गाजियाबाद में धूल सबसे प्रमुख प्रदूषक है। इस शहर के किसी भी इलाके, यहां तक कि मेट्रो स्टेशनों (Metro Station) के अंदर तक धूल का अंबार लगा होता है। यहां बड़ी संख्या में सड़कें टूटी हुई हैं। चाहे रिहाइशी हो या कमर्शियल—यहां लगातार कंस्ट्रक्शन चलता रहता है। पूरे दिन बड़े और छोटे वाहन सड़कों पर दौड़ते हैं और धूल उड़ाते हैं। बारिश (Rain) न होने और हवा की गति सर्दियों में सुस्त पड़ने के चलते ये धूल हवा में घूमती रहती है, जो प्रदूषण स्तर को बढ़ाती है।
क्लाउड सीडिंग पर वैज्ञानिकों की टिप्पणी
दिल्ली में कृत्रिम बारिश हो ही नहीं सकती! मौसम विज्ञानी केजे रमेश ने कहा कि क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) पर अनावश्यक खर्च किया जा रहा है।
पड़ोसी शहरों का प्रभाव और स्थानीय उपायों की कमी
गाजियाबाद दिल्ली और नोएडा के नजदीक है, जिसका असर भी इसकी जलवायु पर पड़ता है। जब इन शहरों में प्रदूषण का स्तर बढ़ता है तो वह आगे बढ़कर गाजियाबाद को भी गिरफ्त में ले लेता है।
यहां प्रदूषण को कंट्रोल करने के लिए स्थाई तो दूर, अस्थाई उपाय भी पर्याप्त रूप से नहीं किए जाते—जैसे सड़कों पर पानी का छिड़काव, पेड़-पौधों की संख्या बढ़ाना, ग्रैप को सख्ती से लागू करना आदि।
स्थानीय कारण न पहचानने पर हवा सुधारना मुश्किल
वैज्ञानिकों का कहना है कि जब तक गाजियाबाद के स्थानीय कारणों को चिन्हित कर अलग नियम नहीं बनाए जाएंगे और सभी अथॉरिटीज सामूहिक रूप से काम नहीं करेंगी, तब तक हवा साफ करना मुश्किल है।
फैक्ट्रियों और कारखानों से उत्सर्जन पर तत्काल रोक, कूड़ा जलाने पर सख्त प्रतिबंध और सड़क मरम्मत बड़े मुद्दे हैं।
लगातार सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में गाजियाबाद
गाजियाबाद एक बार फिर देश का सबसे प्रदूषित शहर बन गया है। सीपीसीबी के हालिया आंकड़े बताते हैं कि इस शहर ने दुनिया में सबसे प्रदूषित शहर का तमगा हासिल कर चुके दिल्ली को भी खराब AQI में पीछे छोड़ दिया है। 20 नवंबर को गाजियाबाद का AQI बेहद खराब श्रेणी में पहुंचकर 430 रहा, जो दिल्ली और नोएडा से भी अधिक था। 17 नवंबर को निजी AQI मॉनिटर एजेंसियों ने यहां का AQI 800 से ऊपर तक दर्ज किया था।
वैज्ञानिकों की चेतावनी: पीएम 2.5 और पीएम 10 खतरनाक स्तर पर
भारतीय मौसम विभाग के पूर्व डीजीएम और वैज्ञानिक केजे रमेश के अनुसार, गाजियाबाद में पीएम 2.5 और पीएम 10 की मात्रा हवा में अत्यधिक है। यहां बड़ी संख्या में फैक्ट्री और कारखाने हैं, विशेषकर साहिबाबाद, भोपुरा और लोनी क्षेत्र में। ग्रैप लागू जरूर होता है, लेकिन इसकी सफलता पर कोई स्पष्ट रिपोर्ट उपलब्ध नहीं है।
वाहनों और कूड़ा जलाने का भी बड़ा योगदान
शहर में छोटे-बड़े वाहनों की संख्या बहुत ज्यादा है। इलेक्ट्रिक के मुकाबले पेट्रोल और डीजल गाड़ियां अधिक हैं। प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों की सख्त मॉनिटरिंग भी नहीं होती, जिससे हवा की गुणवत्ता और खराब होती है। साथ ही खुले में कूड़ा जलाने के मामले भी सामने आए हैं, जिससे हवा में जहरीली गैसें बढ़ती हैं।
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