तियानजिन । शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए चीन पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच द्विपक्षीय बैठक हुई। इसमें आपसी व्यापार, सीमा पर शांति, विश्वास और सम्मान के अलावा संवेदनशील मुद्दों पर सहमति बनने की खबर है।
आपसी विश्वास और संवेदनशीलता पर जोर
बैठक के बाद प्रधानमंत्री मोदी (Prime Minister) ने कहा कि आपसी विश्वास, सम्मान और संवेदनशीलता के आधार पर हम अपने संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इस दौरान उन्होंने एससीओ की सफल अध्यक्षता के लिए शी जिनपिंग को बधाई भी दी और निमंत्रण के लिए धन्यवाद दिया।
एससीओ शिखर सम्मेलन का महत्व
पीएम मोदी और शी जिनपिंग के बीच द्विपक्षीय बैठक तियानजिन शहर में हुई, जहां रविवार से दो दिवसीय एससीओ शिखर सम्मेलन शुरू होगा। इसमें रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी शामिल हो सकते हैं। अमेरिका की टैरिफ नीतियों के बीच तीन देशों के नेताओं की मुलाकात बेहद अहम मानी जा रही है।
सीमा शांति और स्थिरता पर बनी सहमति
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि सीमा पर सैनिकों की वापसी के बाद शांति और स्थिरता का माहौल बना है। विशेष प्रतिनिधियों के बीच बॉर्डर मैनेजमेंट (Border Managment) पर सहमति बनी है, जिससे संबंध सकारात्मक दिशा में आगे बढ़े हैं।
मानसरोवर यात्रा और सीधी उड़ानें फिर शुरू
पीएम मोदी ने जानकारी दी कि कैलाश मानसरोवर यात्रा और भारत-चीन के बीच सीधी उड़ानें दोबारा शुरू की गई हैं। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के 2.8 अरब लोगों के हित इस सहयोग से जुड़े हैं, जो पूरी मानवता के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करेंगे।
दस महीने बाद हुई पहली द्विपक्षीय बातचीत
यह बैठक लगभग दस महीने बाद हुई है। दोनों नेता पिछली बार 2024 में रूस के कज़ान में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान मिले थे। इस मुलाकात का फोकस भारत-चीन संबंधों को मजबूत करने और हाल की प्रगति को आगे बढ़ाने पर रहा।
सीमा विवाद सुलझाने की दिशा में बड़ा कदम
भारत और चीन ने हाल ही में 3,500 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर गश्ती प्रोटोकॉल पर सहमति बनाई। इससे चार साल से जारी सीमा विवाद काफी हद तक कम हुआ है और तनाव घटाने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है।
वैश्विक राजनीति में संकेत
विशेषज्ञ मानते हैं कि एससीओ समिट से चीन यह संदेश देगा कि वह अमेरिका नेतृत्व वाले ग्लोबल ऑर्डर का विकल्प है। साथ ही, यह भी संकेत जाएगा कि चीन, रूस, ईरान और भारत को अलग-थलग करने की अमेरिकी कोशिशें नाकाम रही हैं।
Read More :