राजस्थान (Rajasthan) के बीकानेर जिले में स्थित करणी माता मंदिर एक अद्भुत आस्था का केंद्र है। मान्यताओं के मुताबिक करणी माता देवी दुर्गा का अवतार मानी जाती हैं। वह चारण जाति से थीं और उन्होंने एक तपस्विनी का जीवन व्यतीत किया। स्थानीय लोग उन्हें संरक्षक और चमत्कारी देवी मानते हैं।
देवस्थान की विशेषता: चूहों का दरबार
इस देवस्थान की सबसे अनोखी बात है यहां हजारों की संख्या में रहने वाले चूहे। ये चूहे देवालय परिसर में स्वतंत्र रूप से घूमते हैं और इन्हें ‘काबा’ कहा जाता है। यहां के चूहों को करणी माता के पुत्रों का अवतार माना जाता है। भक्तों इन चूहों को प्रसाद खिलाते हैं और इनका झूठा खाकर आशीर्वाद मानते हैं।

चूहों की उत्पत्ति की मान्यता
करणी माता मंदिर: पौराणिक कथा के मुताबिक, करणी माता का पुत्र लक्ष्मण सरोवर में डूब गया था। माता ने यमराज से उसे पुनर्जीवित करने की प्रार्थना की। यमराज ने उसे चूहे के रूप में जीवन दिया। तभी से यह मान्यता बन गई कि देवालय (Temple) के सभी चूहे करणी माता के पुत्र हैं।
सफेद चूहों का महत्व
देवालय में अधिकांश चूहे काले रंग के होते हैं लेकिन कुछ गिने-चुने सफेद चूहे भी देखे जाते हैं। मान्यता है कि सफेद चूहे करणी माता के परिवार के विशेष सदस्य हैं। इनका दर्शन करना बहुत ही शुभ माना जाता है।

श्रद्धालुओं की आस्था और सावधानियां
यहां चूहों को चोट पहुँचाना पाप माना जाता है। यदि कोई गलती से किसी चूहे को मार दे, तो उसे सोने का चूहा चढ़ाना पड़ता है। इसी कारण भक्ति यहां बहुत सावधानी से चलते हैं — पैर घसीटकर ताकि कोई चूहा पैरों के नीचे ना आ जाए।
देवस्थान में आरती का दृश्य
देवस्थान में सुबह और शाम को मंगला आरती और संध्या आरती होती है। खास बात यह है कि इस वक्त चूहे अपने बिलों से बाहर आ जाते हैं और देवालय परिसर में दर्शन के लिए घूमते हैं। यह दृश्य भक्तों के लिए बहुत चमत्कारी माना जाता है।
नवरात्रि में लगता है विशाल मेला
चैत्र और शारदीय नवरात्रि के मौके पर देवस्थान में भव्य मेला लगता है। हजारों की संख्या में भक्तों दूर-दूर से आते हैं और करणी माता के दरबार में शीश नवाते हैं। यह वक्त देवालय की भक्ति और चमत्कारों से भरपूर होता है।