कठुआ ज़िले में 13 दिनों से चरमपंथ विरोधी अभियान जारी है.इस चरमपंथ विरोधी अभियान में अब तक जम्मू-कश्मीर पुलिस के चार जवानों की मौत हुई है । पांच जवान घायल भी हुए हैं.पुलिस ने इस अभियान में दो चरमपंथियों की मौत का भी दावा किया है.
ये अभियान कठुआ के कई इलाकों में सुरक्षाकर्मी चला रहे हैं ।इस अभियान की जम्मू -कश्मीर पुलिस के डीजीपी और आईजी खुद निगरानी कर रहे हैं.
ऑपरेशन के दूसरे दिन पुलिस महानिदेशक नलिन प्रभात की एक तस्वीर मीडिया में आई थी. उस तस्वीर में डीजीपी खुद हाथ में एके-47 लेकर सर्च अभियान में शामिल नज़र आए थे.
बीते तीस सालों में ऐसा पहली बार देखा गया, जब पुलिस के डीजीपी पद के अधिकारी ने खुद सर्च ऑपरेशन में हिस्सा लिया हो.
चरमपंथियों के ख़िलाफ़ कठुआ के कई इलाकों में अभियान जारी है. उनका कहना था कि जब तक सभी चरमपंथियों को मारा नहीं जाएगा, तब तक यह अभियान जारी रहेगा.
जिन जगहों पर ये अभियान चलाया जा रहा है, वह पूरा इलाका जंगलों से घिरा है, जिस वजह से समय लग रहा है और मुश्किलें आ रही हैं.
उनका ये भी कहना है कि ये पांच चरमपंथियों का ग्रुप था, जो पहले एक साथ थे। पहली मुठभेड़ के बाद ये अलग हो गए. उनका कहना था कि दो को तो मारा जा चुका है और तीन जो बाकी हैं, उनके ख़िलाफ़ यह अभियान चलाया जा रहा है.
उनका यह भी कहना था कि घने जंगलों और बड़ी -बड़ी चट्टानों की वजह से उन तक पहुंचने में मुश्किलें आ रही हैं। घने जंगलों के कारण ड्रोन्स से भी कोई ख़ास मदद नहीं मिल सकती है.
इस अभियान में सुरक्षाबलों के सामने क्या हैं चुनौतियां?
ये बात सच है कि 11 दिनों से अभियान चल रहा है और अभी तक पूरी कामयाबी मिली नहीं है. दरअसल, जिस जगह चरमपंथियों के ख़िलाफ़ अभियान चलाया जा रहा है वहाँ का इलाका ही ऐसा है कि सुरक्षाबलों को मुश्किलों का सामना करना ही पड़ेगा.”
“यह कोई साधारण इलाका नहीं है. ऊँचे पहाड़, घने जंगल और गुफाओं वाला इलाका है. अहम बात ये कि चरमपंथियों को सिखाया गया है कि कैसे बचना है. इन मुश्किल परिस्थितियों की उन्हें ट्रेनिंग दी गई है. यही वजह है कि वह इतने दिनों से बच रहे हैं.”
जम्मू-कश्मीर पुलिस के पूर्व महानिदेशक शिवपाल वैद कहते हैं कि कश्मीर और जम्मू के इलाकों में अंतर हैं. वो कहते हैं, “कश्मीर में मकानों के अंदर ये छुपे होते थे. मकान को आग लगाई जाती थी. जम्मू में ऐसा नहीं है. यहाँ जंगलों में ये लोग अपनी जगह बनाते हैं. जंगलों में अभियान चलाना मुश्किल होता है.”
इंटेलिजेंस को लेकर उठ रहे सवाल पर वो कहते हैं, “इसे इंटेलिजेंस की कोताही या लापरवाही बताना सही नहीं है. जब हमारे पड़ोसी ने ये तय किया है कि उसे किसी न किसी रूप में गड़बड़ी फैलानी है तो वो कभी सुरंग खोदकर इस पार आता है तो कभी तार काटकर और कभी कोई और तरीक़ा अपनाता है.”
कब हुआ था चरमपंथ विरोधी अभियान शुरू?

