ताजमहल के मुख्य मकबरे में रिसाव की जांच के लिए लिडार तकनीक का इस्तेमाल
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने बारिश में ताजमहल (Taj Mahal) के मुख्य मकबरे में पानी टपकने और अन्य नुकसान की जांच शुरू कर दी है। एएसआई की ओर से ताजमहल के मुख्य मकबरे में पानी के रिसाव की जांच के लिए लिडार तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। इससे ताजमहल के मुख्य मकबरे के गुंबद और छत से एकत्र डाटा का विश्लेषण किया जा रहा है। इसके बाद ही पानी के रिसाव को बंद करने का काम होगा. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा थर्मल स्कैनिंग के दौरान ताजमहल के गुंबद में 73 मीटर की ऊंचाई पर पानी के रिसाव का पता चला है।
सूत्रों के अनुसार, एएसआई द्वारा निरीक्षण जारी रखने के लिए गुंबद को फिलहाल मचान में रखा गया है, जो 15 दिनों तक चलने की संभावना है। इसके बाद, विशेषज्ञ गुंबद पर मरम्मत का काम शुरू करेंगे, जिसे पूरा होने में लगभग छह महीने लगेंगे। सूत्रों ने दावा किया कि एएसआई द्वारा प्रेम के इस स्मारक की लाइट डिटेक्शन एंड रेंजिंग जांच में तीन मुख्य मुद्दे सामने आए हैं। स्मारक के मुख्य गुंबद पर पत्थरों के बीच का मोर्टार खराब पाया गया।
दुनिया के सात अजूबों में से एक है ताजमहल
दूसरा, गुंबद की छत का दरवाजा और फर्श कमजोर हो गया है और तीसरा, गुंबद पर लगा हुआ फिनियल (शिखर) एक लोहे की छड़ पर टिका हुआ है जो जंग लगने के कारण घिस गया है जिससे आसपास का मसाला फैल गया है। ताजमहल के वरिष्ठ संरक्षण सहायक प्रिंस वाजपेयी ने बताया कि लाइट डिटेक्शन निरीक्षण लगभग पूरा हो चुका है। ‘अब भौतिक निरीक्षण किया जाएगा।
मुख्य गुंबद और उस पर लगे शिखर की ऊंचाई 73 मीटर होने के कारण मरम्मत कार्य पूरा होने में करीब छह महीने लगेंगे।’ ताजमहल दुनिया के सबसे आश्चर्यजनक स्मारकों में से एक है और दुनिया के सात अजूबों में से एक है। यह स्मारक इसलिए भी बहुत प्रसिद्ध है क्योंकि यह शाश्वत प्रेम का प्रतीक है। ताज की खूबसूरत वास्तुकला और समृद्ध इतिहास को देखने के लिए लाखों पर्यटक आगरा आते हैं। ताजमहल का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहाँ ने 17वीं शताब्दी में अपनी प्यारी पत्नी मुमताज महल की याद में करवाया था। यूनेस्को ने भी इस स्मारक को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया है।
कभी था सोने का कलश
Taj Mahal के जिस कलश से पानी टपकने की बात कही जा रही है, वह कभी सोने का था. राजकिशोर बताते हैं कि ताजमहल चमके और दमके इसके लिए शाहजहां ने ताजमहल की चोटी पर लगाने के लिए सोने का कलश बनवाया था. ये सोने का कलश तब करीब 40 हजार तोला सोना यानी 466 किलोग्राम का करीब 30.5 फीट ऊंचा बनवाया था। लाहौर से बुलवाए गए काजिम खान की देखरेख में ये सोने का कलश तैयार हुआ था, जो सूरज की किरणों से चमकता था।
अब तक तीन बार बदला गया कलश
राजकिशोर ‘राजे’ बताते हैं कि ‘तवारीख-ए-आगरा’ में ताजमहल पर सोने का कलश लगाए जाने का जिक्र है। 1803 में जब अंग्रेजों का आगरा किला पर अधिकार हुआ। अंग्रेजी हुकूमत के अधिकारी जोसेफ टेलर, जब ताजमहल देखने गया तो सोने का कलश की जानकारी मिलने पर उसने पहली बार सन 1810 में ताजमहल की चोटी से सोने का कलश उतरवा दिया। अंग्रेज अफसर जोसेफ टेलर ने ताजमहल की चोटी पर सोने के कलश की जगह तब सोने की पॉलिश वाला तांबे का बना कलश लगवाया था।
इसके बाद सन 1876 में कलश बदला गया। अंग्रेज पुरातत्व अधिकारी के दिशा-निर्देश पर ताजमहल परिसर में मेहमान खाना के सामने चमेली फर्श पर सन 1888 में नाथूराम नाम के कारीगर ने कलश की लंबाई और चौड़ाई के हिसाब से आकृति बनाई। जिससे भविष्य में कलश की नापजोख में किसी तरह की परेशानी नहीं हो। इसके बाद सन् 1940 में ताजमहल का कलश बदला गया है ।अब तक तीन बार ताजमहल का कलश बदला गया है।