अंतरराष्ट्रीय सीमा (IB) पर एक पाकिस्तानी चौकी के बिल्कुल नजदीक स्थित सीमा चौकी की कमान संभालने वाली असिस्टेंट कमांडेंट नेहा भंडारी ने जवानों का नेतृत्व करते हुए ‘जीरो लाइन’ के पार शत्रु की तीन अग्रिम चौकियों को मुंहतोड़ जवाब देकर खामोश कर दिया। नेहा के अलावा 6 महिला कांस्टेबल अग्रिम सीमा चौकी पर बंदूक थामे थीं और सांबा-आर एस पुरा-अखनूर सेक्टर में अंतरराष्ट्रीय सीमा के पार दुश्मन के ठिकानों पर दागी गई हर गोली के साथ उनका ‘जोश’ बढ़ता जा रहा था।
फ्रंट पर रहने का विकल्प खुद चुना
नेहा के दादा सेना में सेवारत थे, उनके माता-पिता केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) में हैं, और वह परिवार में तीसरी पीढ़ी की अधिकारी हैं। उन्होंने कहा, “मेरे दादा सेना में सेवारत थे। मेरे पिता सीआरपीएफ में थे। मेरी मां सीआरपीएफ में हैं। मैं फोर्स में तीसरी पीढ़ी की अधिकारी हूं।”
उन्होंने कहा कि महिलाएं भी पीछे नहीं रहीं और उन्होंने तीन दिनों तक चले टकराव के दौरान पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए पुरुष समकक्षों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया। उन्होंने कहा, ‘‘मेरे साथ 18 से 19 महिला सीमा रक्षक थीं। 6 महिलाएं निगरानी चौकियों पर पर गोलीबारी का जवाब दे रही थीं। हमें उन पर गर्व है।’’
परिवार में तीसरी पीढ़ी की अधिकारी हैं नेहा
उत्तराखंड में अपने परिवार की तीसरी पीढ़ी की अधिकारी नेहा को BSF का हिस्सा होने और ऑपरेशन सिंदूर के दौरान जम्मू जिले के अखनूर सेक्टर के परगवाल अग्रिम क्षेत्र में एक सीमा चौकी की कमान संभालने पर गर्व है। नेहा ने कहा, ‘‘मैं अपने सैनिकों के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा पर चौकी की कमान संभालते हुए गर्व महसूस करती हूं।
यह अखनूर-पर्गवाल क्षेत्र में पाकिस्तानी चौकी से लगभग 150 मीटर की दूरी पर है।’’ उन्होंने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर के समय चौकी की कमान संभालना वाकई बहुत बड़ी बात है। उन्होंने कहा, “अग्रिम चौकी पर सेवा करना तथा अपनी चौकी से दुश्मन की चौकियों पर सभी उपलब्ध हथियारों के साथ मुंहतोड़ जवाब देना मेरे लिए सम्मान की बात थी।”
BSF ने की महिलाकर्मियों की तारीफ
नेहा ने ऑपरेशन के दौरान जम्मू सीमा पर अंतरराष्ट्रीय सीमा पर एक अग्रिम चौकी की कमान संभालने वाली एकमात्र बीएसएफ महिला अधिकारी थीं। अग्रिम चौकियों पर महिलाओं की भूमिका और पाकिस्तानी चौकियों पर गोलीबारी में उनकी भागीदारी की प्रशंसा करते हुए बीएसएफ के महानिरीक्षक शशांक आनंद ने कहा, ‘‘बीएसएफ की महिलाकर्मियों ने इस ऑपरेशन में शानदार भूमिका निभाई। हालांकि उनके पास बटालियन मुख्यालय में जाने का विकल्प था, लेकिन उन्होंने अपने पुरुष समकक्षों के साथ अग्रिम चौकियों पर ही रहने का फैसला किया और पाकिस्तान को करारा जवाब दिया।”