जम्मू-कश्मीर के रियासी और डोडा जिलों में मंगलवार और बुधवार के बीच हुए भीषण भूस्खलन और बाढ़ ने माता वैष्णो देवी यात्रा मार्ग पर भारी तबाही मचाई, जिसमें कम से कम 41 लोगों की जान चली गई। इनमें से अधिकांश तीर्थयात्री थे, जो अर्धकुंवारी के पास बादल फटने की घटना में मलबे के नीचे दब गए। इस त्रासदी ने प्रशासनिक तैयारियों और मौसम चेतावनियों की अनदेखी पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड पर सवाल उठाते हुए पूछा कि मौसम विभाग की चेतावनी के बावजूद यात्रा को क्यों नहीं रोका गया।
मौसम विभाग ने जारी किया था चेतावनी
भारतीय मौसम विभाग के अनुसार, बुधवार सुबह 8:30 बजे तक जम्मू में 296 मिमी और उधमपुर में 629.4 मिमी बारिश दर्ज की गई, जो दशकों का रिकॉर्ड तोड़ने वाली थी। जम्मू में यह 1973 के 272.6 मिमी के रिकॉर्ड से अधिक थी, जबकि उधमपुर में 2019 के 342 मिमी से दोगुनी।
इसके बावजूद, मंगलवार दोपहर 1:30 बजे तक पुराने मार्ग पर यात्रा की अनुमति थी, और हिमकोटि ट्रैक को पहले ही बंद कर दिया गया था। दोपहर 3 बजे भूस्खलन में चार तीर्थयात्रियों के दबने के बाद यात्रा पूरी तरह स्थगित की गई। उमर अब्दुल्ला ने कहा, “जब हमें मौसम की चेतावनी पहले से मिली थी, तो तीर्थयात्रियों को ट्रैक पर जाने से क्यों नहीं रोका गया? हमें इस पर बाद में चर्चा करनी होगी।”
मृतकों के परिवारों के लिए 9 लाख रुपये
हादसे में 34 शव कटरा से जम्मू के सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल के शवगृह में लाए गए, जिनमें से 18 की पहचान पंजाब, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के निवासियों के रूप में हुई। जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा, जो श्राइन बोर्ड के अध्यक्ष भी हैं, ने घायल तीर्थयात्रियों से मुलाकात की और मृतकों के परिवारों के लिए 9 लाख रुपये की अनुग्रह राशि की घोषणा की। उन्होंने कहा, “यह एक हृदय विदारक प्राकृतिक आपदा थी। हम प्रभावित परिवारों को हर संभव सहायता दे रहे हैं।”
जम्मू में 24 घंटे में 380 मिमी बारिश
जम्मू में 24 घंटे में 380 मिमी बारिश ने 1910 के बाद का रिकॉर्ड तोड़ा, जिससे तवी नदी पर बना चौथा पुल क्षतिग्रस्त हो गया। भूस्खलन और बाढ़ ने जम्मू-पठानकोट और जम्मू-श्रीनगर राजमार्गों को बंद कर दिया, और मोबाइल टावरों के क्षतिग्रस्त होने से संचार सेवाएं ठप हो गईं। एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, सेना और पुलिस ने 5,000 से अधिक लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया। श्रीनगर में झेलम नदी खतरे के निशान के करीब पहुंच गई, जिसके चलते हाई अलर्ट जारी है।
इस आपदा ने प्रशासनिक लापरवाही और आपदा प्रबंधन की कमियों को उजागर किया है। उमर अब्दुल्ला ने जोर देकर कहा कि भविष्य में ऐसी त्रासदियों को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
ये भी पढ़े