उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से दिल को झकझोर देने वाला मामला सामने आया है, जहां कलयुगी बेटों ने मां का शव लेने से इनकार कर दिया. बड़े बेटे ने मां की मौत के बाद उनके शव को घर लाने से मना कर दिया. क्योंकि घर पर बेटे के बेटे की शादी हो रही थी. उसने कहा कि घर में डेड बॉडी आई तो अपशकुन होगा. जब बेटे की शादी हो जाएगी. चार दिन बाद अंतिम संस्कार करवा दूंगा, तब तक मां के शव को 4 दिन के लिए फ्रिजर में रख दो. हालांकि, महिला के पति ने अपनी पत्नी के शव को गांव ले जाकर घाट किनारे दफना दिया।
गोरखपुर के रहने वाले भुआल गुप्ता (Bhual Gupta) और उनकी पत्नी शोभा देवी के 6 बच्चे तीन बेटे और तीन बेटियां हैं. शोभा और भुआल सभी की शादी कर चुके हैं. कुछ सालों में उनके बच्चों के बच्चे भी हो गए और वह दादा-दादी बन गए, लेकिन एक साल पहले भुआल और शोभा को उनके बड़े बेटे ने घर से ये कहकर निकाल दिया कि आप लोग मेरे घर पर बोझ बन गए हो. बेटे की बात पति-पत्नी के दिल पर लग गई और वह घर छोड़कर निकल गए।
घर से निकलकर आत्महत्या करने पहुंचे
घर से निकलने के बाद शोभा (Shobha) और भुआल ने आत्महत्या करने का फैसला किया, जिसके लिए वह राजघाट पहुंचे, लेकिन वहां उन्हें एक शख्स ने आत्महत्या करने से रोक लिया, जब उन्होंने उसे अपनी आपबीती बताई तो उस शख्स ने पति-पत्नी से कहा कि आप दोनों अयोध्या या मथुरा चले जाइए. वहां आपके रहने-खाने का इंतजाम हो जाएगा. फिर वह दोनों पहले अयोध्या पहुंचे, लेकिन वहां बात नहीं बनी. दोनों दर-दर की ठोकरें खाते रहे।
जौनपुर के वृद्धाश्रम पहुंचे पति-पत्नी
इसके बाद पति-पत्नी मथुरा पहुंचे, लेकिन उनकी किस्मत ने मथुरा में भी उनका साथ नहीं दिया और उनका मथुरा में भी रहने-खाने का कोई इंतजाम नहीं हुआ. फिर उन्हें जौनपुर के एक वृद्धाश्रम का फोन नंबर मिला, जब उन्होंने कॉल की तो उन्हें जौनपुर के वृद्धाश्रम बुला लिया गया. जौनपुर विकास समिति वृद्धाश्रम के हेड रवि कुमार चौबे ने बताया कि तभी से शोभा और भुआल दोनों एक साथ उनके वृद्धाश्रम में रह रहे थे।
इलाज के दौरान हो गई शोभा की मौत
लेकिन हाल ही में शोभा के पैर में लकवा मार गया. उनका प्राइवेट अस्पताल में इलाज कराया गया. फिर आराम मिलने पर उन्हें वापस ले आया गया. इसके बाद 19 नवंबर को उनकी फिर से तबीयत बिगड़ गई. उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई. डॉक्टरों ने बताया कि शोभा को और भी कई बीमारियां थीं. उनकी दोनों किडनी भी फेल हो गई थीं।
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शोभा की मौत के बाद उनके पति भुआल अकेले हो गए और बुरी तरह से टूट गए. अब पत्नी का अंतिम संस्कार करना था. इसके लिए वृद्धाश्रम के हेड रवि ने उनके छोटे बेटे को फोन किया कि आपकी मां का देहांत हो गया है. उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनका अंतिम संस्कार गोरखपुर में ही किया जाए. मां की मौत की खबर सुनने के बाद भी छोटे बेटे ने कहा कि बड़े भाई के घर पर उनके बेटे की शादी है. उनसे बात करके बताएंगे और फोन रख दिया।
बड़े बेटे ने घर में शव लेने से कर दिया मना
इसके बाद फिर से फोन कर छोटे बेटे ने कहा कि बड़े भाई कह रहे हैं कि मां के शव को 4 दिन के लिए फ्रीजर में रख दो. बेटे की शादी हो जाएगी तो उनका अंतिम संस्कार करवा देंगे. ये सुनकर भुआल और टूट गए और गुस्से में पत्नी के शव का जौनपुर में ही अंतिम संस्कार कराने लगे. फिर उनकी बेटियों ने फोन कर कहा कि मां के शव को गोरखपुर ले आइए. यहीं उनका अंतिम संस्कार कराएंगे.
लेकिन जब भुआल अपनी पत्नी का शव लेकर गोरखपुर पहुंचे तो बड़े बेटे ने घर के अंदर शव लेने से साफतौर पर मना कर दिया कि मेरे घर पर शादी है. इसके बाद गांव वालों और रिश्तेदारों ने भुआल की पत्नी के शव को जबरदस्ती कैंपियरगंज में घाट के पास मिट्टी में दफन करवा दिया. भुआल ने कहा कि मैं अपनी पत्नी का अंतिम संस्कार भी नहीं कर पाया. 4 दिन बाद उसके शव में कीड़े लग जाएंगे. पंडित ने भी बताया कि एक बार दफनाने के बाद शव को बाहर निकालकर अंतिम संस्कार नहीं किया जा सकता.
गोरखपुर का नाम गोरखपुर क्यों पड़ा?
10 वीं सदी में थारू जाति के राजा मदन सिंह ने गोरखपुर शहर और आसपास के क्षेत्र पर शासन किया। राजा विकास संकृत्यायन का जन्म स्थान भी यहीं रहा है। मध्यकालीन समय में, इस शहर को मध्यकालीन हिन्दू सन्त गोरक्षनाथ के नाम पर गोरखपुर नाम दिया गया था।
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