
हिंदू राष्ट्र और राजशाही बहाल को लेकर शुक्रवार को काठमांडू में जब शक्ति प्रदर्शन‘ शुरू हुआ, तो एक वीडियो सार्वजनिक हुआ, जिसमें इस प्रदर्शन के लीडर दुर्गा प्रसाई तेज़ गति से कार चलाकर बैरीकेड्स तोड़ने की कोशिश करते दिखे.।वीडियो में उन्हें पुलिस की घेराबंदी तोड़ते हुए और आसपास के प्रदर्शनकारियों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते हुए देखा गया.धीरे-धीरे उनके नेतृत्व में भीड़ के बेकाबू होने के फुटेज भी सार्वजनिक होने लगे। प्रदर्शनकारी हिंदू राष्ट्र और राजशाही बहाल करने की मांग करते हुए शक्ति प्रदर्शन कर रहे थे।
आसपास के इलाकों में दुकानों, घरों और राजनीतिक दलों के कार्यालयों में आगजनी और लूटपाट शुरू हो गई.पुलिस के बल प्रयोग करने के फुटेज भी लगातार आ रहे हैं. आख़िरकार शहर में कर्फ़्यू लगा दिया गया. झड़पों के दौरान दो व्यक्ति की मौत की भी पुष्टि हुई है.रैली के आह्वान से एक दिन पहले गुरुवार को पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह के साथ मुलाक़ात के बाद दुर्गा प्रसाई ने कहा था कि राजशाही और हिंदू राज्य की स्थापना उनका ‘धर्म’ हैउसी दिन उन्हें राजशाही पक्ष की संयुक्त जन आंदोलन समिति का कमांडर भी नियुक्त किया गय
दुर्गा प्रसाई बने राजशाही समर्थक आंदोलन का चेहरा

शुक्रवार को ही, काठमांडू में रिपब्लिकन-झुकाव वाले सोशलिस्ट फ्रंट का प्रदर्शन हुआ, जिसमें कई नेताओं ने लोगों को संबोधित किया लेकिन राजशाही समर्थकों और पुलिस के बीच भिड़ंत के बाद राजशाही समर्थक अपना भाषण देने में नाकाम रहे.राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी नेता धवल शमशेर जबरा ने बीबीसी से कहा, “हालात तब बिगड़ गए जब पुलिस ने हमें मंच पर आते समय पकड़ लिया.”उन्होंने कहा, “प्लास्टिक की गोलियां और आंसू गैस मंच पर ही दागी गईं. हम बैठक करेंगे और तय करेंगे कि आगे क्या करना है.”
हालांकि राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी, जो संसद में पांचवीं सबसे बड़ी पार्टी भी है,वर्षों से इस मुद्दे को उठाती रही है, लेकिन ‘राष्ट्र, राष्ट्रीयता, धर्म, संस्कृति एवं नागरिक बचाओ’ नामक गैर-राजनीतिक संगठन के प्रमुख को इसका नेता बनाए जाने से कई राजशाही समर्थक आश्चर्यचकित हैं.गुरुवार को पत्रकारों से बात करते हुए प्रसाई ने खुद को स्वाभाविक उत्तराधिकारी के रूप में पेश किया.प्रसाई ने कहा, “आज आम जनता कहती है कि दूसरी पार्टियां या दुर्गा प्रसाई-राजा? यही बात है कि यह समय की मांग है.”कई लोगों ने दिलचस्पी के साथ देखा है कि कैसे पूर्व माओवादी और यूएमएल के अंतिम आम अधिवेशन के केंद्रीय सदस्य प्रसाई,थोड़े समय में ही राजतंत्रवादी आंदोलन का प्रमुख चेहरा बन गए है
राजशाही समर्थक नेता पर उठ रहे सवाल
शुक्रवार को भड़के राजशाही समर्थक आंदोलन में निजी और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचने से उनके नेतृत्व पर सवाल उठ खड़े हुए हैं.
राजनीति शास्त्री कृष्ण पोखरेल के मुताबिक़ राजशाही समर्थकों ने सोचा होगा कि ऐसी स्थिति में, ‘वह कुछ भी कह सकते हैं कुछ भी कर सकते हैं और बहुत से लोगों को आकर्षित कर सकते हैं और इस तरह से उन्होंने प्रसाई को आगे रखा यह विश्वास करते हुए कि ‘लोगों की एक बहुत बड़ी लहर उठेगी और व्यवस्था को उखाड़ फेंकेगी’.
पोखरेल कहते हैं, “लेकिन ऐसी स्थिति में भी दुर्गा प्रसाद का अतीत यह नहीं दर्शाता कि वह लंबी दूरी की दौड़ में भाग लेंगे. उनकी छवि ऐसी है कि वह कहीं भी जा सकते हैं, कुछ भी कर सकते हैं.”
उनका कहना है कि हालांकि वे कुछ लोगों के लिए ‘आक्रामक’ और जोरदार बयान देकर लोगों को एकजुट कर सकते हैं, लेकिन वे ‘सामान्य रूप से समझदार लोगों को अच्छा संदेश देने में असमर्थ हैं.
प्रसाई के साथ-साथ सांस्कृतिक विशेषज्ञ जगमन गुरुंग भी समन्वयक के रूप में राजशाही को पुनर्जीवित करने के अभियान में भाग ले रहे हैं.
गुरुंग का कहना है कि हाल की गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका के कारण प्रसाई को कमांडर की भूमिका दी गई थी.
प्रचंड ने दी चेतावनी

नेपाल कम्युूनिस्ट पार्टी (माओवादी) के प्रमुख और पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड ने कहा है कि जब रिपब्लिकन पार्टियां लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरने में विफल हो जाती हैं, तो राजशाही समर्थक अपना सिर उठाने की कोशिश करते हैं.
प्रचंड ने कहा ” ऐसे लोगों को इतिहास के कूड़ेदान में इसलिए धकेल दिया गया था क्योंकि गणतांत्रिक व्यवस्था चलाने वाले, लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरने में असफल रहे. उन्होंने अपना सिर उठा लिया है.”
“हम अपने आप पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं और अपनी गलतियों से सीख रहे हैं तथा लोगों, लोगों और हम सभी के लिए खड़े हो रहे हैं.”
उन्होंने नेपाली जनता और राजनेताओं की उदारता का फायदा उठाने की कोशिश के खिलाफ चेतावनी दी.
उन्होंने पूर्व राजा ज्ञानेन्द्र शाह को चेतावनी दी कि वोअब अपनी पिछली गलतियों का परिणाम भुगत रहे हैं और उन्हें आगे से ऐसी गलतियां नहीं करनी चाहिए.