपेंगे लेकिन बालासाहेब के मन में कुछ और ही चल रहा था।

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