पटना, 24 सितंबर 2025
बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखें नज़दीक आते ही भारतीय जनता पार्टी (BJP) को अंदरूनी असंतोष का सामना करना पड़ रहा है। पार्टी के दो वरिष्ठ राजपूत नेता राजीव प्रताप रूडी (Rajeev Pratap Rudi) और आरके सिंह अपने तेवरों से यह संकेत दे रहे हैं कि भाजपा नेतृत्व जातीय समीकरणों और स्थानीय राजनीति की संवेदनशीलता को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता।
आरके सिंह का सीधा सवाल
पूर्व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह ने साफ कहा है कि जिन नेताओं पर गंभीर आरोप लगे हैं, उन्हें सार्वजनिक तौर पर सफाई देनी चाहिए। उन्होंने यह भी जोड़ा कि अगर उनके बयान को पार्टी अनुशासनहीनता मानती है, तो वे कार्रवाई से डरने वाले नहीं हैं। उनका निशाना अप्रत्यक्ष रूप से प्रदेश नेतृत्व और सहयोगी जेडीयू के कुछ चेहरों पर था।
रूडी का असंतोष
दूसरी ओर, राजीव प्रताप रूडी पहले ही यह कह चुके हैं कि बिहार की राजनीति में राजपूत समाज का उपयोग “सिर्फ वोट बैंक” की तरह किया गया है, लेकिन उन्हें बराबरी का सम्मान नहीं मिला। हाल में दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब चुनाव में उनकी जीत ने उनके आत्मविश्वास और मुखरता को और बढ़ा दिया है।
चुनावी असर
राजपूत समुदाय राज्य की कुल आबादी का छोटा लेकिन निर्णायक हिस्सा है। अगर भाजपा के भीतर यह असंतोष गहराता है, तो इसका असर सीटों के गणित पर पड़ सकता है। विपक्षी दल भी इस असहमति को भुनाने की कोशिश में हैं।
बिहार में भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती अब सिर्फ विपक्ष नहीं, बल्कि अपने असंतुष्ट नेता भी हैं। हाईकमान के लिए यह ज़रूरी होगा कि वह जातीय असंतुलन और नेतृत्व संकट दोनों का समाधान निकाले, वरना चुनावी समीकरण बिगड़ सकते हैं।
Read also