Lord Ganesha : धन, वैभव, और समृद्धि के इस दुनिया में अक्सर लोग अपनी संपत्ति और शक्ति का अहंकार करने लगते हैं। लेकिन भगवान गणेश (Lord Ganesha)ने हमें सिखाया है कि धन से बड़ा सद्गुण है विनम्रता और अहंकार से दूर रहना। एक दिलचस्प कहानी है जो भगवान गणेश और कुबेर देव के बीच घटी थी, जिसमें भगवान गणेश ने कुबेर का घमंड तोड़ा और उन्हें जीवन का महत्वपूर्ण संदेश दिया।
कुबेर का धन और अहंकार
कुबेर देव, (Kuber Dev) जिन्हें धन के देवता के रूप में पूजा जाता है, स्वर्ण और रत्नों के भंडार के मालिक थे। वे बहुत ही संपन्न और शक्तिशाली थे, जिसके कारण उन्होंने अपनी संपत्ति पर गर्व करना शुरू कर दिया था। उनका अहंकार बढ़ने लगा, और वे समझने लगे कि धन ही सब कुछ है।
धन से बढ़ा अहंकार
कुबेर का यह अहंकार धीरे-धीरे उनके जीवन में घमंड के रूप में बदलने लगा। वे भगवान गणेश की उपेक्षा करने लगे और यह सोचने लगे कि कोई भी देवता उनके सामने नहीं ठहर सकता। उनका यह अहंकार एक दिन भगवान गणेश के समक्ष भारी पड़ने वाला था।
गणेश जी की परीक्षा
एक दिन भगवान गणेश, जो कभी भी किसी से अहंकार नहीं करते, कुबेर के पास गए। उन्होंने कुबेर से कहा कि वे भूखे हैं और उन्हें खाने के लिए कुछ चाहिए। कुबेर ने सोचा कि भगवान गणेश को अपनी संपत्ति से श्रेष्ठ भोजन प्रदान करूंगा, ताकि वे मेरी संपत्ति का महत्व समझें।
गणेश जी की शक्ति
कुबेर ने भगवान गणेश को लजीज व्यंजन परोसा, लेकिन गणेश जी ने खाने के बाद अचानक यह कहना शुरू कर दिया कि उन्हें और अधिक खाना चाहिए। वे खाने के लिए लगातार मांग करते रहे, जिससे कुबेर को चिंता हुई।
गणेश जी का रूप
गणेश जी Lord Ganesha ने धीरे-धीरे अपनी वाणी और रूप से कुबेर का घमंड तोड़ा। उन्होंने अपने आकार को इतना बढ़ा लिया कि कुबेर का महल भी छोटा पड़ने लगा। अंत में, कुबेर को समझ में आ गया कि कोई भी व्यक्ति या देवता धन से बड़ा नहीं हो सकता।
कथा से सीखें ये बातें
- अहंकार इंसान को अंधा बना देता है। धन या कोई पद या शक्ति हमारे पास है तो हमें विनम्रता बनाए रखनी चाहिए। कभी अपने धन की वजह से दूसरों छोटा न समझें।
- कुबेर ने भव्य भोजन कराया, पर गणेश जी तृप्त नहीं हुए। लेकिन जब मां पार्वती ने सादे भोजन में स्नेह और ममता के साथ खिलाया, तब गणेश जी का पेट भर गया। कभी भी किसी कार्य को सिर्फ दिखावे के लिए न करें। सच्ची भावना के साथ किया गया छोटा-सा कार्य भी बहुत बड़ा प्रभाव डालता है। भोजन हो या व्यवहार, उसमें प्रेम और अपनापन जरूरी है।
- कुबेर सोचते थे कि उनका भंडार कभी खत्म नहीं होगा, लेकिन गणेश जी ने उनके रसोईघर से लेकर भंडार तक सब खाली कर दिया। इससे पता चलता है कि कोई भी संसाधन अनंत नहीं है। हमें बचत की आदत डालनी चाहिए। सोच-समझकर खर्च करें। कभी ये मत सोचें कि संसाधन कभी खत्म नहीं होंगे। धन, समय, स्वास्थ्य, हर चीज सीमित होती है और हमें अपने संसाधनों का सही इस्तेमाल करना चाहिए।
गणेश पूजा की शुरुआत कैसे हुई?
कैसे हुई गणेशोत्सव की शुरुआत? ऐसे में लोगों तक क्रांतिकारी नेताओं के लिए अपने विचार पहुंचाना मुश्किल हो गया था। इसलिए लोकमान्य तिलक ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ लोगों को एकजुट करने के लिए हिंदू प्रतीकों और त्योहारों का सहारा लिया।इसके बाद 1893 में, उन्होंने गणेश चतुर्थी के मौके पर एक नई परंपरा की शुरुआत की।
गणेश का संदेश क्या है?
गणेश जी का स्वरूप अगर कम शब्दों में बताएं तो यह सीख देता है कि बड़े कानों से सब कुछ सुनो, विवेक से उसका विश्लेषण करो, अच्छे-बुरे सभी अनुभवों को पेट में समेट लो और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहो। यही भगवान गणेश के स्वरूप का मुख्य संदेश है।
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