इंडिया हर साल अमेरिका को करीब 9 अरब डॉलर की निगम उत्पादों का निर्यात करता है। इन प्रोडक्ट्स में बड़ी मात्रा में जेनेरिक दवाएं शामिल हैं, जिनकी आपूर्ति का करीब 40 प्रतिशत हिस्सा भारतीय फार्मा द्वारा किया जाता है।
हाल ही में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आयात पर पारस्परिक टैरिफ लगाने के संकेत दिए हैं। इस उद्घोषणा के बाद से भारतीय दवा उद्योग कंपनियों की परेशानी बढ़ गई हैं।
ट्रंप की टैरिफ नीति से क्या होगा असर?
टैरिफ में अचानक बढ़ोतरी से हिन्दुस्तानी कंपनियों के लिए अमेरिका में दवाएं बेचना महंगा हो सकता है। इससे अमेरिका की कंपनियां लागत बढ़ने का बल हिन्दुस्तानी कंपनियों पर डाल रही हैं। कुछ अमेरिकी खरीदार 15 से 20 प्रतिशत तक डिस्काउंट मांग रहे हैं।
प्री-ऑर्डर पर रोक और डिस्काउंट की मांग
कुछ अमेरिका की कंपनियों ने अपने प्री-ऑर्डर रोक दिए हैं। वहीं, जिन ऑर्डरों की शिपमेंट पहले ही पूरी हो चुकी है, उन पर भी छूट की मांग की जा रही है। इससे भारतीय एक्सपोर्टर्स के सामने मुनाफे का गणित नष्ट हो गया है।

छोटी कंपनियों पर बड़ा असर
छोटे अमेरिका खरीदारों को दवाएं महंगी मिलने पर धन मुसीबत का सामना करना पड़ सकता है। उधर, भारतीय फार्मा का ऑर्डर बचाने के लिए लागत में कटौती या डिस्काउंट देना पड़ सकता है।
इंडिया सरकार की सक्रियता
इस चुनौतीपूर्ण हालत को देखते हुए इंडिया का वाणिज्य मंत्रालय फार्मा एक्सपोर्टर्स के साथ बैठकें कर रहा है। हालांकि, ट्रंप ने टैरिफ के पहले चरण में फार्मा सेक्टर को बाहर रखा है, लेकिन आगे यह परिवर्तन हो सकता है।
निष्कर्ष
अगर टैरिफ में तेज बढ़ोतरी हुई, तो इसका प्रभाव केवल कंपनियों पर नहीं, बल्कि अमेरिकी ग्राहक पर भी पड़ेगा। इससे दवाओं की मूल्य में बढ़ती संभव है।