Parliament: 30 दिन की हिरासत पर जाएगी कुर्सी: नए विधेयक पर कांग्रेस का गुस्सा

By Vinay | Updated: August 20, 2025 • 10:51 AM

केंद्र सरकार (Central Government) ने हाल ही में एक ऐसे विधेयक को संसद (Parliament) में पेश करने की योजना बनाई है, जो भारतीय राजनीति में एक बड़ा बदलाव ला सकता है। इस प्रस्तावित कानून के तहत, यदि कोई प्रधानमंत्री (PM), मुख्यमंत्री (CM), या मंत्री किसी गंभीर आपराधिक मामले में 30 दिनों तक हिरासत में रहता है, तो उसे अपने पद से हटना होगा।

इस विधेयक ने सियासी हलकों में तीखी बहस छेड़ दी है, खासकर विपक्षी दल कांग्रेस ने इसे केंद्र सरकार की “विपक्ष को कमजोर करने की साजिश” करार दिया है। आइए, इस विधेयक और इसके पीछे के विवाद को विस्तार से समझते हैं

विधेयक का मकसद और प्रावधान प्रस्तावित विधेयक में तीन मुख्य बिल शामिल हैं:

1. संविधान (130वां संशोधन) विधेयक, 2025

2. केंद्र शासित प्रदेश (संशोधन) विधेयक, 2025

3. जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2025

इन विधेयकों के तहत, यदि कोई जनप्रतिनिधि—चाहे वह प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री, या राज्य का मंत्री हो—ऐसे अपराध में गिरफ्तार होता है, जिसमें कम से कम पांच साल की सजा हो सकती है, और वह लगातार 30 दिनों तक हिरासत में रहता है, तो 31वें दिन वह स्वतः अपने पद से हट जाएगा। इस प्रावधान को लागू करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 75 (केंद्र), 164 (राज्य), और 239AA (दिल्ली) में संशोधन प्रस्तावित हैं। इसके अलावा, जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 और केंद्र शासित प्रदेश अधिनियम, 1963 में भी बदलाव किए जाएंगे।

केंद्र सरकार का कहना है कि यह विधेयक भ्रष्टाचार और आपराधिक गतिविधियों पर लगाम कसने के लिए जरूरी है। गृह मंत्री अमित शाह ने इसे “लोकतंत्र और सुशासन की साख मजबूत करने” वाला कदम बताया है। उनका तर्क है कि गंभीर आपराधिक आरोपों में हिरासत में लिया गया कोई भी जनप्रतिनिधि यदि पद पर बना रहता है, तो यह संवैधानिक नैतिकता और जनता के विश्वास को ठेस पहुंचा सकता है।

कांग्रेस की तीखी प्रतिक्रिया

कांग्रेस पार्टी ने इस विधेयक को “लोकतंत्र पर हमला” और “विपक्ष को अस्थिर करने की साजिश” करार दिया है। पार्टी के वरिष्ठ नेता और सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने इस पर तीखा हमला बोला। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा, “क्या दुष्चक्र है! गिरफ्तारी के लिए कोई दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया जाता। विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारियां अनियंत्रित और अनुचित हैं।”

सिंघवी का कहना है कि यह विधेयक केंद्र सरकार को विपक्षी मुख्यमंत्रियों और नेताओं को “मनमाने ढंग” से हिरासत में लेकर उनके पद छीनने की शक्ति देगा, जिससे विपक्षी दलों को कमजोर किया जा सकेगा।

कांग्रेस का आरोप है कि केंद्र की भाजपा सरकार जांच एजेंसियों जैसे प्रवर्तन निदेशालय (ED) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) का दुरुपयोग कर रही है। पार्टी ने दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, उनके सहयोगी मनीष सिसोदिया, और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी का हवाला देते हुए कहा कि ये कार्रवाइयां “राजनीतिक बदले” की भावना से प्रेरित थीं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी इस विधेयक को “संविधान विरोधी” बताया और कहा कि यह जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों के अधिकारों का हनन करता है।

विवाद के प्रमुख बिंदु

1. राजनीतिक दुरुपयोग की आशंका: विपक्ष का मानना है कि यह विधेयक सत्तारूढ़ दल को जांच एजेंसियों के जरिए विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने की खुली छूट देगा। बिना ठोस दिशा-निर्देशों के गिरफ्तारी और हिरासत का दुरुपयोग हो सकता है।

2. लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर सवाल: कांग्रेस का कहना है कि यह विधेयक जनता द्वारा चुने गए नेताओं को अस्थिर कर सकता है, जो लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।

3. पहले के उदाहरण: हाल के वर्षों में कई नेताओं ने गिरफ्तारी के बावजूद अपने पद नहीं छोड़े। उदाहरण के लिए, दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और तमिलनाडु के मंत्री वी. सेंथिल बालाजी ने हिरासत में रहते हुए भी इस्तीफा नहीं दिया था। इस विधेयक का मकसद ऐसी स्थितियों को रोकना है, लेकिन विपक्ष इसे राजनीतिक हथियार के रूप में देख रहा है।

4. संयुक्त संसदीय समिति (JPC): यह विधेयक पहले JPC को भेजा जा सकता है, जहां सभी दलों की राय ली जाएगी। लेकिन विपक्ष का कहना है कि यह प्रक्रिया भी सत्तारूढ़ दल के प्रभाव में हो सकती है।

सरकार का पक्ष

केंद्र सरकार का दावा है कि यह विधेयक राजनीति में अपराधीकरण को रोकने के लिए एक ऐतिहासिक कदम है। गृह मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, वर्तमान में संविधान या किसी अन्य कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो गंभीर आपराधिक मामलों में हिरासत में लिए गए नेताओं को पद से हटाने की अनुमति देता हो।

सरकार का कहना है कि यह विधेयक जनता के विश्वास को बहाल करेगा और संवैधानिक नैतिकता को मजबूत करेगा। साथ ही, यह प्रावधान भी है कि हिरासत से रिहा होने के बाद संबंधित नेता को राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा पुनः नियुक्त किया जा सकता है।

क्या है आगे का रास्ता?

यह विधेयक संसद में तीखी बहस का विषय बनने वाला है। इसे संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेजे जाने की संभावना है, जहां इस पर विस्तृत चर्चा होगी। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम नैतिक मूल्यों को मजबूत कर सकता है, लेकिन इसके दुरुपयोग की आशंका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। विपक्ष की मांग है कि गिरफ्तारी के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश बनाए जाएं ताकि इस कानून का गलत इस्तेमाल न हो।

ये भी पढ़े

breaking news Hindi News letest nbews national new amendment parliament Representation of the People Act Sansad news