नई दिल्ली । राजधानी दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किला परिसर (Historic Red Fort Complex) में सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े करने वाली बड़ी घटना सामने आई है। एक जैन धार्मिक आयोजन के दौरान लगभग एक करोड़ रुपये की कीमत का कलश चोरी हो गया। यह कलश 760 ग्राम सोने से बना था और इसमें करीब 150 ग्राम हीरे व पन्ना जड़े हुए थे।
पूजा के दौरान मंच से गायब हुआ कलश
जानकारी के अनुसार, कारोबारी सुधीर जैन (Sudhir Jain) रोजाना पूजा के लिए इस कलश को लाल किला परिसर में लाते थे। बुधवार को जब लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला भी इस कार्यक्रम में विशेष अतिथि के तौर पर मौजूद थे, तभी स्वागत की अफरातफरी के बीच मंच से कलश गायब हो गया।
संदिग्ध की पहचान, जल्द होगी गिरफ्तारी
कलश चोरी मामले में दिल्ली पुलिस ने पुष्टि की है कि सीसीटीवी फुटेज (CCTV Footage) में एक संदिग्ध की गतिविधियां दर्ज हुई हैं। संदिग्ध की पहचान कर ली गई है और जल्द ही गिरफ्तारी की संभावना है। कार्यक्रम के आयोजक पुनीत जैन ने बताया कि पूजा के बाद सुधीर जैन का बैग, जिसमें कलश और अन्य धार्मिक सामग्री रखी थी, गायब पाया गया।
पहले भी मंदिरों को बना चुका है निशाना
पुनीत जैन ने दावा किया कि संदिग्ध पहले भी तीन मंदिरों को टारगेट कर चुका है, जिनमें जैन लाल मंदिर भी शामिल है। जैन समुदाय का यह धार्मिक आयोजन 15 अगस्त से लाल किला परिसर में चल रहा है और 9 सितंबर तक जारी रहेगा।
लाल किले की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल
यह घटना एक बार फिर लाल किले की सुरक्षा व्यवस्थाओं पर गंभीर सवाल खड़े करती है। इससे पहले स्वतंत्रता दिवस से पहले सुरक्षा अभ्यास के दौरान नकली बम का पता लगाने में नाकामी पर दिल्ली पुलिस के सात कर्मियों को निलंबित किया गया था।
किले का इतिहास क्या है?
किले का निर्माण मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने 1639 में शुरू किया और 1648 में पूरा किया, जिसका मुख्य उद्देश्य दिल्ली को मुग़ल राजधानी बनाना था. लाल बलुआ पत्थर से बने इस किले को पहले किला-ए-मुबारक कहा जाता था, और यह भारतीय इतिहास के कई महत्वपूर्ण घटनाओं का गवाह रहा है, जिसमें 1947 में भारत की आज़ादी के बाद प्रधानमंत्री द्वारा झंडा फहराना और भाषण देना शामिल है.
लाल किले का असली मालिक कौन था?
लाल किले का वर्तमान मालिक भारत सरकार है. हालाँकि, डालमिया भारत ग्रुप ने इसे ‘एडॉप्ट ए हेरिटेज’ योजना के तहत गोद लिया है, पर यह भारत सरकार की संपत्ति ही है. बहादुर शाह जफर-द्वितीय की एक वंशज ने इसे अपना मानने का दावा किया था, लेकिन दिल्ली उच्च न्यायालय ने उनकी याचिका खारिज कर दी थी.