रियाद। सऊदी अरब और अमेरिका के बीच की सुरक्षा पार्टनरशिप दक्षिण एशिया की जियोपॉलिटिक्स में बड़ा बदलाव दिखाती है। हालांकि आधिकारिक तौर पर यह रक्षा समझौता नहीं है, लेकिन वाशिंगटन का रियाद को मेजर नॉन-नाटो सहयोगी (MNNA) का दर्जा देने और संभावित एफ-35 ट्रांसफर पर चर्चा करना वेस्ट एशिया में अमेरिकी रणनीति में बड़े परिवर्तन का संकेत है। भारत के रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन ने इस समझौते को भारत के लिए महत्वपूर्ण अवसर बताया है।
अमेरिका-सऊदी रणनीतिक साझेदारी भारत के लिए क्यों अहम?
जनरल हसनैन ने लिखा कि सऊदी अरब (Saudi Arab) ने अमेरिका में अगले दशक में एक ट्रिलियन डॉलर निवेश का वादा किया है। ऊर्जा, एडवांस मैन्युफैक्चरिंग, रक्षा तकनीक और एआई-आधारित सुरक्षा समाधान इस निवेश का हिस्सा होंगे। इससे सऊदी सिर्फ हथियार खरीददार नहीं, बल्कि अमेरिका के शीर्ष रणनीतिक साझेदारों की सूची में शामिल हो रहा है, जिसमें अब तक इजरायल, जापान (Japan) और दक्षिण कोरिया जैसे देश थे।
भारत के लिए रणनीतिक और आर्थिक अवसर
जनरल हसनैन के अनुसार, यह नया समीकरण भारत के लिए दबाव नहीं, बल्कि नए अवसर लेकर आता है।
- खाड़ी क्षेत्र में स्थिरता भारत के ऊर्जा-हितों और व्यापार के लिए अत्यंत जरूरी है।
- खाड़ी देशों में 90 लाख भारतीय प्रवासी रहते हैं जो हर साल 45 अरब डॉलर भारत भेजते हैं।
- अमेरिका-सऊदी तकनीकी गठजोड़ भारत-सऊदी सहयोग को AI, रक्षा-उत्पादन, क्रिटिकल मिनरल्स, डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर और लॉजिस्टिक्स में नई ऊँचाइयों तक ले जा सकता है।
पाकिस्तान फैक्टर से समीकरण और जटिल
रियाद और इस्लामाबाद हाल ही में स्ट्रेटेजिक म्यूचुअल डिफेंस पैक्ट पर हस्ताक्षर कर चुके हैं। सऊदी अरब पाकिस्तान से मैनपावर और ट्रेनिंग विशेषज्ञता लेता है, वहीं अमेरिका हाई-टेक्नोलॉजी और राजनीतिक सुरक्षा उपलब्ध कराता है। लेकिन पाकिस्तान की चीन से नजदीकी और ईरान के साथ अस्थिर रिश्ते इस त्रिकोणीय परिदृश्य को जटिल बनाते हैं।
भारत को क्यों रहना होगा सतर्क?
हसनैन लिखते हैं कि भारत को सऊदी-पाकिस्तान समीकरण पर नजर बनाए रखनी होगी।
हालांकि सऊदी अरब की ‘मल्टी-वेक्टर डिप्लोमेसी’ दिखाती है कि वह भारत को सिर्फ वर्कफोर्स सप्लायर नहीं, बल्कि दीर्घकालिक सुरक्षा और आर्थिक साझेदार के रूप में देख रहा है।
भारत-अमेरिका संबंध: मजबूत नींव पर खड़ा सहयोग
उन्होंने कहा कि भारत-अमेरिका संबंध गहरी बातचीत, समझ और सहयोग पर आधारित हैं।
ट्रंप 2.0 के बदलाव से भी इस रिश्ते को कोई खतरा नहीं है, क्योंकि यह अब लेन-देन वाली राजनीति से आगे निकल चुका है। इसलिए भारत को किसी भी सैन्य ब्लॉक में शामिल हुए बिना अपनी शर्तों पर कूटनीति जारी रखनी चाहिए।
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