ब्याज दरों में कटौती की संभावना, कर्ज होगा सस्ता
नई दिल्ली: रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (MPC) की तीन दिवसीय महत्वपूर्ण बैठक आज (29 सितंबर) से शुरू हो गई है। यह बैठक 1 अक्टूबर तक चलेगी, और उसी दिन लिए गए फैसलों की घोषणा की जाएगी। बाजार और अर्थशास्त्रियों, विशेष रूप से स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) की रिपोर्ट, ने इस बार ब्याज दरों में 25 बेसिस पॉइंट (0.25%) की कटौती होने की प्रबल संभावना जताई है। वर्तमान में RBI की रेपो रेट 5.50% पर है। यदि यह कटौती होती है, तो यह आम जनता और कारोबारियों के लिए एक बड़ी राहत होगी, क्योंकि इससे लोन और ब्याज की दरें कम होंगी। सस्ती दरों पर कर्ज मिलने से अर्थव्यवस्था में पैसों का प्रवाह बढ़ेगा और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा।
दरों में कटौती का सही समय: ‘टाइप 2 एरर’ से बचना
SBI की रिपोर्ट ने MPC को दरें घटाने के लिए प्रोत्साहित किया है और तर्क दिया है कि अभी कटौती का यह सही समय है। रिपोर्ट के अनुसार, महंगाई पूरी तरह काबू में है और सितंबर-अक्टूबर में यह 2% से भी नीचे रह सकती है। रिपोर्ट में यहाँ तक कहा गया है कि अगर RBI इस अनुकूल माहौल में दरें नहीं घटाता है, तो यह एक “टाइप 2 एरर” होगा-यानी, सही मौके पर गलत फैसला लेना। यह तर्क पिछले फैसलों की ओर भी इशारा करता है जब RBI ने अनुकूल परिस्थितियों के बावजूद दरों को स्थिर रखा था। RBI के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह अपनी संचार नीति को स्पष्ट और सटीक रखे, क्योंकि जून से ब्याज दरों में कटौती का पैमाना ऊँचा रहा है।
रेपो रेट और महंगाई का समीकरण
रेपो रेट(Repo Rate) वह दर है जिस पर RBI कमर्शियल बैंकों को लोन देता है। रेपो रेट में बदलाव का सीधा असर अर्थव्यवस्था में मनी फ्लो और महंगाई पर पड़ता है। जब RBI महंगाई को नियंत्रित करना चाहता है, तो वह रेपो रेट बढ़ा देता है, जिससे बैंकों को कर्ज महंगा मिलता है और वे ग्राहकों के लिए लोन की दरें बढ़ा देते हैं। इससे इकोनॉमी में मनी फ्लो कम होता है, माँग घटती है और महंगाई कम हो जाती है। इसके विपरीत, जब अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने की आवश्यकता होती है, तो RBI रेपो रेट कम करता है। इस वित्तीय वर्ष में, MPC ने पहले ही तीन बैठकों में दरों में कुल 1% की कटौती की है। पिछली MPC मीटिंग अगस्त में हुई थी, जिसमें गवर्नर संजय मल्होत्रा ने ‘टैरिफ अनिश्चितता’ के कारण दरें स्थिर रखने का फैसला किया था।
RBI की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (MPC) द्वारा ब्याज दरों में कटौती न करने को ‘टाइप 2 एरर’ क्यों कहा जा रहा है?
SBI की रिपोर्ट के अनुसार, ब्याज दरों में कटौती न करने को ‘टाइप 2 एरर’ (यानी, एक सही हाइपोथीसिस को अस्वीकार करना) इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि महंगाई दर पूरी तरह से काबू में है और 2% से भी नीचे रहने की उम्मीद है। ऐसे अनुकूल माहौल में, यदि RBI दरें नहीं घटाता है, तो यह सस्ती क्रेडिट के माध्यम से आर्थिक विकास को बढ़ावा देने का सही मौका गंवा देगा, जिसे रिपोर्ट में ‘सही मौके पर गलत फैसला’ लेना कहा गया है।
RBI रेपो रेट को क्यों बढ़ाता या घटाता है, और इसका आम आदमी पर क्या असर होता है?
RBI रेपो रेट को महंगाई को नियंत्रित करने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए बढ़ाता या घटाता है।
बढ़ाता है (जब महंगाई ज्यादा हो): मनी फ्लो कम करने के लिए, जिससे बैंकों का कर्ज महंगा होता है और आम आदमी के लिए लोन की EMI बढ़ जाती है।
घटाता है (जब इकोनॉमी को बढ़ावा देना हो): मनी फ्लो बढ़ाने के लिए, जिससे बैंकों का कर्ज सस्ता होता है और आम आदमी के लिए लोन की EMI कम हो जाती है।
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