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Tariff War: अमेरिका-चीन टैरिफ वॉर: वैश्विक व्यापार पर असर

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टैरिफ वॉर की शुरुआत

अमेरिका और चीन के बीच टैरिफ वॉर 2018 में तब शुरू हुआ जब अमेरिका ने चीन से आयातित वस्तुओं पर भारी शुल्क लगाना शुरू किया। इसके जवाब में चीन ने भी अमेरिकी वस्तुओं पर टैक्स बढ़ा दिए। इसने वैश्विक सप्लाई चेन को प्रभावित किया और कई देशों को नए अवसर भी मिले।

पिछले हफ्ते अमेरिका के साथ टैरिफ वॉर के बीच चीन ने अपनी एयरलाइन कंपनियों को अमेरिकी विमान निर्माता कंपनी बोइंग से नए विमानों की डिलीवरी नहीं लेने के आदेश दिए थे।

ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, चीनी सरकार ने यह आदेश अमेरिका के 145% टैरिफ के जवाब में जारी किया था। तब चीन ने अमेरिका में बनने वाले विमान के पार्ट्स और डिवाइसेस की खरीद रोकने का आदेश भी दिया था।

एयरक्राफ्ट के टॉप सप्लायर्स में से एक बोइंग

बोइंग एयरप्लेन एक अमेरिकी कंपनी है, जो एयरप्लेन, रॉकेट, सैटेलाइट, टेलीकम्युनिकेशन इक्विपमेंट और मिसाइल बनाती है। कई देशों की एयरलाइंस कंपनियां बोइंग के बनाए गए प्लेन का इस्तेमाल करती हैं। बोइंग अमेरिका की सबसे बड़ी एक्सपोर्टर कंपनी है और यह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी डिफेंस डील करने वाली कंपनी भी है।

एयर कार्गो और यात्री ट्रैफिक में बदलाव

टैरिफ वॉर के चलते अमेरिकी कंपनियों ने चीन की बजाय भारत, वियतनाम और अन्य एशियाई देशों से आयात करना शुरू किया। इससे भारत और अमेरिका के बीच हवाई यातायात में वृद्धि देखी गई।

एअर इंडिया को कैसे मिला फायदा?

सीधी उड़ानों की मांग में इज़ाफ़ा

अमेरिका-चीन व्यापार तनाव के बीच अमेरिका-भारत के बीच सीधी उड़ानों की मांग बढ़ी। कई व्यापारिक यात्रियों और कार्गो कंपनियों ने एअर इंडिया को प्राथमिकता देना शुरू किया।

प्रतिस्पर्धा में कमी

अमेरिका-चीन टैरिफ वॉर के कारण कुछ चीनी एयरलाइंस की अमेरिका में सेवाओं पर असर पड़ा, जिससे एअर इंडिया जैसी कंपनियों को कम प्रतिस्पर्धा का लाभ मिला।

कार्गो सेवाओं में तेज़ी

व्यापार मार्गों के बदलने से एअर इंडिया को कार्गो सेवाओं में अधिक बुकिंग मिलने लगी। इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्युटिकल्स और टेक्सटाइल जैसे क्षेत्रों की शिपमेंट बढ़ गई।

भारत के लिए नए अवसर

निवेश और व्यापार में वृद्धि

अमेरिकी कंपनियों ने भारत को विकल्प के तौर पर देखा और निवेश बढ़ाया, जिससे हवाई यात्रा की माँग भी बढ़ी।

लॉजिस्टिक सेक्टर को मिला बूस्ट

एअर इंडिया के साथ-साथ भारतीय लॉजिस्टिक कंपनियों को भी इसका फायदा मिला, क्योंकि डिलीवरी और माल ढुलाई की ज़रूरतें बढ़ गईं।

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