भारत (India) और अमेरिका (America) के बीच ठंडी पड़ी व्यापार वार्ता अब एक बार फिर गति पकड़ती दिख रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के मुख्य वार्ताकार और दक्षिण एवं पश्चिम एशिया के लिए सहायक व्यापार प्रतिनिधि ब्रेंडन लिंच दिल्ली पहुंचे हैं। यहाँ उन्होंने भारत के मुख्य वार्ताकार और वाणिज्य मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव राजेश अग्रवाल के साथ बंद दरवाजों के पीछे अहम बैठक की।

इस बैठक का मकसद दोनों देशों के बीच लंबे समय से रुके द्विपक्षीय व्यापार समझौते (BTA) को आगे बढ़ाना है। सूत्रों के अनुसार, वार्ता में माल और सेवाओं के आदान-प्रदान को सुगम बनाने, बाजार पहुँच में सुधार, टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं को कम करने और आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत बनाने पर विशेष चर्चा हुई।
अमेरिकी दल सोमवार रात दिल्ली पहुँचा था और मंगलवार को दोनों पक्षों के बीच विस्तृत वार्ता हुई। माना जा रहा है कि इस बैठक के बाद भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता का छठा दौर तय होगा। अब तक पाँच दौर पूरे हो चुके हैं, लेकिन छठा दौर अमेरिका द्वारा कुछ भारतीय उत्पादों पर 50% तक टैरिफ लगाने के कारण टल गया था। भारत ने इन टैरिफ को अनुचित बताया था और इसी कारण वार्ता स्थगित करनी पड़ी थी।
अब जब वार्ता फिर से शुरू हुई है, तो अधिकारियों को उम्मीद है कि अक्टूबर-नवंबर 2025 तक एक ठोस समझौता सामने आ सकता है। इस समझौते से दोनों देशों के व्यापारिक संबंधों को नई दिशा मिलने की संभावना है। फिलहाल भारत और अमेरिका के बीच व्यापार का आकार लगभग 190 अरब डॉलर है, जबकि लक्ष्य है कि इसे ‘Mission 500’ के तहत 2030 तक 500 अरब डॉलर तक पहुँचाया जाए।
बैठक में सेवाक्षेत्र, कृषि उत्पादों, आईटी, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऊर्जा और दवाओं जैसे अहम क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर भी बात हुई। अमेरिका चाहता है कि भारत अपने बाजार में अमेरिकी कंपनियों को और अधिक अवसर दे, वहीं भारत की मांग है कि अमेरिकी बाजार में भारतीय वस्तुओं और सेवाओं के लिए टैरिफ बाधाएँ कम की जाएँ।
हालांकि, आज की बैठक से कोई बड़ी घोषणा की उम्मीद नहीं है। यह वार्ता आगे की दिशा तय करने और रोडमैप तैयार करने के लिहाज से अहम मानी जा रही है। व्यापार मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि इस दौर की बातचीत का उद्देश्य आपसी मतभेदों को कम कर सहयोग की नई संभावनाएँ तलाशना है।
भारत और अमेरिका दोनों देशों की नज़र इस पर है कि आने वाले महीनों में वार्ता कितनी तेजी से आगे बढ़ती है। अगर सब कुछ तय योजना के अनुसार चला, तो यह समझौता दोनों देशों की अर्थव्यवस्था और वैश्विक व्यापार संतुलन के लिए ऐतिहासिक साबित हो सकता है।
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