जानिए इसकी कीमत और कहानी
Mahatma Gandhi Painting Auction London: अहिंसा के पुजारी,महान समाज सुधारक और भारत के स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की 1931 में बनाई गई पेंटिंग की नीलामी (Gandhi oil painting auction) 7 जुलाई से 15 जुलाई तक बोनहम्स में की जाएगी। नीलामी घर और इस पेंटिंग (Mahatma Gandhi portrait London) को बनाने वाली ब्रिटिश-अमेरिकी कलाकार क्लेयर लीटन (Claire Leighton Gandhi painting) के परिवार के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि यह एकमात्र ऐसी ऑइल पेंटिंग है जिसमें गांधीजी बैठे थे।
क्लेयर लीटन का एक दुर्लभ कार्य: लकड़ी की नक्काशी का नायाब काम
इंडियन एक्सप्रेस ने बोनहम्स के ट्रैवल एंड एक्सप्लोरेशन के बिक्री प्रमुख रियानोन डेमरी के हवाले से बताया, “यह न केवल क्लेयर लीटन का एक दुर्लभ कार्य है, जो मुख्य रूप से अपनी लकड़ी की नक्काशी के लिए जानी जाती हैं, बल्कि यह महात्मा गांधी की एकमात्र ऑइल पेंटिंग भी मानी जाती है, जिसे उन्होंने बैठ कर बनाया था।”रिपोर्ट के अनुसार, कलाकार के भतीजे कैस्पर लीटन ने इस पेंटिंग को “संभवतः छिपा हुआ खजाना” बताया है।
नीलामी के लिए रखी गई गांधी जी की पेंटिंग की कीमत
जानकारी के अनुसार अगले महीने पहली बार नीलामी के लिए रखी गई इस पेंटिंग के 50,000 से 70,000 ( 68,000 और 95,000) के बीच में बिकने का अनुमान है।
बापू की ऑइल पेंटिंग और पहले की प्रदशर्नियां
इस पेंटिंग को नवंबर 1931 में लंदन में प्रदर्शित किया गया था। इस पेंटिंग का एकमात्र अन्य सार्वजनिक प्रदर्शन 1978 में क्लेयर लीटन के काम की बोस्टन पब्लिक लाइब्रेरी प्रदर्शनी में हुआ था।
इस पेंटिंग में कहानी इससे कहीं ज़्यादा बड़ी है
क्लेयर की मृत्यु के बाद, यह कलाकृति कैस्पर के पिता के पास चली गई और फिर उसके पास। कैस्पर ने कहा, “यह मेरे परिवार की कहानी है, लेकिन इस पेंटिंग में कहानी इससे कहीं ज़्यादा बड़ी है।” उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि अगर इसे ज़्यादा लोग देखें तो यह बहुत अच्छा होगा। शायद इसे वापस भारत ले जाना चाहिए – शायद यही इसका असली घर है।”
अहिंसा की कीमत दिए जा रहा हूं
महात्मा गांधी के निधन पर जोधपुर के तत्कालीन नगर परिषद में आयोजित एक शोकसभा में गांधीजी के चित्र पर रूई को लाल रंग से गीला कर के लगाया गया था। जिस पर तत्कालीन मशहूर शायर रम्जी इटावी ने यह शेर कहा था-
मैं सीने पे दाग इक लिए जा रहा हूं,
अहिंसा की कीमत दिए जा रहा हूं।
पेंटर ने इस कल्पना को पेंटिंग पर साकार किया है।
गांधी के चेहरे पर गहरे घाव की छाया दिखाई है
पेंटिंग पर यूवी लाइट डालते हुए डेमरी ने गांधी के चेहरे पर गहरे घाव की छाया दिखाई है। डेमरी ने बताया कि अब बहाल की गई पेंटिंग को यहीं नुकसान पहुंचाया गया था। उन्होंने कहा, “ऐसा लगता है कि यह जानबूझ कर किया गया है।”
महात्मा गांधी लंदन कब गए थे और क्यों?
जून 1891 में जब गांधी लंदन से रवाना हुए, तब तक उनमें एक महत्वपूर्ण परिवर्तन आ चुका था। पश्चिमी दर्शन के साथ-साथ हिंदू मान्यताओं के संपर्क ने सत्य , अहिंसा और न्याय के बारे में उनके विचारों को आकार देने में मदद की—ये वे मूल्य थे जो आगे चलकर उनके सत्याग्रह दर्शन को परिभाषित करने वाले थे ।
गांधी जी शिक्षा प्राप्त करने लंदन क्यों गए थे?
विदेश में शिक्षा व विदेश में ही वकालत
अपने १९वें जन्मदिन से लगभग एक महीने पहले ही ४ सितम्बर १८८८ को गांधी यूनिवर्सिटी कॉलेज लन्दन में कानून की पढाई करने और बैरिस्टर बनने के लिये इंग्लैंड चले गये।