23 मार्च 2025
कठुआ ज़िले के सान्याल इलाके में सुरक्षाबलों ने एक चरमपंथ विरोधी अभियान शुरू किया था. इस इलाके में उन्हें चरमपंथियों की मौजूदगी की सूचना मिली थी.
अभियान शुरू करने के बाद पहली मुठभेड़ में एक छोटी बच्ची घायल हो गई थी. तीन दिनों के अभियान के दौरान सुरक्षाबलों के हाथ कुछ भी नहीं लगा था.
मुठभेड़ की जगह से चरमपंथी फरार हो गए थे। सुरक्षा बलों ने घटनास्थल से हथियार और गोला बारूद बरामद करने का दावा किया था.
27 मार्च 2025
कठुआ के सुफ़ाए ,जुटाना इलाके में सुरक्षाबलों और चरमपंथियों के बीच एक और मुठभेड़ हुई. इस मुठभेड़ में पुलिस के चार जवानों की मौत हो गई. वहीं दो चरमपंथी भी मारे गए.
ये मुठभेड़ खत्म होने के बाद कम से कम तीन चरमपंथी इस मुठभेड़ स्थल से भाग निकलने में सफल हो गए.
पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि बचे हुए चरमपंथी कठुआ के बिलावर जंगलों में छुपे हैं.
31 मार्च 2025
इस तारीख को सुरक्षाबलों और चरमपंथियों के बीच एक बार फिर मुठभेड़ हुई थी, जिसके बाद इस इलाके को भी पूरी तरह घेरा गया और चरमपंथियों की तलाश तेज़ कर दी गई है.
इस अभियान में जम्मू -कश्मीर पुलिस का विशेष दस्ता, भारतीय सेना और सीआरपीएफ की टुकड़ियां शामिल हैं.
कैसे मिली थी चरमपंथियों की सूचना?
पुलिस के मुताबिक़, सान्याल गाँव में 23 मार्च को एक स्थानीय महिला ने पांच चरमपंथियों को देखा था, जिसके बाद पुलिस को इस के बारे में जानकारी दी गई. पुलिस ने तुरंत कार्रवाई कर इलाके की घेराबंदी की थी. घेराबंदी के बाद इलाके में छुपे चरमपंथियों और पुलिस के बीच मुठभेड़ हुई थी.
कैसा है कठुआ का इलाका?

अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे कठुआ ज़िले के अधिकतर इलाक़े जंगलों से घिरे हैं. दूर -दराज़ के इलाकों तक जाने वाले रास्ते दुर्गम और पहाड़ी हैं. ये इलाका बीते कुछ समय से फिर एक बार सुर्ख़ियों में है.
बीते दो महीनों में कठुआ के कई इलाकों में कई नागरिकों की रहस्यमय हत्याएं भी हो रही हैं. बीते दो महीनों में यहाँ के रहने वाले पांच लोग अलग-अलग परिस्थितियों में पहले गायब हो गए और उसके बाद उनके शव पाए गए.
पुलिस ने अभियान वाले इलाके की परिस्थितियों की मुश्किलों का ज़िक्र किया है.
इस इलाके के बारे में जम्मू -कश्मीर पुलिस के महानिदेशक नलिन प्रभात ने 28 मार्च को पत्रकारों के एक सवाल के जवाब में कहा था, “आप लोग जानते हैं कि वहां किस तरह के ऊँचे पहाड़ हैं, गुफाएं और चट्टानें हैं और किस तरह के जंगल हैं. “
पुलिस ने इस हमले के लिए पाकिस्तान को ज़िम्मेदार ठहराया है.
कठुआ में इससे पहले भी कई चरमपंथी घटनाएं घट चुकी हैं. बीते साल कठुआ में सेना के पांच जवानों की एक चरमपंथी हमले में मौत हो गई थी और कई घायल भी हो गए थे.
साल 2024 में ही कठुआ के एक गाँव में हुए चरमपंथी हमले में एक नागरिक और सीआरपीएफ के एक जवान की मौत हो गई थी। पुलिस अधिकारियों की गाड़ी को भी निशाना बनाया था. इस घटना को अंजाम देने के बाद हमला करने वाले दो चरमपंथी भी मारे गए थे.
जम्मू क्षेत्र में बढ़ती चरमपंथ की घटनाएं?

जम्मू में बीते चार सालों में कई चरमपंथी घटनाएं हुई हैं. इससे पहले जम्मू दशकों तक शांत रहा है.
पहले चरमपंथ की घटनाएं पुंछ -राजौरी के इलाकों तक तक सीमित थी।लेकिन जम्मू के दूसरे इलाकों में भी अपना सिर उठाना शुरू किया.
बीते चार सालों में जम्मू में चरमपंथ की घटनाओं में दर्जनों सैनिकों, आम नागरिकों और पुलिसकर्मियों की मौत हो गई है.
कठुआ में भी अब चरमपंथ की घटनाएं हो रही हैं.
इस क्षेत्र के ज़्यादातर इलाके अंतरराष्ट्रीय सीमा या नियंत्रण रेखा के आस- पास पड़ते हैं.
हालांकि, साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल के मुताबिक़, पूरे जम्मू- कश्मीर में साल 2021 की तुलना में साल 2024 में घटनाएं कम हो गई हैं. साल 2021 में, जम्मू-कश्मीर में कुल घटनाओं की संख्या 153 थी, जबकि साल 2024 में 61 घटनाएं दर्ज हुई हैं.