
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने बुधवार को वक़्फ़ संशोधन बिल लोकसभा में पेश किया. अब इस संशोधन बिल पर आठ घंटे तक की बहस होगी.
विपक्षी इंडिया गठबंधन ने एक दिन पहले मंगलवार को एक बैठक कर संयुक्त रूप से बिल का विरोध करने का फैसला किया.उधर बीजेपी ने मंगलवार को अपने लोकसभा सांसदों को व्हिप जारी कर बुधवार को सभी सांसदों को लोकसभा में उपस्थित रहने को कहा है.बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए गठबंधन और विपक्षी इंडिया गठबंधन के बीच सहमति के आसार नहीं दिख रहे हैं ऐसे में संसद में बहुमत के आधार पर इसका भविष्य तय होगा.मौजूदा लोकसभा में एनडीए की संख्या 293 है, जोकि 542 सदस्यों वाले निचले सदन में बहुमत से काफ़ी अधिक है.
लोकसभा में इंडिया गठबंधन के सदस्यों की संख्या 234 है. जबकि बहुमत के लिए 272 वोटों की ज़रूरत है.236 सदस्यों वाली राज्य सभा में भी एनडीए का संख्या बल 126 है, जोकि बहुमत के लिए पर्याप्त है.इनमें दो स्वतंत्र और छह नामित सदस्य हैं जो आम तौर पर सरकार का समर्थन करते हैं.
2. इस बिल के समर्थन में कौन है?
वक़्फ़ संशोधन बिल को बीजेपी की अगुवाई वाली केंद्र की एनडीए सरकार लेकर आई है.
नीतीश कुमार की जेडीयू और चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी भी एनडीए का हिस्सा हैं. इन दोनों पार्टियों ने बिल का समर्थन करने की घोषणा की है.एनडीए में शामिल अन्य दल शिव सेना (एकनाथ शिंदे गुट) और लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) ने भी अपने सांसदों को दो और तीन अप्रैल को संसद में मौजूद रहने और सरकार का समर्थन करने का व्हिप जारी किया है.
3. टीडीपी का समर्थन लेकिन…

आर्थिक मामलों के अख़बार इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार, टीडीपी ने बिल का समर्थन करने की घोषणा तो की है लेकिन लोकसभा में इसके सांसद बिल में कुछ बदलावों का प्रस्ताव देंगे.इसके अलावा टीडीपी ने सरकार से इस विधेयक को बीते समय से लागू न करने की अपील की.
जेडीयू ने भी बिल का समर्थन करने की घोषणा की है. लोकसभा में टीडीपी के 16 और जेडीयू के 12 सदस्य हैं.
बीजेपी के अपने 240 सांसद हैं और उसके लिए इन दोनों दलों का पूरा समर्थन संशोधन बिल के पास होने के लिए आवश्यक है.लेकिन इन दोनों की दलों की मुस्लिम अल्पसंख्यक मतदाताओं के बीच पैठ है. और इसलिए बिल के समर्थन की वजह से इस पर असर पड़ने की आशंका के चलते दोनों ही दल सावधानी बरत रहे हैं.
4. ओवैसी की नायडू और नीतीश से अपील
शुरू से ही इस बिल के ख़िलाफ़ मुखर रहने वाले एआईएमआईएम के नेता और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी एनडीए की सदस्य पार्टियों के नेताओं से भी बिल का विरोध करने की अपील करते रहे हैं.
उन्होंने मंगलवार को कहा, “अगर चंद्रबाबू नायडू, नीतीश कुमार, चिराग पासवान और जयंत चौधरी इस बिल की तारीफ़ करेंगे, तो वो अपने राजनीतिक कारणों से करेंगे. अगर पांच साल के बाद आप जनता के सामने जाएंगे, तब आप क्या जवाब देंगे.”
5. बिल के विरोध में कौन कौन?

इस वक़्त लोकसभा में वक़्फ़ बिल में संशोधन करने पर बहस चल रही है. विपक्षी इंडिया गठबंधन के सभी दलों ने मंगलवार को दिल्ली में बैठक कर एक संयुक्त रणनीति बनाई.बैठक के बाद कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने एकजुट होकर इस बिल का विरोध करने की बात कही.
उन्होंने एक्स पर लिखा, “वक़्फ़ संशोधन बिल पर मोदी सरकार के असंवैधानिक और विभाजनकारी एजेंडे को हराने के लिए सभी विपक्षी पार्टियां एकजुट हैं और संसद में मिलकर काम करेंगी.”लोकसभा में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी समाजवादी पार्टी के 37 सांसद हैं. पार्टी ने व्हिप जारी करके सभी सांसदों से संसद में मौजूद रहने और बिल पर संयुक्त विपक्ष का समर्थन करने को कहा है.ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, नेशनल कॉन्फ़्रेंस, एनसीपी (शरद पवार), आरजेडी, डीएमके समेत इंडिया गठबंधन के दलों ने इस विधेयक को ग़ैर-संवैधानिक कहा है.
6. कहां जाएंगे ग़ैर-एनडीए, ग़ैर-इंडिया गठबंधन वाले दल
संसद में ऐसी कई छोटी पार्टियां और निर्दलीय सांसद हैं, जिनमें कुछ ने खुलकर वक़्फ़ संशोधन बिल का विरोध किया है.इनमें एआईएमआईएम के सांसद असदुद्दीन ओवैसी और बिहार में पूर्णिया से सांसद पप्पू यादव का नाम प्रमुख हैं.22 मार्च को जंतर मंतर पर वक़्फ़ संशोधन बिल के ख़िलाफ़ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) के धरना प्रदर्शन में पप्पू यादव भी शामिल हुए थे. उन्होंने सदन में इस मुद्दे को उठाने का आश्वासन दिया.
7. सात निर्दलीय सांसद क्या करेंगे?

