आज हम बात करेंगे इंग्लैंड में हाल ही में हुए दक्षिणपंथी (For-Right) विरोध प्रदर्शनों के बारे में, जो आप्रवासन (Immigration) के खिलाफ भड़के हैं। ये प्रदर्शन, विशेष रूप से 13 सितंबर 2025 को लंदन में हुई “Unite the Kingdom” रैली, दशकों में सबसे बड़े फार-राइट प्रदर्शन थे। लेकिन इसका भारतीय नागरिकों और भारत से क्या लेना-देना? आइए, पूरा मामला समझते हैं और भारतीय समुदाय पर इसके प्रभाव को देखते हैं।
सबसे पहले जानते हैं इसके पृष्ठभूमि के बारे में।
इंग्लैंड में आप्रवासन, खासकर शरणार्थियों और अवैध प्रवासियों की बढ़ती संख्या, एक बड़ा मुद्दा बन गया है। जुलाई 2025 से, दक्षिणपंथी समूह, जैसे इंग्लिश डिफेंस लीग (EDL) और ब्रिटेन फर्स्ट, शरणार्थी होटलों के बाहर प्रदर्शन कर रहे हैं। 13 सितंबर को लंदन में 1.1 से 1.5 लाख लोग सड़कों पर उतरे। टॉमी रॉबिन्सन जैसे नेताओं ने इसे आयोजित किया, जो “ग्रेट रिप्लेसमेंट” सिद्धांत को बढ़ावा देते हैं—यह दावा कि यूरोपीय संस्कृति को दक्षिणी या मुस्लिम प्रवासियों से बदला जा रहा है। इस रैली में हिंसा हुई—26 पुलिसकर्मी घायल, 24-25 गिरफ्तारियां। प्रदर्शनकारी “We want our country back” चिल्ला रहे थे, और कुछ ने आईएसआईएस, हमास के झंडे फाड़े।
क्या हुआ?
रैली में टॉमी रॉबिन्सन, कैटी हॉपकिंस और फ्रेंच नेता एरिक ज़ेमौर जैसे वक्ताओं ने भड़काऊ भाषण दिए। पुलिस पर बोतलें और मिसाइलें फेंकी गईं। दूसरी ओर, 5,000 काउंटर-प्रोटेस्टर्स, जैसे स्टैंड अप टू रेसिज्म, ने “Refugees welcome” के नारे लगाए। सांसद जराह सुल्ताना और डायने एबॉट ने फार-राइट की निंदा की। पीएम कीर स्टार्मर ने हिंसा को अस्वीकार्य बताया, लेकिन उनकी सरकार पर दबाव बढ़ रहा है। ये प्रदर्शन 2024 के साउथपोर्ट दंगों का विस्तार हैं, जब एक चाकू हमले की अफवाह ने नस्लीय हिंसा भड़काई थी।
भारतीय नागरिकों पर प्रभाव। ब्रिटेन में 18 लाख से ज्यादा भारतीय मूल के लोग रहते हैं, जो सबसे बड़े अल्पसंख्यक समूहों में से एक हैं। ये प्रदर्शन उनके लिए कई नुकसान ला सकते हैं:
. नस्लीय तनाव और हमले: फार-राइट समूह आप्रवासियों को निशाना बनाते हैं, जिसमें भारतीय भी शामिल हैं। 2024-25 के दंगों में दक्षिण एशियाई समुदायों पर हमले बढ़े। दुकानों, मंदिरों और घरों पर आगजनी की खबरें आईं। भारतीय छात्रों और पेशेवरों को असुरक्षा का डर है, खासकर छोटे शहरों में।
आर्थिक प्रभाव भारतीय मूल के लोग ब्रिटेन में व्यापार, स्वास्थ्य और टेक क्षेत्र में अहम भूमिका निभाते हैं। हिंसा और अस्थिरता से व्यवसाय प्रभावित हो रहे हैं, खासकर लंदन और मिडलैंड्स में। भारतीय रेस्तरां और दुकानें निशाने पर रही हैं, जिससे आर्थिक नुकसान हुआ।
आप्रवासन नीतियों में सख्ती: फार-राइट के दबाव में सरकार आप्रवासन नियम कड़े कर सकती है। भारतीय छात्रों (जो ब्रिटेन में सबसे ज्यादा अंतरराष्ट्रीय छात्र हैं) और कुशल कामगारों के लिए वीजा प्रक्रिया जटिल हो सकती है। रिफॉर्म यूके पार्टी, जो तीसरे नंबर पर है, “शून्य आप्रवासन” की मांग कर रही है।
सामाजिक एकता पर असर
: भारतीय समुदाय, जो ब्रिटिश समाज में अच्छी तरह घुला-मिला है, अब नस्लीय ध्रुवीकरण का सामना कर रहा है। सोशल मीडिया पर “गो बैक” जैसे नारे भारतीयों को भी निशाना बना रहे हैं। इससे मानसिक तनाव और अलगाव बढ़ रहा है।
भारत के लिए चिंता।
भारत-ब्रिटेन संबंध मजबूत हैं, खासकर व्यापार और रक्षा में। लेकिन ये प्रदर्शन ब्रिटेन में भारत की सॉफ्ट पावर को कमजोर कर सकते हैं। भारतीय दूतावास ने नागरिकों को सतर्क रहने की सलाह दी है। साथ ही, अगर ब्रिटेन आप्रवासन कम करता है, तो भारत से कुशल पेशेवरों का प्रवाह प्रभावित होगा, जो दोनों देशों की अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदायक है।
ये प्रदर्शन ब्रिटेन में सामाजिक तनाव को उजागर करते हैं, जो आर्थिक और आप्रवासन नीतियों से जुड़े हैं। भारतीय समुदाय को सावधान रहना होगा, खासकर हिंसा और नस्लीय हमलों से। भारत सरकार को ब्रिटेन के साथ बातचीत बढ़ानी चाहिए ताकि हमारे नागरिक सुरक्षित रहें।