मानसून के बाद सामने आई चौंकाने वाली रिपोर्ट — वैज्ञानिकों की चेतावनी
भारत के कई हिस्सों में अब पहले जैसी तेज और लंबे समय तक चलने वाली धूप देखने को नहीं मिल रही है। वैज्ञानिक रिपोर्ट्स और अध्ययनों ने खुलासा किया है कि भारत में (“Bright Sunshine Hours”) हर साल धीरे-धीरे घटते जा रहे हैं। यह बदलाव केवल मौसम तक सीमित नहीं है — इसका सीधा प्रभाव सौर ऊर्जा, कृषि, और जनस्वास्थ्य तक पड़ सकता है।
अक्टूबर महीने में ‘नेचर्स साइंटिफिक रिपोर्ट्स’ में प्रकाशित शोध के मुताबिक- 1988 से 2018 के बीच नौ क्षेत्रों के 20 मौसम केंद्रों से धूप-घंटे के आंकड़ों की जांच की गई. इसमें पाया गया कि पूर्वोत्तर इलाकों को छोड़ वार्षिक धूप के घंटे सभी क्षेत्रों में घट गए हैं. क्या है इसके पीछे का कारण, चलिए जानते हैं…
मानसून के बाद अचानक से हो रही बारिश
इस साल मानसून काफी लंबे समय तक रहा. मानसून (Monsoon) के बाद अचानक से हो रही बारिश से ऐसा लग रहा है मानो अचानक से ठंड ने दस्तक दे दी हो. पहाड़ों पर समय से पहले ही बर्फबारी भी शुरू हो चुकी है. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू), पुणे स्थित भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) और भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) सहित अन्य संस्थानों द्वारा किए गए एक नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया है कि पिछले तीन दशकों में भारत के अधिकांश हिस्सों में धूप के घंटे लगातार कम होते जा रहे हैं. यह रुझान घने बादलों और बढ़ते एरोसोल प्रदूषण से जुड़ा है।
इस महीने (अक्टूबर) ‘नेचर्स साइंटिफिक रिपोर्ट्स’ में प्रकाशित शोध में 1988 से 2018 के बीच नौ क्षेत्रों के 20 मौसम केंद्रों से धूप-घंटे के आंकड़ों की जांच की गई. इसमें पाया गया कि पूर्वोत्तर इलाकों को छोड़ वार्षिक धूप के घंटे सभी क्षेत्रों में घट गए हैं।
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बीएचयू के वैज्ञानिक मनोज के. श्रीवास्तव ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया- पश्चिमी तट पर औसतन हर साल धूप के घंटों में 8.6 घंटे की कमी देखी गई. जबकि उत्तर भारतीय मैदानी इलाकों में सबसे ज्यादा 13.1 घंटे की गिरावट दर्ज की गई. पूर्वी तट और दक्कन के पठार में भी क्रमशः 4.9 और 3.1 घंटे प्रति वर्ष की गिरावट देखी गई. यहां तक कि मध्य अंतर्देशीय क्षेत्र में भी लगभग 4.7 घंटे प्रति वर्ष की कमी देखी गई।
एरोसोल सांद्रता को जिम्मेदार ठहराया
अध्ययन में कहा गया है कि अक्टूबर और मई के बीच, जो कि सूखे महीने होते हैं, उनमें धूप में वृद्धि हुई. जबकि, जून से सितंबर तक, जो मानसून के साथ मेल खाता है, इसमें तेजी से गिरावट आई. अध्ययन से जुड़े वैज्ञानिकों ने दीर्घकालिक ‘सौर मंदता’ के लिए उच्च एरोसोल सांद्रता को जिम्मेदार ठहराया. इनमें औद्योगिक उत्सर्जन, बायोमास दहन और वाहनों के प्रदूषण से निकलने वाले सूक्ष्म कण शामिल हैं।
ये एरोसोल संघनन नाभिक के रूप में कार्य करते हैं, जिससे छोटे और लंबे समय तक रहने वाले बादल की बूंदें बनती हैं जो लंबे समय तक आसमान को बादलों से ढका रखती हैं. इस वर्ष के मानसून में भी भारत के अधिकांश हिस्सों में, विशेष रूप से पश्चिमी तट, मध्य भारत और दक्कन के पठार पर लगातार बादल छाए रहे. यहां बिना बारिश वाले दिनों में भी अक्सर बादल छाए रहे।
ऐसे घट रहे धरती पर धूप पहुंचने के घंटे
श्रीवास्तव ने कहा- हालांकि, अध्ययन अवधि 2018 तक की है. लेकिन इसके रुझान आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं. क्योंकि वही धुंध, नमी और बादलों का स्वरूप बना हुआ है. बल्कि पहले से कहीं ज्यादा मजबूती से. उन्होंने बताया- एरोसोल की ज्यादा मात्रा वायुमंडल में बादलों के रहने के समय को बढ़ा देती है, जिससे जमीन तक पहुंचने वाले सूर्य के प्रकाश के घंटे कम हो जाते हैं. वैज्ञानिकों ने कहा कि धूप के घंटों में कमी का सौर ऊर्जा उत्पादन, कृषि और जलवायु मॉडलिंग पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है।
दिन में कितनी देर धूप लेनी चाहिए?
सप्ताह में कम से कम दो बार या उससे अधिक समय सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे के बीच 5 से 30 मिनट तक बिना सनस्क्रीन के चेहरे, बाहों, हाथों और पैरों को धूप में रखना।
धूप में विटामिन डी कब खुलता है?
संक्षेप में, गर्मियों में रियाद में विटामिन डी के उत्पादन के लिए धूप में निकलने का सबसे अच्छा समय सुबह 9:00 बजे से 10:30 बजे से पहले, साथ ही दोपहर 2:00 बजे के बाद से 3:00 बजे तक है।जबकि सर्दियों में यह समय सुबह 10:00 बजे से दोपहर 2:00 बजे तक है।
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