जयपुर के हवामहल विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी विधायक बालमुकुंद(Balmukund) आचार्य एक बार फिर विवादों में हैं। 14 जुलाई 2025 को रामगंज थाने में उनकी एक तस्वीर और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसमें वे थानेदार की कुर्सी पर बैठे नजर आए, जबकि रामगंज, गलता गेट, और माणक चौक के थानाधिकारी उनके सामने बैठे थे। यह घटना शनिवार देर रात रामगंज थाना क्षेत्र में कांवड़ यात्रा के दौरान दो समुदायों के बीच हुई झड़प के बाद हुई।
घटना का विवरण:
शनिवार रात को रामगंज थाना क्षेत्र में कांवड़ यात्रा के दौरान दो समुदायों के बीच विवाद हो गया, जिसके बाद पथराव और तोड़फोड़ की घटनाएं हुईं। इस तनावपूर्ण स्थिति के बाद विधायक बालमुकुंद आचार्य रविवार को कांवड़ यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग लेकर रामगंज थाने पहुंचे। थाने में पुलिस अधिकारियों के साथ बैठक के दौरान वे थानेदार की कुर्सी पर बैठ गए।
वीडियो में आचार्य को कांवड़ मार्ग में यातायात व्यवस्था, वाहनों की पार्किंग, और यात्रा के दौरान मांस की दुकानों को बंद करवाने के लिए निर्देश देते देखा गया। उन्होंने एक अधिकारी को फोन पर कथित तौर पर धमकी भी दी, जिसमें “माथा फोड़ देंगे, ध्यान रखना, महाराज कहते हो मुझे” जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया।
विवाद का कारण
तस्वीर और वीडियो के वायरल होने के बाद विपक्षी दल कांग्रेस ने इसे प्रशासनिक मर्यादा का उल्लंघन और सत्ता के दुरुपयोग का मामला बताया। कई लोगों ने इसे “वीआईपी कल्चर” और प्रशासन की कमजोरी का प्रतीक माना। सोशल मीडिया पर कुछ यूजर्स ने आचार्य को “थानेदार बाबा” कहकर ट्रोल किया, जबकि अन्य ने सवाल उठाया कि क्या अब नेता थानों से सरकार चलाएंगे।

राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
कांग्रेस विधायक रफीक खान ने इस घटना को “शर्मनाक और दुर्भाग्यपूर्ण” करार दिया। उन्होंने कहा कि थानेदार की सीट पर रौब में बैठकर विधायक प्रशासनिक मर्यादा का उल्लंघन कर रहे हैं और यह लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरनाक है। कांग्रेस की नेता सुप्रिया श्रीनेत ने भी बीजेपी पर निशाना साधते हुए इसे सत्ता का दुरुपयोग बताया।
आचार्य की सफाई
बालमुकुंद आचार्य ने सफाई दी कि उन्हें नहीं पता था कि वह कुर्सी थानेदार की है। उन्होंने कहा कि उनका मकसद केवल कांवड़ यात्रा की सुरक्षा सुनिश्चित करना था। आचार्य ने दावा किया कि यह संवेदनशील मामला था और उनकी मौजूदगी से स्थिति को नियंत्रित करने में मदद मिली।
पहले भी विवादों में रहे आचार्य
बालमुकुंद आचार्य पहले भी अपने बयानों और व्यवहार के कारण चर्चा में रहे हैं। वे जयपुर के हाठी बाबा के मठ के महंत भी हैं और धार्मिक-सांप्रदायिक मुद्दों पर मुखर रहते हैं। पहले भी उनके कुछ बयानों को लेकर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने उन पर निशाना साधा था।
यह घटना न केवल जयपुर बल्कि राजस्थान की राजनीति में चर्चा का विषय बनी हुई है, क्योंकि यह प्रशासन और जनप्रतिनिधियों के बीच रिश्तों की मर्यादा का सवाल उठाती है।
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राजस्थान का राजनीतिक इतिहास क्या है? राजस्थान का एकीकरण
यह 30 मार्च 1949 को भारत का एक ऐसा प्रांत बना, जिसमें तत्कालीन राजपूताना की ताकतवर रियासतें विलीन हुईं। जाटों ने भी अपनी रियासत के विलय राजस्थान में किया था। राजस्थान शब्द का अर्थ है: ‘राजाओं का स्थान’ क्योंकि यहां राजपूतों ने पहले राज किया था इसलिए राजस्थान को राजपूताना कहा जाता था।
राजस्थान का आजादी से पहले क्या नाम था ?
राजस्थान का वर्तमान नाम 26 जनवरी 1950 को स्वीकृत किया गया था। इससे पहले, इसे राजपूताना के नाम से जाना जाता था. 1800 ईस्वी में, जॉर्ज थॉमस ने इसे राजपूताना नाम दिया था. कर्नल जेम्स टॉड ने अपनी पुस्तक “एनल्स एंड एंटीक्विटीज ऑफ राजस्थान” में इस क्षेत्र के लिए “रायथान” या “राजस्थान” नाम का प्रयोग किया था.