वाशिंगटन। अमेरिकी सेना ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को पूरी तरह से नष्ट करने के लिए एक विस्तृत और लंबी योजना तैयार की थी। योजना के तहत, ईरान के मुख्य परमाणु स्थलों जैसे नतांज, फोर्दो, और इस्फहान पर एक रात के लिए नहीं, बल्कि हफ़्तों तक लगातार अमेरिकी हमले होने थे। हालाँकि, तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इस योजना को मंज़ूरी नहीं दी।
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, अमेरिकी सेंट्रल कमांड (CENTOAM) प्रमुख जनरल एरिक कुरिला ने योजना तैयार की थी। इस योजना में ईरान के छह परमाणु स्थलों को बार-बार निशाना बनाने का प्रस्ताव था, जो ऑपरेशन मिडनाइट हैमर से कहीं अधिक बड़ा और व्यापक होता। इस योजना का मुख्य उद्देश्य ईरान के परमाणु कार्यक्रम को पूरी तरह से ख़त्म करना था। इसमें ईरान की मिसाइल रक्षा प्रणाली और बैलिस्टिक मिसाइल क्षमताओं को भी निशाना बनाना शामिल था।
ईरान में बड़े पैमाने पर नागरिकों के हताहत होने की आशंका थी
हालांकि, इस तरह की कार्रवाई से ईरान (IRAN) में बड़े पैमाने पर नागरिकों के हताहत होने की आशंका थी। इसके अलावा, अमेरिका को डर था कि ईरान इन हमलों के जवाब में इराक और सीरिया में अमेरिकी ठिकानों पर हमला कर सकता था। राष्ट्रपति ट्रंप (President Trump) ने योजना को यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया कि यह एक लंबे समय तक चलने वाले संघर्ष को जन्म दे सकती थी, इससे क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता को खतरा होता। ट्रम्प अपनी विदेश नीति में अमेरिका को विदेशी संघर्षों से निकालने पर ध्यान केंद्रित कर रहे थे, न कि इनमें और गहराई से उतरने पर।
अपने विकल्पों पर पूरी तरह से विचार करने को तैयार थे
एक सूत्र के अनुसार, हम अपने विकल्पों पर पूरी तरह से विचार करने को तैयार थे, लेकिन राष्ट्रपति ऐसा नहीं चाहते थे। यह योजना जो बाइडेन के प्रशासन के कार्यकाल के अंत में तैयार की गई थी। रिपोर्ट में बताया गया है कि ईरान में जिन तीन परमाणु संवर्धन स्थलों पर पहले हमला किया गया था (शायद रिपोर्ट हाल ही में हुए ईरान-इज़राइल युद्ध के संदर्भ में पुरानी जानकारी को मिला रही है, क्योंकि यहां 21 जून की तारीख दी गई है जो भविष्य की तारीख है), उनमें से केवल एक ही लगभग नष्ट हुआ था। अमेरिकी अधिकारियों का मानना था कि फोर्डो पर हमला महत्वपूर्ण था और इससे वहां के संवर्धन सुविधा के काम को 2 साल तक पीछे धकेला जा सकता था। हालांकि, बमबारी से नतांज और इस्फहान को ज्यादा नुकसान नहीं हुआ था।
ईरान भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?
भारत और ईरान महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार हैं। हाल के वर्षों में भारत ईरान के पाँच सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों में से एक रहा है। ईरान को भारत द्वारा किए जाने वाले प्रमुख निर्यातों में चावल, चाय, चीनी, दवाइयाँ, मानव निर्मित स्टेपल रेशे, विद्युत मशीनरी, कृत्रिम आभूषण आदि शामिल हैं।
ईरान में इस्लाम कितना पुराना है?
दसवीं शताब्दी के आसपास , अधिकांश फ़ारसी मुसलमान बन गए थे। सातवीं शताब्दी और पंद्रहवीं शताब्दी के बीच, ईरान में सुन्नी इस्लाम प्रमुख संप्रदाय था, जो मुख्यतः शफ़ीई विचारधारा का पालन करता था, और इस काल के ईरानी शिक्षाविदों ने इस्लामी स्वर्ण युग में बहुत योगदान दिया।
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