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Hindi News: भारत-अमेरिका संबंध: एक दोस्ती या व्यापारिक दबाव?

Vinay
Vinay
Hindi News: भारत-अमेरिका संबंध: एक दोस्ती या व्यापारिक दबाव?

भारत और अमेरिका के बीच मित्रता का रिश्ता ऐतिहासिक रूप से उतार-चढ़ाव से भरा रहा है। जबकि दोनों देशों के बीच सामरिक और व्यापारिक संबंध मजबूत होते जा रहे हैं, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का प्रशासन कई बार भारत के लिए मुश्किलें पैदा कर चुका है। ट्रंप के व्यापारिक नीतियों और संशोधित विदेश नीति ने भारत के लिए यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या अमेरिका के साथ इस दोस्ती पर भरोसा किया जा सकता है या नहीं।

मुलायम बातें, कठोर नीतियाँ

ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद से भारत-अमेरिका संबंधों में कुछ सकारात्मक बदलाव आए हैं, लेकिन कई बार अमेरिकी नीति और राष्ट्रपति की बयानों से भारत के लिए असमंजस पैदा होता है। ट्रंप ने अक्सर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अच्छे संबंधों की बात की है, लेकिन व्यापारिक मुद्दों पर उन्होंने भारत पर दबाव बनाने की कोशिश की है।

भारत को सबसे ज्यादा समस्या तब हुई जब अमेरिका ने भारतीय उत्पादों पर टैरिफ (कस्टम ड्यूटी) बढ़ा दिए। उदाहरण के लिए, भारत से आने वाले स्टील और एल्यूमीनियम पर अतिरिक्त शुल्क लगा दिए गए, जिससे भारतीय निर्यातकों को गंभीर नुकसान हुआ। जबकि भारत को उम्मीद थी कि ट्रंप भारत के साथ व्यापारिक संबंधों में लचीलापन दिखाएंगे, ट्रंप के “अमेरिका फर्स्ट” नारे ने भारत को हैरान कर दिया।

चाबहार पोर्ट:

भारत ने ईरान के चाबहार पोर्ट के विकास के लिए बड़ी योजना बनाई थी। चाबहार पोर्ट भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंचने का एक रणनीतिक रास्ता प्रदान करता है, जो ईरान के माध्यम से किया जा सकता है। लेकिन ट्रंप ने ईरान के खिलाफ कड़े प्रतिबंध लगाए हैं, और भारत को चेतावनी दी है कि अगर उसने ईरान से व्यापार किया तो वह अमेरिका के प्रतिबंधों का सामना करेगा।

भारत के लिए यह स्थिति असुविधाजनक है, क्योंकि एक ओर जहां वह अमेरिका के साथ अपने सामरिक रिश्ते मजबूत करना चाहता है, वहीं दूसरी ओर ईरान से पुराने और गहरे रिश्ते हैं, जिनमें ऊर्जा आपूर्ति और क्षेत्रीय सुरक्षा का अहम पहलू शामिल है। इस प्रकार, भारत को यह समझने में मुश्किल हो रही है कि उसे किसे प्राथमिकता देनी चाहिए: अमेरिका से अपने रिश्ते को बनाए रखना या ईरान के साथ सहयोग को जारी रखना।

ट्रंप के “टैन्ट्रम” और भारतीय चिंताएँ

ट्रंप का नेतृत्व कभी-कभी अस्थिर और अप्रत्याशित रहा है। उनका “टैन्ट्रम” यानी अचानक के फैसले और नीतियाँ, जैसे कि व्यापारिक टैरिफ में बढ़ोतरी, ईरान पर सख्ती, और संयुक्त राष्ट्र से अमेरिका की वापसी, भारतीय नीति निर्माताओं के लिए चिंता का कारण बने हैं। ट्रंप के फैसलों ने भारत को यह सोचने पर मजबूर किया है कि क्या वह अमेरिका के साथ संबंधों में स्थिरता की उम्मीद कर सकता है या नहीं।

भारत ने हमेशा वैश्विक मंच पर कूटनीतिक संतुलन बनाए रखने का प्रयास किया है, लेकिन ट्रंप की नीतियों ने इस संतुलन को चुनौती दी है। उदाहरण के लिए, भारत को ईरान से तेल आयात जारी रखने के लिए अमेरिका से छूट की आवश्यकता थी, जबकि अमेरिका का कहना था कि उसे इन तेल आयातों को रोकना होगा। इससे भारत को एक बड़ा रणनीतिक झटका लगा।

आगे का रास्ता

हालाँकि, भारत और अमेरिका के बीच सामरिक सहयोग जारी रहेगा, खासकर आतंकवाद, क्षेत्रीय सुरक्षा, और हथियारों के नियंत्रण जैसे मुद्दों पर। दोनों देशों ने संयुक्त रूप से कई मोर्चों पर काम किया है, लेकिन ट्रंप के व्यापारिक निर्णय और नीतिगत झटके भारत के लिए चुनौती बन सकते हैं।

भारत को चाहिए कि वह अपने रणनीतिक हितों को मजबूत करते हुए अमेरिका के दबाव का मुकाबला करे और साथ ही अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपने सहयोगियों के साथ मिलकर अपने कूटनीतिक विकल्पों को विस्तार दे। ट्रंप के साथ संबंधों में सतर्कता और संतुलन बनाए रखना भारत के लिए भविष्य में आवश्यक हो सकता है

अमेरिका से भारत की दोस्ती में कई परतें हैं, और यह केवल साझा हितों से नहीं, बल्कि व्यापार, सुरक्षा, और कूटनीति के जटिल समीकरणों से भी जुड़ी हुई है। ट्रंप के कार्यकाल में भारत को जो असमंजस और दबाव झेलने को मिला, वह आने वाले वर्षों में भी जारी रह सकता है। लेकिन यदि भारत अपनी कूटनीतिक और सामरिक योजनाओं को सही तरीके से संतुलित करता है, तो वह अपने हितों की रक्षा कर सकता है, चाहे अमेरिका के साथ रिश्ते कितने भी जटिल क्यों न हों।

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