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Kanpur : एकता की मिसाल, एक साथ पूजा और नमाज का अद्भुत तीर्थस्थल

Surekha Bhosle
Surekha Bhosle
Kanpur : एकता की मिसाल, एक साथ पूजा और नमाज का अद्भुत तीर्थस्थल

450 साल पुराना इतिहास

Kanpur इस अनोखे तीर्थस्थल का निर्माण आज से करीब 450 साल पहले हुआ था। यह स्थल भारत की गंगा-जमुनी तहजीब और धार्मिक एकता का प्रतीक है

कानपुर (Kanpur) के अकबरपुर में स्थित शुक्ला तालाब परिसर में एक ही स्थान पर मंदिर (Temple) और मस्जिद का अद्भुत संगम है. मुगल काल में निर्मित यह परिसर हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच एकता और सौहार्द का प्रतीक रहा है. सावन मास में यहां विशेष धार्मिक आयोजन होते हैं, जो सांप्रदायिक सौहार्द का जीवंत उदाहरण है।

काफी पुराना है और यह शहर राज्य का एक महत्वपूर्ण औद्योगिक शहर है. ऐसा कहा जाता है कि कानपुर की स्थापना सचेंडी राज्य के राजा हिंदू सिंह ने की थी, और इसका मूल नाम ‘कान्हपुर’ था.

कानपुर Kanpur शहर अपने आप में इतिहास

कानपुर Kanpur शहर अपने आप में इतिहास, औद्योगिक विकास, और स्वतंत्रता संग्राम की कई कहानियां संजोए हुए है. कानपुर शहर एकता, सौहार्द और शांति के लिए भी जाना जाता है.

इसके संकेत मुगल काल में बनी कुछ ऐतिहासिक इमारतों और धार्मिक स्थलों से मिलते हैं. जिले के अकबरपुर में बना शुक्ला तालाब एकता और सौहार्द की मिसाल पेश करता है. आइए जानते हैं कि क्यों इसे एकता और सौहार्द का प्रतीक माना जाता है…

कानपुर जिले के अकबरपुर में स्थित शुक्ला तालाब परिसर में एक ही जगह मंदिर और मस्जिद है. ऐसा कहा जाता है कि इनका निर्माण आज से करीब 450 साल पहले मुगल काल में कराया गया था.

मुगल काल में बना ये परिसर आज भी गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल बना हुआ है. इस परिसर में एक और शिव मंदिर बना है जबकि वहीं दूसरी मस्जिद का निर्माण हुआ था.

शिव मंदिर को नर्मदेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है. इस परिसर में एक साथ पूजा और नमाज होती है. हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोग आपसी भाईचारे की मिसाल पेश करते रहे हैं. जहां एक ओर शिव मंदिर में पूजा-अर्चना होती है. वहीं दूसरी ओर मुस्लिम समुदाय के लोग मस्जिद में नमाज अदा करते हैं।

मुगल काल में हुआ था निर्माण

ऐसा माना जाता है कि 1578 में इस परिसर का निर्माण कराया गया था. मुगल शासक अकबर के शासनकाल में जब अकरपुर का दिवान शीतल शुक्ला और आमिल नत्थे खां को नियुक्ति किया गया था. इसी दौरान इस इलाके में भीषण अकाल पड़ा था.

शीतल शुक्ल न आमिल नत्थे के साथ मिलकर विशाल तालाब, मंदिर और बारादरी का निर्माण कराया था. इस इमारत का निर्माण सरकारी पैसों से कराया गया था, जिसका निरीक्षण खुद मुगल शासक अकबर ने किया था. सरकारी धन का दुरुपयोग नहीं किए जाने से खुश होकर मुगल शासक ने शीतल शुक्ला और आमिल नत्थे खां को पुरस्कृत भी किया था. शीतल शुक्ला की महादेव में गहरी आस्था थी, इसलिए उन्होंने परिसर में एक मंदिर का भी निर्माण कराया था।

सावन में जुटती है भारी भीड़

सावन के महीने में यहां विशेष धार्मिक आयोजन किए जाते हैं. वहीं प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव में आस्था रखने वाले भक्त जलाभिषेक और पूजा करते हैं. वहीं सावन के आखिरी सोमवार को कई अलग-अलग धार्मिक कार्यक्रम किए जाते हैं. रुद्राभिषेक, भव्य श्रृंगार और भंडारे का विशेष आयोजन किया जाता है.

वहीं ये भी मान्यता है कि इस मंदिर में सावन के महीने में अंताक्षरी मंत्र ऊँ नम: शिवाय का जाप करने से भक्तों के कष्ट दूर होते हैं और मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं. सावन के महीने में होने वाले धार्मिक कार्यक्रमों में स्थानीय लोग उत्साह के साथ शामिल होते हैं और आयोजन के दौरान व्यवस्थाओं में योगदान करते हैं.

एकता और सौहार्द की मिसाल

शुक्ला तालाब परिसर में मंदिर और मस्जिद एक ही जगह मौजूद हैं जो एकता और सौहार्द का प्रतीक हैं. दोनों धार्मिक स्थल एक ही परिसर में मौजूद हैं. हिंदू और मुस्लिम समाज के लोग यहां आते हैं और सौहार्द की मिसाल कायम करते हैं.

हालांकि इस परिसर को पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित किया गया है. प्रशासन इस परिसर को हेरिटेज होटल के रुप में विकसित करना चाहता है. इसके लिए 38 करोड़ रुपए की स्वीकृति भी प्रदान की गई है।

कानपुर में अकबरपुर कहाँ स्थित है?

मुख्य औद्योगिक क्षेत्र अकबरपुर ब्लॉक के जैनपुर में स्थित है, जो कानपुर शहर से लगभग 38 किलोमीटर दूर, कालपी रोड के दोनों ओर स्थित है

अकबरपुर किस लिए प्रसिद्ध है?

यह जिला टांडा टेरीकॉट कपड़ों के लिए प्रसिद्ध है, जो पास के टांडा में स्थित है। जिले में एक चीनी कारखाना है, अकबरपुर चीनी मिल, जो शहर से लगभग 10 किलोमीटर (6.2 मील) दूर मिझौरा के पास स्थित है। अकबरपुर में कई चावल मिलें मौजूद हैं। एक सीमेंट निर्माण संयंत्र है, जेपी आयुध ग्राइंडिंग यूनिट, जो जेपी समूह से संबंधित है।

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