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Opinion: क्या गुजरात में कांग्रेस 37 साल आगे भी सत्ता से दूर रहना चाहती है? 

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 कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन ने गुजरात इकाई में चिंता पैदा कर दी है, खासकर राहुल गांधी की जातीय जनगणना की रणनीति को लेकर। क्योंकि, प्रदेश में कांग्रेस एक बार

  • कांग्रेस अधिवेशन में गुजरात में जाति जनगणना का वादा
  • प्रदेश कांग्रेस नेताओं को इतिहास दोहराने का दिख रहा डर
  • 1985 के बाद कांग्रेस ने गुजरात में कभी नहीं बनाई सरकार

नई दिल्ली: अहमदाबाद में कांग्रेस के दो दिनों के राष्ट्रीय अधिवेशन ने पार्टी के स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं में जितना जोश भरा है,उससे कम चिंताएं भी पैदा नहीं की हैं। इसकी वजह है राहुल गांधी की जातीय जनगणना वाली वह रणनीति, जो आज देश की राजनीति में उनका सबसे पसंदीदा विषय बना हुआ है। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के मार्गदर्शन में पार्टी का गुजरात में हुए राष्ट्रीय अधिवेशन में भी जो प्रस्ताव पारित हुआ है, उसमें प्रदेश में जातीय जनगणना का वादा शामिल है।

गुजरात में कांग्रेस अगर 2027 के विधानसभा चुनावों को देखते हुए जातीय जनगणना की बात कर रही है, तो उसका फोकस खास तौर दलित (SC), आदिवासी (ST), ओबीसी (OBC) और मुस्लिम मतदाता हैं। लेकिन, गुजरात कांग्रेस में नेताओं का एक ऐसा वर्ग भी है, जो पार्टी के इस मंसूबे से हैरान और परेशान हो गया है।

गुजरात में जातीय जनगणना वाले दांव से खलबली

मसलन, गुजरात कांग्रेस के एक नेता ने बताया है, ‘मैं अब इसे और बर्दाश्त नहीं कर सकता….यह निराशाजनक था।’ जब 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 99 सीटें मिली थीं, तब शायद अतिउत्साह में रायबरेली के सांसद ने लोकसभा में बीजेपी को 2027 में गुजरात में हराने की चुनौती दे दी थी।

गुजरात कांग्रेस में किस बात पैदा हो रहा डर?

दरअसल, राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस गुजरात में जो प्रयोग करना चाहती है, पार्टी के लिए उसका अतीत राज्य में बहुत ही कड़वा साबित हो चुका है। बात 1980 के दशक की है। पूरे देश की तरह गुजरात में भी कांग्रेस का ही दबदबा था। तत्कालीन मुख्यमंत्री माधव सिंह सोलंकी ने एक नए जातीय समीकरण वाला सियासी दांव चला।

उन्होंने KHAM या क्षत्रीय, हरिजन, आदिवासी और मुसलमान के गठबंधन का दांव आजमाया। 1985 के चुनाव में तो कांग्रेस को इसका जबर्दस्त लाभ मिला। पार्टी असेंबली की 149 सीटें जीत गई। लेकिन, कांग्रेस के इस समीकरण ने राज्य की राजनीति में सबसे प्रभावी पाटीदारों को पार्टी के नाराज कर दिया। अन्य ऊंची जातियों के वोटर भी उससे कन्नी काटने लगे।

1985 के बाद कांग्रेस कभी सत्ता में नहीं लौटी

नतीजा ये हुआ कि 1990 के विधानसभा चुनाव में पार्टी मात्र 33 सीटों पर सिमट गई और उसका वोट शेयर भी गिरकर 30.90% पर पहुंच गया। गुजरात की राजनीति में यहां से बीजेपी ने ऐसा कदम जमाया कि 2022 का चुनाव आते-आते इसने राज्य में जीत के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए।

ऐसे में गुजरात में जातीय जनगणना करवाने के राहुल गांधी के मंसूबे को लेकर पार्टी के एक प्रदेश पदाधिकारी ने बताया है, ‘इस इतिहास को देखते हुए, मुझे लगता है कि राहुल गांधी को गुजरात को इस तरह की राजनीति के दायरे से बाहर रखना चाहिए था, जिस पर वे अब फोकस कर रहे हैं।’

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