लोकसभा में सात निर्दलीय सांसद हैं, इनमें पूर्णिया के सांसद राजेश रंजन उर्फ़ पप्पू यादव भी शामिल हैं. पप्पू के अतीत में बयानों को देखें तो साफ़ है कि वे वक्फ़ बिल में संशोधन का विरोध करेंगे.महाराष्ट्र में सांगली से प्रकाशबाबू पाटिल निर्दलीय सांसद हैं लेकिन वे कांग्रेस से टिकट न मिलने के कारण आज़ाद उम्मीदवार बने थे. संभव है कि वो कांग्रेस के साथ ही जाएं. लेकिन उन्होंने अब तक साफ़ इस बारे में कोई बयान नहीं दिया है.
पंजाब के खडूर साहिब से ख़ालिस्तान की हिमायत करने वाले अमृतपाल सिंह सांसद हैं. लेकिन वो इस वक्त राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत गिरफ़्तारी के बाद डिब्रूगढ़ जेल में हैं.जम्मू कश्मीर के बारामुला से अब्दुल रशीद शेख़ भी जेल में हैं और वे भी संभव है कि मतदान में हिस्सा नहीं ले पाएंगे.इसके अलावा पंजाब के फ़रीदकोट से सरबजीत सिंह खालसा, दमन व दीव (केंद्र प्रशासित क्षेत्र) से पटेल उमेश भाई बाबूभाई और लद्दाख से मोहम्मद हनीफ़ा भी निर्दलीय सांसद हैं.
8. दल जो किसी के साथ नहीं

तीन ऐसी क्षेत्रीय पार्टियां हैं जिनका अपने प्रदेशों में जनाधार है लेकिन वो केंद्र में किसी गठबंधन में शामिल नहीं हैं. इनमें मायावती की बहुजन समाज पार्टी, नवीन पटनायक की बीजू जनता दल भी हैं. हालांकि दोनों ही पार्टियों का एक भी सांसद लोकसभा में नहीं है.आंध्र प्रदेश में जगन रेड्डी की पार्टी वाईएसआरसीपी के चार सांसद हैं. यह पार्टी भी किसी गठबंधन में नहीं है.आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) के एकमात्र सांसद चंद्रशेखर आज़ाद हैं, जो उत्तर प्रदेश के नगीना से जीते थे.
एनडीए से अलग हो चुके पंजाब के शिरोमणि अकाली दल (शिअद) की एकमात्र सांसद हरसिमरत कौर हैं.भारत आदिवासी पार्टी के एकमात्र सांसद हैं राजकुमार रोत. वह कांग्रेस के समर्थन से राजस्थान के बांसवाड़ा से जीते हैं.मिज़ोरम में ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट (ज़ेडपीएम) के सांसद रिचर्ड वनलाल्हमांगैहा हैं.और मेघालय में वॉइस ऑफ़ द पीपुल पार्टी के एकमात्र सांसद हैं डॉ. रिकी एंड्र्यू जे सिंगकॉन.
9- अगस्त 2024 में पेश हुआ था बिल
वक़्फ़ संशोधन विधेयक 2024 पिछले साल अगस्त में पेश किया था, जिसके बाद इसे ज्वाइंट पार्लियामेंटरी कमेटी को भेज दिया गया था.कई दौरों की बातचीत के बाद इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी.
10- किन बातों पर हो रहा विरोध
सबसे अधिक विरोध जिस बात पर हो रहा है वह है सेंट्रल वक़्फ़ काउंसिल और वक़्फ़ बोर्डों में ग़ैर मुस्लिमों को शामिल करना.इसके अलावा सरकार के कब्ज़े वाली वक़्फ़ संपत्ति के दावे पर अंतिम निर्णय कलेक्टर का होगा और उसकी रिपोर्ट के आधार पर संपत्ति सरकारी खाते में शामिल की जा सकती है.बिल में वक़्फ़ बोर्ड से सर्वे का अधिकार भी ज़िला कलेक्टर को दे दिया गया है.प्रस्तावित विधेयक में सेंट्रल वक़्फ़ काउंसिल में ग़ैर-मुस्लिम सदस्यों और दो महिला सदस्यों का होना अनिवार्य किया गया है. साथ ही शिया और सुन्नी के अलावा बोहरा और आगाख़ानी के लिए अलग से बोर्ड बनाने की बात है