पाकिस्तान-भारत तनाव पर नए बयान ने हलचल मचा दी
इस्लामाबाद: इस्लामाबाद में पाकिस्तान(Pakistan) के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ(Khawaja Asif) ने हालिया वक्तव्य में भारत(India) के साथ युद्ध की संभावना का खुला संकेत दिया है। उन्होंने टीवी इंटरव्यू में कहा कि वे युद्ध के जोखिम से इनकार नहीं करते तथा “इंशाअल्लाह” के साथ भारत के खिलाफ फिर से लड़ने का इशारा भी दिया। इस बयान के बाद क्षेत्रीय कूटनीति और मीडिया में तेज बहस छिड़ गई है।
रुख, धमकी और ऐतिहासिक संदर्भ
ख्वाजा आसिफ(Khawaja Asif) ने अपने कथानक में यह भी जोड़ा कि पाकिस्तान अल्लाह के नाम पर बना हुआ देश है और इतिहास गवाह है, जबकि वे औरंगजेब का उदाहरण देते हुए भारत को केंद्र में रख रहे हैं। हाल के दिनों में उनके आवभगतपूर्ण एलान और भाषा ने दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ाया है। हालाँकि उनका रुख आक्रामक दिखता है, अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने संयम की अपील बढ़ा दी है।
ख्वाजा आसिफ के बयान में यह भी शामिल था कि यदि युद्ध हुआ तो उन्होंने युद्धक विमानों के मलबे के नीचे दफन करने जैसी भारी अलहदा टिप्पणी की, जिससे सैन्य विश्लेषक और राजनयिक दोनों चिंतित हैं। यह बयान सीधे तौर पर भावनात्मक भाषा व उकसावे के रूप में लिया जा रहा है।
सैन्य खतरे और वास्तविक क्षमता
पिछले संघर्षों के अनुभवों के आधार पर विश्लेषक कहते हैं कि असल लड़ाई में निर्णायकता उपकरण, खुफिया और अंतरराष्ट्रीय समर्थन तय करते हैं। 9-10 मई की झड़पों के दौरान भी दोनों पक्षों ने सीमित सैन्य कार्रवाई दिखाई थी जबकि बड़े पैमाने पर सामरिक जवाबदेही कम दिखी। इसके बाद भारत ने स्पष्ट किया है कि वह किसी भी तरह की न्यूक्लियर ब्लैकमेलिंग बर्दाश्त नहीं करेगा।
सैन्य संवाद और क्राइसिस नियंत्रण के साधन अब भी सक्रिय हैं; साथ ही दोनों पक्षों के बीच कूटनीतिक चैनल खुले हैं ताकि गलती से बड़ा संघर्ष न भड़क उठे।
अन्य पढ़े: Britain: ब्रिटेन से चीन तक आईफोन तस्करी
राजनैतिक निहितार्थ व अंतरराष्ट्रीय दबाव
ख्वाजा आसिफ(Khawaja Asif) के तीखे बयानों से पाकिस्तान के आंतरिक राजनीतिक परिदृश्य में भी हलचल आई है; विपक्ष इसे नेताओं की भाषा बताकर आलोचना कर रहा है। अंतरराष्ट्रीय साझेदारों ने दोनों देशों से संयम बरतने और कूटनीति के जरिए मुद्दे सुलझाने की अपील की है। इसके बाद क्षेत्रीय स्थिरता व आर्थिक प्रभावों पर नजरें तनी हुई हैं।
विश्लेषकों का कहना है कि बयानबाजी भले ही तेज हो, पर वास्तविक युद्ध का मार्ग आर्थिक, राजनीतिक व सैन्य लागतों के चलते कम ही संभावना दिखाता है; फिर भी सतर्कता आवश्यक है।
खतरा कितना वास्तविक है?
हालिया बयान और मीडिया तकरार तनाव को बढ़ाते हैं; पर वास्तविक संघर्ष के लिए व्यापक सैन्य, आर्थिक व अंतरराष्ट्रीय कारक निर्णायक होंगे, इसलिए फिलहाल जोखिम प्रबंधनीय माना जा रहा है।
कूटनीतिक विकल्प कौन से प्रभावी होंगे?
समझौता वार्ता, तटस्थ मध्यस्थों की मदद और सैन्य संवाद संकट नियंत्रण के लिए सबसे व्यवहार्य रास्ते हैं; साथ ही क्षेत्रीय शक्तियों का दबाव संघर्ष टालने में सहायक रहेगा।
अन्य पढ़े: