Hindi News: मऊ में दशहरा; दहशत से अमन की ओर एक नया अध्याय

By Vinay | Updated: September 20, 2025 • 1:36 PM

UP. मऊ (Mau) नगर, जहां कभी दशहरे से पहले दहशत का माहौल बन जाया करता था, आज अमन और शांति की मिसाल बन चुका है। एक समय था जब दुर्गा पूजा (Durga Pooja) और रामलीला के आयोजन दोनों समुदायों के बीच तनाव का कारण बन जाते थे। लोग राशन, ईंधन और अन्य जरूरी सामान जुटाने में जुट जाते थे, क्योंकि दंगों का डर हमेशा सताता था। 1983, 1985, 1987 और 2005 जैसे वर्षों में मऊ दंगों की आग में जल उठता था। इन दंगों ने न केवल जान-माल का नुकसान किया, बल्कि लोगों के दिलों में भय भी पैदा किया

दंगों का काला इतिहास

1980 और 1990 के दशक में मऊ में दंगे आम बात हो गए थे। खासकर भारत मिलाप और राजगद्दी जैसे आयोजनों के दौरान शाही कटरा और रथ को लेकर दोनों पक्ष आमने-सामने आ जाते थे। छोटी-सी बात आग का रूप ले लेती थी, और शहर हिंसा की चपेट में आ जाता था। 1985 के दंगे में तो आजमगढ़ के एसडीएम इंद्रदेव सिंह की हत्या तक हो गई थी। रघुनाथपुरा और बिनाऊ जैसे हत्याकांडों ने मऊ की जनता को झकझोर कर रख दिया। 2005 में भी दुकानों और घरों में लूटपाट हुई, लोग अपने ही घरों में सहमे रहते थे। रामलीला देखने जाते लोग संगीनों के साये में डर-डरकर उत्सव मनाते थे।

बदलाव की बयार: एसपी अनुराग आर्य का प्रभावी कार्यकाल

2005 के दंगे मऊ के लिए एक टर्निंग पॉइंट साबित हुए। इसके बाद प्रशासन ने सख्ती बरती और कर्फ्यू लगाकर हालात पर काबू पाया। लेकिन सच्चा बदलाव तब आया जब 2019 में आईपीएस अनुराग आर्य (2013 बैच) को मऊ का एसपी बनाया गया। अनुराग आर्य ने अपने कार्यकाल में माफिया और गुंडागर्दी पर कड़ा प्रहार किया, जिससे दंगाइयों के हौसले पस्त हो गए।

खासकर मुख़्तार अंसारी के गैंग पर नकेल कसी—अवैध निर्माणों पर बुलडोजर चलाए गए, 26 सदस्यों के खिलाफ गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई की गई, और अवैध कत्लखानों को बंद कराया। इन सख्त कदमों ने न केवल अपराध की जड़ों को काटा, बल्कि दंगाइयों को भी सबक सिखाया। अनुराग आर्य के नेतृत्व में पुलिस ने थानों की कार्यप्रणाली सुधारी, गोपनीय शिकायतों के लिए हेल्पलाइन शुरू की, और समुदायों के बीच संवाद बढ़ाया। परिणामस्वरूप, दंगों की पुरानी यादें धुंधली पड़ गईं, और मऊ में शांति की नींव मजबूत हुई। उनके कार्यकाल (2019-2020) के बाद दंगे लगभग समाप्त हो गए, क्योंकि अपराधी तत्वों का नेटवर्क टूट चुका था।

वर्तमान एसपी एलामरन जी का योगदान: शांति की निरंतरता

आज मऊ के एसपी एलामरन जी (आईपीएस) के नेतृत्व में यह शांति बरकरार है। 2023 से मऊ में तैनात एलामरन जी ने पुलिस की सक्रियता को नई ऊंचाई दी है। उनके कार्यकाल में अपराध दर में कमी आई है—चाहे वह सड़क हादसों में सतर्कता हो या फर्जीवाड़े की जांच। हाल ही में एक कांस्टेबल की दुर्भाग्यपूर्ण मौत पर उन्होंने शोक सभा आयोजित कर पुलिस परिवार को मजबूत किया, जो उनके संवेदनशील नेतृत्व को दर्शाता है। एलामरन जी की रणनीति में फोकस है सतर्क निगरानी, समुदाय पुलिसिंग और त्वरित कार्रवाई पर। दशहरा जैसे त्योहारों के दौरान रूट मार्च, ड्रोन सर्विलांस और समन्वित फोर्स तैनाती से किसी भी संभावित तनाव को पहले ही रोका जाता है। उनके प्रयासों से दंगाई पूरी तरह शांत हो चुके हैं—अब मऊ में उत्सव भाईचारे के साथ मनाए जाते हैं, न कि डर के साये में।

आज का मऊ: शांति और प्रगति का प्रतीक

आज मऊ पीछे मुड़कर नहीं देखता। शहर ने अपने अतीत के जख्मों को पीछे छोड़कर प्रगति की राह पकड़ी है। दुर्गा पूजा और रामलीला के आयोजन अब भाईचारे और एकता के प्रतीक बन चुके हैं। स्थानीय प्रशासन और समुदायों की सक्रिय भागीदारी ने यह सुनिश्चित किया है कि त्योहारों का रंग दहशत नहीं, बल्कि खुशी और उमंग से भरा हो। मऊ की जनता अब डर के साये से बाहर निकलकर उत्सवों को पूरे उत्साह के साथ मनाती है।

मऊ का इतिहास हमें सिखाता है कि शांति और एकता की ताकत हिंसा और भय को हराने में सक्षम है। एसपी अनुराग आर्य और वर्तमान एसपी एलामरन जी जैसे अधिकारियों के साहसिक कदमों ने दंगाइयों को शांत कर दिया और मऊ को एक नई पहचान दी। आज का मऊ एक ऐसे शहर की मिसाल है, जो अपने अंधेरे अतीत से उबरकर अमन और तरक्की की राह पर चल पड़ा है। दशहरा अब यहां सिर्फ विजय का पर्व नहीं, बल्कि भाईचारे और एकजुटता का उत्सव है

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