नई दिल्ली । भारत में 17वें उपराष्ट्रपति के लिए मतदान प्रक्रिया पूरी होने के बाद देश को नया उपराष्ट्रपति मिलेगा। इस बीच, अब तक हुए उपराष्ट्रपति चुनावों का इतिहास कई दिलचस्प तथ्य सामने लाता है। 1952 में सर्वपल्ली राधाकृष्णन पहले उपराष्ट्रपति (Vice president) निर्विरोध चुने गए थे। वे 1957 में दूसरी बार भी निर्विरोध जीते और बाद में राष्ट्रपति बने।
महिला उपराष्ट्रपति अब तक नहीं
अब तक देश में 14 उपराष्ट्रपति हुए हैं, लेकिन एक भी महिला इस पद तक नहीं पहुंच सकी। 2007 में नजमा हेपतुल्ला एनडीए की ओर से उम्मीदवार बनीं, लेकिन हार गईं।
मुस्लिम चेहरे उपराष्ट्रपति पद पर
भारत में अब तक तीन मुस्लिम उपराष्ट्रपति हुए हैं—जाकिर हुसैन (Jakir Hussaain) मोहम्मद हिदयातुल्लाह और हामिद अंसारी। इनमें अंसारी ने लगातार दो बार यह पद संभाला।
दक्षिण भारत से सबसे ज्यादा उपराष्ट्रपति
14 में से 6 उपराष्ट्रपति दक्षिण भारत से रहे हैं। यह क्षेत्रीय प्रभाव का संकेत देता है। 1969 में राष्ट्रपति जाकिर हुसैन के निधन के बाद रिकॉर्ड 4 महीने तक उपराष्ट्रपति पद खाली रहा।
खास उपराष्ट्रपति और उनकी उपलब्धियां
- बीडी जत्ती ने इंदिरा गांधी, मोरारजी देसाई और चौधरी चरण सिंह के कार्यकाल में उपराष्ट्रपति का दायित्व निभाया।
- मोहम्मद हिदयातुल्लाह एकमात्र व्यक्ति रहे, जिन्होंने राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और मुख्य न्यायाधीश—तीनों शीर्ष पदों पर काम किया।
- शंकर दयाल शर्मा इकलौते नेता रहे जिन्होंने राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, मुख्यमंत्री, कैबिनेट मंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष सभी पदों पर जिम्मेदारी संभाली।
- कृष्णकांत का कार्यकाल में ही निधन हो गया।
राष्ट्रपति बने कई उपराष्ट्रपति
आर. वेंकटरमण, शंकर दयाल शर्मा और केआर नारायणन (K R Naryan) ने इस्तीफा देकर राष्ट्रपति पद संभाला।
सबसे आसान और कठिन जीत
1992 में केआर नारायणन को जबरदस्त बहुमत मिला और उनके प्रतिद्वंद्वी को सिर्फ 1 वोट मिला। वहीं 2007 में पहली बार तीन प्रत्याशियों के बीच मुकाबला हुआ, जिसमें हामिद अंसारी ने जीत दर्ज की।
बीजेपी से उपराष्ट्रपति
भैरो सिंह शेखावत बीजेपी के पहले उपराष्ट्रपति बने। बाद में वेंकैया नायडू और जगदीप धनखड़ ने भी यह जिम्मेदारी संभाली।
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने शिक्षक दिवस क्यों मनाया था?
राधाकृष्णन शिक्षा और शिक्षकों के महत्व में विश्वास करते थे। जब उनके छात्रों ने उनका जन्मदिन मनाने की इच्छा व्यक्त की, तो उन्होंने विनम्रतापूर्वक सुझाव दिया कि इसे शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए। 1962 से, भारत इस परंपरा को जारी रखे हुए है और शिक्षकों के समर्पण और सेवा के लिए उन्हें पूरे देश में सम्मानित करता है।
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