नई दिल्ली। दुनिया के मौसम वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि इस साल के अंत तक ला नीना (La Nina) की परिस्थितियां विकसित हो सकती हैं। इसका असर वैश्विक मौसम पैटर्न पर पड़ेगा और भारत में कड़ाके की ठंड पड़ सकती है।
71% संभावना, दिसंबर तक असर
अमेरिका की नेशनल वेदर सर्विस (National Wetaher Service) के क्लाइमेट प्रेडिक्शन सेंटर ने 11 सितंबर को कहा कि अक्टूबर-दिसंबर 2025 के बीच ला नीना बनने की 71% संभावना है। यह संभावना दिसंबर 2025 से फरवरी 2026 के बीच घटकर 54% रह जाती है, लेकिन ला नीना वॉच फिलहाल प्रभावी है।
IMD ने भी जताई आशंका
भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने ताजा ENSO बुलेटिन में बताया कि अभी तटस्थ स्थितियां बनी हुई हैं। न तो एल नीनो और न ही ला नीना सक्रिय है।
IMD के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा— हमारे मॉडल अक्टूबर-दिसंबर में ला नीना विकसित होने की 50% से अधिक संभावना दिखा रहे हैं। ला नीना के दौरान भारत में सर्दियां सामान्य से अधिक ठंडी होती हैं। जलवायु परिवर्तन की वजह से गर्माहट असर कम कर सकती है, लेकिन ठंडी लहरें जरूर बढ़ सकती हैं।”
स्काइमेट वेदर का पूर्वानुमान
निजी मौसम संस्था स्काइमेट वेदर के अध्यक्ष जीपी शर्मा ने कहा कि अल्पकालिक ला नीना की स्थिति से इनकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने बताया कि प्रशांत महासागर का तापमान पहले ही सामान्य से ठंडा है।
यदि यह -0.5°C से नीचे लगातार तीन तिमाही तक बना रहता है, तो इसे औपचारिक रूप से ला नीना घोषित किया जाएगा। शर्मा ने कहा, भले ही औपचारिक घोषणा न हो, लेकिन प्रशांत महासागर का ठंडा होना वैश्विक मौसम को प्रभावित करेगा। अमेरिका में सूखी सर्दियों का खतरा रहेगा, जबकि भारत में यह सामान्य से अधिक ठंड लेकर आएगा।“
अलनीनो और ला नीना में क्या अंतर है?
अलनीनो और ला नीना अलनीनो-दक्षिणी दोलन (ENSO) नामक एक प्राकृतिक जलवायु चक्र के दो अलग-अलग चरण हैं, जो प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के तापमान में उतार-चढ़ाव से जुड़े हैं।
ला नीनो का अर्थ क्या होता है?
ला नीना भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में असामान्य रूप से ठंडे समुद्री तापमान की विशेषता है, जबकि अल नीनो भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में असामान्य रूप से गर्म समुद्री तापमान की विशेषता है।
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