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USA: बांग्लादेश की मदद के पीछे महाशक्ति अमेरिका की क्या नीति है?

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USA: बांग्लादेश की मदद के पीछे महाशक्ति अमेरिका की क्या नीति है?

ऑपरेशन सिंदूर’ शुरू होते ही… इस महीने की आठ तारीख को महाशक्ति अमेरिका वायुसेना के अधिकारियों की एक टीम बांग्लादेश की राजधानी ढाका में उतरी। पड़ोसी म्यांमार के रखाइन क्षेत्र में महाशक्ति के सैन्य गतिविधियों के बढ़ने के संकेत माने जा रहे हैं। आखिर वहां क्या हो रहा है? भारत पर इसका क्या असर होगा?

भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम को अपनी सफलता बताने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अब बांग्ला-म्यांमार सीमा पर नई आग लगाने की आशंका खड़ी कर रहे हैं। रखाइन क्षेत्र में शरण लिए रोहिंग्याओं को मानवीय सहायता पहुंचाने के मिशन के तहत महाशक्ति ने बांग्लादेश में कदम रखा है। वहां के अंतरिम प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस को महाशक्ति का समर्थन प्राप्त है, यह जगजाहिर है।

संयुक्त राष्ट्र के नाम पर…

इस साल मार्च में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने बांग्लादेश का दौरा किया और कॉक्स बाज़ार में रोहिंग्या शरणार्थी शिविरों का निरीक्षण किया। म्यांमार के रखाइन राज्य से खदेड़े गए ये लोग बांग्लादेश पहुंचे हैं। शरणार्थियों की दयनीय स्थिति पर इस साल सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा में चर्चा होनी है।

इससे पहले गुटेरेस ने बांग्लादेश से लेकर रखाइन राज्य तक एक मानवीय सहायता गलियारा (ह्यूमैनिटेरियन कॉरिडोर) बनाने का प्रस्ताव रखा। इसी बहाने अमेरिकी वायु और सैन्य अधिकारी बांग्लादेश पहुंचे और गलियारे के लिए तैयारियां शुरू कीं। लेकिन इस कॉरिडोर को लेकर यूनुस सरकार ने न तो जनता से और न ही राजनीतिक दलों से कोई चर्चा की, जिस पर बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के अंतरिम अध्यक्ष तारिक रहमान ने कड़ा विरोध जताया।

उन्होंने आरोप लगाया कि यूनुस सरकार बांग्लादेश की स्वतंत्रता और संप्रभुता को दांव पर लगा रही है। पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना का यह बयान कि अगर मैं सेंट मार्टिन द्वीप अमेरिका को सौंप देती, तो आज भी सत्ता में होती”, उल्लेखनीय है।

म्यांमार के रखाइन राज्य से केवल नौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित सेंट मार्टिन द्वीप में यदि अमेरिका सैन्य और नौसेना अड्डा स्थापित करता है, तो मलक्का जलसंधि से होकर आने-जाने वाली चीनी नौकाओं पर निगरानी रख सकता है और युद्धकाल में उन्हें रोक सकता है — यही अमेरिका की रणनीति है।

यह रणनीति चीन और म्यांमार की सैन्य सरकार को बिल्कुल भी रास नहीं आ रही है।

भारत और चीन के लिए अहम…

म्यांमार की सैन्य सरकार से लड़ रही ‘अराकान आर्मी’ ने रखाइन राज्य के 17 में से 13 शहरों पर कब्जा कर लिया है। पूरा ग्रामीण क्षेत्र अब उनके नियंत्रण में है। बांग्लादेश से सटे 271 किलोमीटर सीमा क्षेत्र भी अराकान आर्मी के हाथ में चला गया है।

रखाइन राज्य की राजधानी सितवे और क्यौकप्यू ही अब म्यांमार की सेना के नियंत्रण में हैं। ये दोनों बंदरगाह शहर भारत और चीन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

सितवे बंदरगाह से मणिपुर तक ‘कालादान मल्टी-मोडल ट्रांजिट प्रोजेक्ट’ भारत द्वारा चलाया जा रहा है। वहीं चीन क्यौकप्यू से यूनान प्रांत तक ‘चाइना-म्यांमार इकोनॉमिक कॉरिडोर (CMEC)’ का निर्माण कर रहा है।

क्यौकप्यू में विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाकर डीप सी पोर्ट, तेल-गैस पाइपलाइन का निर्माण हो रहा है। इन परियोजनाओं की सफलता के लिए भारत और चीन म्यांमार की सैन्य सरकार से अच्छे संबंध बनाए हुए हैं।

लेकिन यह अराकान आर्मी को मंज़ूर नहीं है। अमेरिका इसे एक अवसर के रूप में देख रहा है, जो भारत और चीन के लिए सिरदर्द बन सकता है।

जीवनरेखा पर वार

चीन के लिए CMEC कॉरिडोर अत्यंत महत्वपूर्ण है। चीन के 80% तेल आयात मलक्का जलसंधि से होकर आते हैं, जो मलेशिया और इंडोनेशिया के बीच की संकरी समुद्री राह है। यदि यह मार्ग बाधित होता है, तो वैकल्पिक रास्ते के तौर पर चीन ने क्यौकप्यू से यूनान तक तेल और गैस पाइपलाइन बनाई है।

दक्षिण चीन सागर और हिंद महासागर को जोड़ने वाली मलक्का जलसंधि को यदि अमेरिका ब्लॉक करता है, तो यूनान-क्यौकप्यू CMEC कॉरिडोर ही चीन के लिए सहारा बनेगा — ऐसा ड्रैगन (चीन) मानता है।

यहां CPEC की भी चर्चा ज़रूरी है — चीन से पाकिस्तान के बलूचिस्तान स्थित ग्वादर तक बना चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC)।

चीनी नौकाएं पर्शियन गल्फ के माध्यम से आयात-निर्यात करती हैं, और इस मार्ग की सुरक्षा के लिए ग्वादर पोर्ट विकसित किया गया है।

CMEC और CPEC दोनों को घेरना यानी चीन की जीवनरेखा पर वार करना होगा।

बलूचिस्तान में CPEC परियोजनाओं पर पहले से हमले हो रहे हैं। कल को अराकान आर्मी CMEC पर हमला कर दे, इसकी कोई गारंटी नहीं है।

विशेषज्ञों का मानना है कि संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के बहाने महाशक्ति अगर इस ह्यूमैनिटेरियन कॉरिडोर के ज़रिए अराकान आर्मी को हथियार और आर्थिक मदद पहुंचाता है, तो इसका उद्देश्य CMEC को चोट पहुंचाना हो सकता है।

अगर ऐसा होता है, तो यह गलियारा भी गाज़ा या अफगानिस्तान की तरह संकटग्रस्त क्षेत्र बन सकता है।

इसी को रोकने के लिए चीन के यूनान राज्य के गवर्नर ने बांग्लादेश आकर बातचीत की।

भारत भी अराकान आर्मी से नज़दीकियां बढ़ाने पर विचार कर रहा है।

निष्कर्ष:

दक्षिण एशिया और म्यांमार में अब बड़ी शक्तियों की वर्चस्व की लड़ाई और गहराती जा रही है। भारत को सतर्क रहना ही होगा

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