इलाहाबाद हाई कोर्ट (Highcourt) ने शादी के वादे पर चार साल तक शारीरिक संबंध बनाए रखने के बाद शादी से इंकार के मामले में एक महिला लेखपाल की याचिका खारिज कर दी है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि आपसी सहमति से बने रिश्ते में सिर्फ शादी से मना कर देना दुष्कर्म (REAP) नहीं बनाता।.

मामला इस तरह है कि 2019 में एक महिला लेखपाल ने अपने सहकर्मी पर आरोप लगाया कि उन्होंने जन्मदिन की पार्टी के बहाने उसे घर बुलाया, नशीला पदार्थ पिलाया, फिर शारीरिक संबंध बनाये, वीडियो बनाकर ब्लैकमेल किया, और बाद में उन्होंने शादी का वादा भी किया। आरोप है कि बीच-बीच में जातिगत टिप्पणी हुई और फिर आरोपी ने शादी से मना कर दिया।
निचली अदालत (SC/ST विशेष न्यायालय) ने शिकायत को खारिज कर दिया था, और महिला ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपनी याचिका दायर की। सुनवाई के दौरान महिला ने बताया कि वे दोनों चार साल तक एक दूसरे के साथ शारीरिक रूप से जुड़े रहे और रिश्ते में उन्होंने शादी की उम्मीद भी जता रखी थी।
हाई कोर्ट की एकल पीठ ने यह कहा कि यदि दो वयस्क आपसी सहमति से चार साल तक संबंध में रहे हों, और यह स्पष्ट हो कि इस दौरान दोनो पक्षों की सहमति रही हो, तो इसके आधार पर यह नहीं माना जा सकता कि केवल शादी न होने के कारण रेप हुआ है। न्यायालय ने यह भी देखा कि महिला की मर्जी इस रिश्ते में शामिल थी और परिस्थितियों से यह लगता नहीं कि यदि शादी का वादा न होता तो संबंध नहीं बनते।
महिला लेखपाल की याचिका खारिज करते हुए कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि यह मामला यौन अपराध का नहीं, बल्कि प्रेम संबंध में असहमति का है, जिसमें शादी से इंकार किया गया है।