पाकिस्तान की बदनाम सैन्य स्थापना एक बार फिर सुर्खियों में है — और हमेशा की तरह, गलत कारणों से। वर्तमान सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर हाल ही में भारत के खिलाफ ज़हर उगलते नज़र आए हैं, जो पाकिस्तान की सैन्य परंपरा का एक जाना-पहचाना तरीका रहा है।
पिछले 78 वर्षों में पाकिस्तान ने लोकतांत्रिक शासन की तुलना में अधिक समय सैन्य तानाशाही के अधीन बिताया है। इस देश का इतिहास तख्तापलटों और सैन्य कब्ज़ों से भरा पड़ा है, जिन्होंने बार-बार लोकतांत्रिक आकांक्षाओं को कुचल दिया।
फील्ड मार्शल अयूब ख़ान, जनरल याह्या ख़ान, जनरल ज़िया-उल-हक़ और जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ जैसे सैन्य शासकों ने सत्ता हथियाने के लिए जनप्रतिनिधियों को दरकिनार किया और जनता की उम्मीदों को अपने पैरों तले रौंद डाला। लेकिन इतिहास ने इन्हें कभी माफ नहीं किया। इनमें से कई तानाशाहों का अंत दुखद या अपमानजनक हुआ — जो इस बात का प्रतीक है कि उनका शासन देश के लिए कितनी अस्थिरता लेकर आया।अयूब खान, याह्या खान, ज़िया-उल-हक़ और परवेज़ मुशर्रफ़—की कहानियाँ एक समान पैटर्न को दर्शाती हैं: सत्ता में जबरन प्रवेश, और अंततः अपमानजनक पतन, जिसमें राजनीतिक अलगाव, स्वास्थ्य समस्याएँ, और कुछ मामलों में रहस्यमय मौतें शामिल हैं।
अयूब खान (राष्ट्रपति: 1958–1969)

फील्ड मार्शल अयूब खान, पाकिस्तान के पहले स्वदेशी सेना प्रमुख, ने 1958 में एक तख्तापलट के माध्यम से सत्ता प्राप्त की, जिससे एक दशक लंबा शासन शुरू हुआ, जो औद्योगीकरण और बुनियादी ढांचे के विकास से चिह्नित था। हालांकि, उनके शासन की अधिनायकवादी प्रकृति, चुनावी धांधली—विशेष रूप से 1965 में फातिमा जिन्ना के खिलाफ—और भारत के साथ 1965 के युद्ध के विवादास्पद संचालन ने सार्वजनिक विश्वास को क्षीण कर दिया। 1968 और 1969 के बीच बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए, जिससे उनके इस्तीफे से पहले पांच दिनों में 70 से अधिक लोगों की मौत हो गई। 25 मार्च 1969 को, अयूब खान ने इस्तीफा दे दिया और सत्ता जनरल याह्या खान को सौंप दी। 19 अप्रैल 1974 को इस्लामाबाद में दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई।
याह्या खान (राष्ट्रपति: 1969–1971)

जनरल याह्या खान ने अयूब खान के इस्तीफे के बाद नेतृत्व संभाला। उनका कार्यकाल मुख्य रूप से 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध से परिभाषित होता है, जिसके दौरान उनके प्रशासन के पूर्वी पाकिस्तान में क्रूर सैन्य अभियानों के कारण व्यापक अत्याचार हुए। युद्ध पाकिस्तान की हार और बांग्लादेश के निर्माण के साथ समाप्त हुआ। इसके बाद, याह्या खान ने सत्ता ज़ुल्फिकार अली भुट्टो को सौंप दी और उन्हें नजरबंद कर दिया गया। मधुमेह, हृदय रोग और एक स्ट्रोक के कारण उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया, जिससे वे आंशिक रूप से लकवाग्रस्त हो गए। 1977 में रिहा होने के बाद, उन्होंने एकांत में जीवन व्यतीत किया और 10 अगस्त 1980 को रावलपिंडी में स्ट्रोक से उनकी मृत्यु हो गई।
ज़िया-उल-हक़ (राष्ट्रपति: 1978–1988)

जनरल ज़िया-उल-हक़ ने 1977 में ज़ुल्फिकार अली भुट्टो को एक तख्तापलट में उखाड़ फेंका और बाद में 1979 में उन्हें फांसी दी। ज़िया का शासन सख्त इस्लामीकरण नीतियों और राजनीतिक असहमति के दमन से चिह्नित था। 17 अगस्त 1988 को, ज़िया की बहावलपुर के पास एक विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई, जिसमें अमेरिकी राजदूत अर्नोल्ड राफेल और अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी मारे गए। दुर्घटना का कारण विवादास्पद बना हुआ है, जिसमें आम तौर पर यह माना जाता है कि विमान में आमों की एक पेटी में छिपे विस्फोटकों के कारण विस्फोट हुआ।
परवेज़ मुशर्रफ़ (राष्ट्रपति: 2001–2008)

जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ ने 1999 में एक तख्तापलट में प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ को हटाकर सत्ता प्राप्त की। उनका राष्ट्रपति पद 9/11 के बाद “आतंक के खिलाफ युद्ध” में अमेरिका के साथ पाकिस्तान के संरेखण, आर्थिक सुधारों और विवादास्पद निर्णयों जैसे कि मुख्य न्यायाधीश इफ्तिखार मुहम्मद चौधरी को बर्खास्त करने से चिह्नित था। बढ़ते विरोध का सामना करते हुए, मुशर्रफ़ ने 2008 में महाभियोग की धमकी के तहत इस्तीफा दे दिया। बाद में उन्होंने दुबई में आत्म-निर्वासन में जीवन व्यतीत किया, जहाँ 5 फरवरी 2023 को दुर्लभ बीमारी एमिलॉइडोसिस से उनकी मृत्यु हो गई। उनके पार्थिव शरीर को पाकिस्तान वापस लाया गया और कराची में एक सैन्य कब्रिस्तान में दफनाया गया।
ये कथाएँ एक सुसंगत विषय को दर्शाती हैं: पाकिस्तान में सैन्य शासक अक्सर बलपूर्वक सत्ता में आते हैं, लेकिन अंततः सार्वजनिक असंतोष, स्वास्थ्य समस्याओं और कुछ मामलों में रहस्यमय या अपमानजनक मौतों के साथ पतन का सामना करते हैं।