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MP : : कैडर रिव्यू टला, आईएफएस में प्रमोशन अटका

Anuj Kumar
Anuj Kumar
MP : : कैडर रिव्यू टला, आईएफएस में प्रमोशन अटका

भोपाल । किसी भी सेवा का प्रशासनिक ढांचा पिरामिड आकार का होना बेहतर माना जाता है, लेकिन मप्र में आईएफएस कैडर (IFS Cadre) का ढांचा चरमराया हुआ है। चिंताजनक स्थिति यह है कि अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक और मुख्य वन संरक्षक के कई पद खाली हैं और सेवा आर्हता नहीं होने से प्रमोशन भी नहीं हो पा रहे। 2018 और 2023 में कैडर रिव्यू होना था, लेकिन यह टल गया। अब अगले माह के अंत तक कैडर रिव्यू की संभावना जताई जा रही है।

खाली पड़े पद, काम का बोझ बढ़ा

कैडर में एपीसीसीएफ (APCCF) के 25 पद हैं, लेकिन सिर्फ 6 अफसर कार्यरत हैं। इसी तरह सीसीएफ के 50 पद स्वीकृत हैं, जिनमें केवल 10 अफसर ही काम कर रहे हैं। नतीजतन, एक-एक अफसर के पास 3-4 शाखाओं का अतिरिक्त प्रभार है।

कैडर रिव्यू का इतिहास

2002 में कैडर में पीसीसीएफ का एक और एपीसीसीएफ के 4 पद थे। 2008 की समीक्षा में एपीसीसीएफ के 10 पद और 2015 में 21 पद किए गए। समय-समय पर पद बढ़ते गए, लेकिन आज कई पद खाली हैं।

प्रमोशन अटका, योग्य अधिकारी नहीं

वर्तमान में ऐसी स्थिति है कि एपीसीसीएफ और सीसीएफ स्तर पर प्रमोशन पाने के लिए कोई अधिकारी सेवा आर्हता पूरी नहीं कर पा रहा। यही वजह है कि पद खाली रह गए हैं।

जनवरी में होंगे प्रमोशन

सेवा आर्हता पूरी होने के बाद 2001 बैच की पदम् प्रिया और अमित दुबे 1 जनवरी 2026 से एपीसीसीएफ पद पर प्रमोट होंगे। वहीं, 2012 बैच के कई अधिकारी वन संरक्षक पर पदोन्नत किए जाएंगे।

अनावश्यक शाखाओं पर सवाल

पूर्व वन बल प्रमुख का सुझाव है कि एपीसीसीएफ उत्पादन, निगरानी एवं मूल्यांकन और एचआरडी जैसी शाखाओं को खत्म किया जाए। इसी तरह सामाजिक वानिकी जैसे पदों को सीएफ स्तर पर दिया जा सकता है।

कैडर में खामियां और अस्थाई मंजूरी

1978–80 बैच में 90 आईएफएस रहे। इन्हें समय से पहले प्रमोशन देने के लिए अस्थाई मंजूरी लेकर अतिरिक्त पद बनाए गए। लेकिन बाद में ये पद खत्म नहीं हुए, जिससे कैडर मैनेजमेंट (Cadre Managtment) बिगड़ गया।

परीक्षा प्रणाली भी बनी वजह

एक साथ परीक्षा होने की वजह से बॉटनी पृष्ठभूमि के अभ्यर्थी पीछे रह गए और आईएफएस इंडक्शन कम होने लगा। मप्र ने केंद्र से बार-बार 10-12 इंडक्शन की मांग की, लेकिन सुनवाई नहीं हुई।

पे कमीशन का असर

1997 में 5th पे कमीशन लागू होने के बाद 30% पद घटा दिए गए। 1998 बैच से भर्ती कम होती गई और 2008 तक यही सिलसिला चला। इसी कारण आज पूरे भारत में, खासकर मप्र जैसे बड़े कैडर में, ढांचा चरमराया हुआ है।

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