नई दिल्ली । भारत में हवा इतनी जहरीली हो चुकी है कि अब फेफड़ों की बीमारियों का खतरा सिर्फ स्मोकर्स तक सीमित नहीं रहा। भारत में करीब 5.5 करोड़ लोग सीओपीडी (COPD) से पीड़ित हैं, ये दुनिया में सबसे ज्यादा है। 1990 में ये बीमारी मौतों के कारणों की सूची में 8वें स्थान पर थी लेकिन अब दिल की बीमारी के बाद ये देश में मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण है। इस बढ़ोतरी का सबसे बड़ा कारण बीते तीन दशकों में लगातार बिगड़ती हवा की गुणवत्ता है।
भारत में COPD मरीजों की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा
2019 में भारत में 3.78 करोड़ सीओपीडी मरीज थे जो दुनिया के कुल मामलों का 17.8 प्रतिशत है। लेकिन मौतों में भारत की हिस्सेदारी 27.3 प्रतिशत यानी होने वाली कुल मौतों के अनुपात से कहीं अधिक है। एक नए अध्ययन के अनुसार भारत में सीओपीडी के करीब 5.5 करोड़ मामले हैं। अब इस बीमारी का खतरा महिलाओं, नॉन-स्मोकर्स (Non Smokers) और यहां तक कि बच्चों तक पहुंच चुका है।
क्यों बढ़ रहा है खतरा? ये हैं प्रमुख कारण
इसके पीछे के कारण:
- बायोमास ईंधन का धुआं
- बाहर और घर के अंदर का प्रदूषण
- फैक्ट्रियों की धूल
- पर्यावरणीय तंबाकू धुआं
- गाड़ियों का धुआं
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, सीओपीडी मरीजों में अचानक गंभीर सांस फूलना, खांसी बढ़ जाना जैसे फ्लेयर-अप्स कई दिन तक रह सकते हैं और इन पर तुरंत इलाज की जरूरत पड़ती है।
AQI 150 से ऊपर जाए तो खास सावधानी
डॉक्टर सलाह देते हैं कि जब एक्यूआई (AQI) 150 से ऊपर चला जाए, तब लोगों को बाहर जाने से बचना चाहिए क्योंकि हवा बेहद खतरनाक हो जाती है। पीएम 2.5, पीएम 10, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और ओजोन जैसे प्रदूषक फेफड़ों में गहराई तक जाकर सूजन और स्थायी नुकसान पैदा करते हैं।
नॉन-स्मोकर्स और बच्चों में भी बढ़ रही बीमारी
डॉक्टर बता रहे हैं कि अब वे महिलाएं और लोग भी सीओपीडी का शिकार बन रहे हैं जो कभी धूम्रपान नहीं करते थे। इसका सबसे बड़ा कारण लगातार बढ़ता हवा का प्रदूषण है। डॉक्टरों के अनुसार अब बच्चों में भी क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस और एम्फ़ायसेमा जैसी स्थितियां देखी जा रही हैं।
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