भारी फीस से वीजा धारकों की मुश्किल
नई दिल्ली: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप(Trump) ने H-1B वीजा पर सालाना 1,00,000 डॉलर (करीब 90 लाख रुपये) की फीस लगाने का ऐलान किया है। यह फैसला भारतीयों(Indians) के लिए सबसे बड़ा झटका साबित हो रहा है क्योंकि हर साल जारी होने वाले 85,000 H-1B वीजाओं में से लगभग 70% भारतीयों को मिलते हैं। पहले यह फीस महज कुछ सौ डॉलर थी, लेकिन अब इसमें 100 गुना तक बढ़ोतरी कर दी गई है।
फीस में अचानक भारी इजाफा
अमेरिका में करीब 3 लाख उच्च-कुशल भारतीय कर्मचारी H-1B वीजा पर काम कर रहे हैं, जिनमें ज्यादातर आईटी सेक्टर से जुड़े हैं। पहले इस वीजा की फीस 215 डॉलर थी, साथ ही कुछ अतिरिक्त शुल्क मिलाकर यह अधिकतम 5,000 डॉलर तक पहुंचती थी। अब नई व्यवस्था के तहत कंपनियों को प्रत्येक विदेशी कर्मचारी के लिए 90 लाख रुपये तक चुकाने होंगे।
विश्लेषकों का मानना है कि इतनी भारी-भरकम फीस H-1B प्रोग्राम को लगभग समाप्त कर देगी। यह राशि नए वीजा धारकों की औसत वार्षिक सैलरी से भी अधिक है। इसका सीधा असर उन भारतीय परिवारों पर होगा जो बेहतर भविष्य के लिए अमेरिका का रुख करते हैं। वहां मौजूद लगभग 30 लाख भारतीय-अमेरिकियों में से एक चौथाई आबादी सीधे इस वीजा से जुड़ी है।
भारतीय कंपनियों और उद्योग पर असर
इन्फोसिस, टीसीएस और विप्रो जैसी भारतीय आईटी कंपनियां लंबे समय से H-1B वीजा का इस्तेमाल करके अपने इंजीनियरों को अमेरिका भेजती रही हैं। इस कदम से उनके लिए अपने क्लाइंट्स के साथ प्रोजेक्ट पर काम करना मुश्किल हो जाएगा। अमेरिकी कंपनियां जैसे अमेजन और माइक्रोसॉफ्ट भी युवा भारतीय टैलेंट को इसी रास्ते से अमेरिका बुलाती थीं।
अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने कहा कि अब कंपनियां H-1B वीजा पर प्रशिक्षुओं को नहीं रख पाएंगी। उनका मानना है कि अगर ट्रेनिंग देनी है तो अमेरिकी नागरिकों को दी जाए। ट्रंप के आदेश के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि अब अमेरिका केवल उच्च आय वाले और बेहद अनुभवी पेशेवरों को ही प्राथमिकता देगा।
भारतीयों को H-1B वीजा की इतनी जरूरत क्यों पड़ती है?
यह वीजा भारतीयों के लिए करियर और तरक्की का बड़ा साधन है। आईटी और टेक्नोलॉजी सेक्टर में कुशल युवाओं को बेहतर नौकरी और जीवन स्तर हासिल करने के लिए H-1B वीजा बेहद अहम है। इसके चलते भारतीय-अमेरिकी समाज वहां सबसे अधिक पढ़े-लिखे और कमाई करने वाले समुदायों में गिना जाता है।
क्या नई फीस से भारतीय कंपनियों को नुकसान होगा?
विशेषज्ञों का मानना है कि हां, इसका सीधा असर भारतीय आईटी कंपनियों पर पड़ेगा। वे अब बड़ी संख्या में अपने इंजीनियरों को अमेरिका नहीं भेज पाएंगी, जिससे प्रोजेक्ट की लागत और कार्यान्वयन प्रभावित होगा। इससे अमेरिकी कंपनियों की भारतीय प्रतिभा पर निर्भरता भी घट सकती है।
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